रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि राज्य का बजट स्वरोजगार पैदा करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्टार्टअप में बदलने पर फोकस होगा. राज्य सरकार ग्रामीण इलाकों में रहनेवाली राज्य की 80 प्रतिशत आबादी को स्थापित करने का प्रयास कर रही है. श्री सोरेन शुक्रवार को प्रोजेक्ट भवन में बजट पूर्व गोष्ठी ‘हमीन कर बजट’ को संबोधित कर रहे थे.
वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट पर आये सुझावों को सुनने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा : झारखंड दूसरे राज्यों से अलग है. यहां अधिकतर जनसंख्या एसटी, एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों की है. यह समूह आज के विकास की दौड़ में भी सबसे पीछे है. राज्य में विकास के लिए गुजरात मॉडल को कॉपी-पेस्ट करने से सफलता नहीं मिलेगी. राज्य के विकास के लिए एससी, एसटी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को विकास से जोड़ने के लिए उनको आकर्षण महसूस करानेवाला बजट बनाना होगा.
सरकार स्वरोजगार को लेकर चिंतित है. सरकार अगले वित्तीय वर्ष में छोटे और बड़े शहरों के लिए अलग-अलग योजनाओं के साथ जायेगी. रांची, जमशेदपुर, धनबाद जैसे शहरों में कामकाजी महिलाओं के लिए भी हॉस्टल बनेगा. राज्य में गरीबी के कारण कई मानसिक समस्याएं भी हैं. उसे बजट से समाप्त करना भी विचारणीय है.
उन्होंने कहा कि बजट में उच्च शिक्षा की आधारभूत संरचना बढ़ाने पर बल देना जरूरी है. कॉलेजों की संख्या में वृद्धि युवाओं के साथ समय की भी जरूरत है. बजट में ग्रामीण कनेक्टिविटी बढ़ाने की जरूरत है. बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने का प्रयास होना चाहिए. पर्यटन पर ध्यान देना होगा. बजट का ‘मिड टर्म रिव्यू’ कर काम नहीं करनेवाले विभागों की राशि काट कर बेहतर प्रदर्शन करनेवाले विभागों को आवंटित की जायेगी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में एसटी-एससी को बैंक पूरी तरह से नकार देते हैं. चाईबासा में समीक्षा के दौरान पता चला कि एक बैंक में 26 हजार करोड़ पड़े हुए हैं. धनबाद, जमशेदपुर जैसे जिलों के यह राशि लाखों हजार करोड़ में होगी. लेकिन, उन्हीं बैंकों का ‘लेंडिंग रेशियो’ झारखंड में बहुत खराब है. सरकार गारंटर बन कर लोगों को स्वरोजगार के लिए न्यूनतम ब्याज पर बैंकों से ऋण उपलब्ध करा रही है, पर लोग रुचि नहीं ले रहे. श्री सोरेन ने कहा कि जेब में पैसा हो, तो बुद्धि भी चलने लगती है.
सरकार की भी वही मजबूरी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि बड़े शहरों में आमलोगों का बजट से सरोकार रहता है. लेकिन, झारखंड में बजट में केवल सरकार और उसके पदाधिकारियों की ही भूमिका रहती है. मुख्यमंत्री ने कहा : झारखंड देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार है. मैं हाल ही में एक जगह गया था, जहां 40 वर्षों से न कोई बाहर से आया और न ही कोई गया. बिना सड़क, बिजली और पानी के वहां की दशा का अंदाजा लगाया जा सकता है. राज्य में ऐसे कई और गांव अब भी है. राज्य के लोगों की हाल और भौगोलिक स्थिति को देख कर ही बजट तैयार करना होगा.
मुख्यमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद झारखंड में बड़ी-बड़ी कंपनियां आयीं. देश टाटा-बिड़ला के नाम से जाना जाता था और उसी टाटा ने झारखंड से ही अपना कारोबार शुरू किया था. बोकारो स्टील प्लांट, एचइसी जैसी फैक्ट्रियां यहां बनीं. विशाल वाटर रिजर्वायर बना. इन जगहों पर काम करने के लिए राज्य में लोग नहीं थे.
बड़े पैमाने पर दूसरे राज्यों से लोगों ने आकर उद्योग और फैक्ट्रियां चलायीं. उद्योग लगाने के लिए निश्चित रूप से उस समय लोग विस्थापित हुए ही होंगे. उनको नौकरी भी मिली होंगी. लेकिन, आज कोई विस्थापित नहीं दिखता है. शायद इसलिए कि वे काम के लायक नहीं थे और उनको बाहर कर दिया गया. इस बिंदु को ध्यान में रख कर बजट तैयार करना जरूरी है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में रोड और एयर कनेक्टिविटी के बाद जल मार्ग भी विकसित किया गया है. राज्य में अंग्रेजों के समय से 100 साल पुरानी रेल सुविधा है, जिसका उपयोग केवल खनिज ढोने के लिए होता था. राज्य के 23 जिले अगल-बगल के किसी राज्य से जुड़े हैं.
साहिबगंज में गंगा पर पुल बनने से नॉर्थ-इस्ट का रूट इसी रास्ते से होकर जायेगा. इस जल मार्ग को भी केवल खनिज ढोने के लिए विकसित किया गया है या आमलोगों को भी इसका फायदा होगा, यह आनेवाला समय ही बतायेगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि बैंकों के मर्जर और रेलवे के निजीकरण के बाद युवाओं को नौकरी देने का पूरा बोझ राज्य सरकार के कंधे पर है. झारखंड शिक्षा व खेल में काफी आगे बढ़ा है. सरकार ग्रामीण स्तर तक खेल के मैदान और एस्ट्रो टर्फ बना रही है. लड़कों को भी मेल नर्स के रूप में ट्रेंड करने की तैयारी है.