प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद. दिन में चढ़ते पारा के साथ नेताओं के नाम उछलते हैं, शाम तक जमीन पर होते हैं. जितनी मुंह, उतनी बात. जितने नेता, उतने समीकरण. पिछले दो-तीन महीने से बतकही और तरह-तरह चर्चा से कांग्रेस गरम है. रांची से दिल्ली तक नेता रेस हैं. हांफ रहे हैं, लेकिन बात नहीं बन रही. मामला कहीं ना कहीं अटक रहा है. कांग्रेस में सबसे पहले अध्यक्ष पद के दावेदार के रूप में बंधु तिर्की का नाम उछला.
श्री तिर्की ने भी दिल्ली की खूब दौड़ लगायी. पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल से लेकर प्रभारी अविनाश पांडेय तक पहुंचे. बात बनती, उससे पहले कांग्रेस में बंधु विरोधी खेमा सक्रिय हो गया. खूंटी से कालीचरण मुंडा को आगे बढ़ाया गया. सरना आदिवासी का कार्ड कुछ नेताओं ने चल दिया. कालीचरण मुंडा दिल्ली भी गये. कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, रामेश्वर उरांव, पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु सहित कई नेताओं की बैकिंग थी.
शायद कालीचरण मुंडा केंद्रीय नेतृत्व को बहुत प्रभावित नहीं कर पाये. दिल्ली की हरी झंडी नहीं मिली. मामला यहां शांत नहीं हुआ. इधर, भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश की कमान सौंप दी. राज्य के एक कद्दावर नेता श्री मरांडी को कमान मिलने के बाद कांग्रेस के रणनीतिकार अलग ही गोटी चलने लगे. बात गैर आदिवासी की शुरू हुई.
पहले से मन बनाये पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के लिए माहौल बना. दलील थी कि बाबूलाल के सामने कांग्रेस भी बड़े कद-काठी के नेता को आगे करे. सुबोधकांत का दिल्ली लॉबी भी सक्रिय हुआ. मामला कुछ सेट होता, इससे पहले केंद्रीय नेतृत्व के सामने ओबीसी कार्ड खेला गया. अब दलील थी कि ओबीसी का बड़ा वोट बैंक है, केंद्रीय नेतृत्व को समझाया-बुझाया गया. अब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व दिल्ली में पैठ बना चुके डॉ अजय कुमार सामने आये.
इधर, प्रदेश के ओबीसी नेताओं को भी परिस्थिति पक्ष में दिखने लगा. डॉ अजय के नाम पर संभवत: केंद्रीय नेतृत्व सहमत नहीं था, उनको दिल्ली में ही रखना चाहता था. डॉ अजय ने बेहतर प्रवक्ता के रूप में अपनी पहचान बनायी है. इस बीच घटनाक्रम बदला.
कांग्रेस विधायक दल के उपनेता प्रदीप यादव की पार्टी के बड़े नेता राहुल गांधी से मुलाकात हो गयी. प्रदीप यादव की राहुल से मुलाकात के बाद चर्चा का बाजार भी गरम हुआ. अब तक रेस से बाहर श्री यादव की यह मुलाकात अहम मनी जाने लगी. फिर क्या था, कांग्रेस का एक गुट फिर सक्रिय हुआ. राज्यसभा सांसद जिनके परिवार का कांग्रेस से लंबा इतिहास रहा है धीरज साहू को प्रोजेक्ट कर दिया.
हालांकि मन-मिजाज से श्री साहू अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी लेने से भागते रहे हैं, वह कभी इस दौड़ में शामिल नहीं रहे. लेकिन प्रदीप यादव का रास्ता रोकने के लिए संतालपरगना से जुड़े कुछ कांग्रेसी नेताओं ने एक मजबूत पत्ता खोल दिया है. फिलहाल कांग्रेस के थियेटर में प्रदेश अध्यक्ष का शो चल रहा है. इस पूरी पटकथा का रोमांच बाकी है, अध्यक्ष पद के लिए नाम तय होना है. सबकुछ दिल्ली में बैठे आला डायरेक्टर ही तय करेंगे.