Jharkhand Foundation Day: 15 नवंबर यानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती. एक पवित्र दिन. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. बाबा तिलका मांझी, सिदो-कान्हू , बुधु भगत, नीलांबर-पीतांबर, तेलंगा खड़िया और बिरसा मुंडा के संघर्ष ने आजादी का रास्ता खोला था, लेकिन इतिहास ने आदिवासी नायकों के साथ नाइंसाफी की है. इन आंदोलनों के अधिकतर नायक गुमनाम ही रह गये. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इन गुमनाम नायकों को खोज निकालने-सम्मान देने का वक्त आ गया है और यही बिरसा मुंडा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
अंग्रेज सैनिकों ने एक बच्चे को भी मार दिया था
बिरसा मुंडा के उलगुलान और उस आंदोलन के गुमनाम नायकों की चर्चा करें, तो बिरसा मुंडा और उनके समर्थकों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे. सईल रकब की अंतिम लड़ाई इसका उदाहरण है. इसमें कितने लोग मारे गये थे, इसका कोई हिसाब नहीं है. 9 जनवरी 1900 को जब सईल रकब पर बिरसा मुंडा के समर्थकों पर कैप्टन रोसे ने अंधाधुंध फायरिंग की थी, उसमें जियूरी गांव के मझिया मुंडा, डुंडांग मुंडा और बंकन मुंडा की पत्नी कैप्टन रोसे के सैनिकों के साथ लड़ते हुए शहीद हो गयी थीं. सैनिकों ने एक बच्चे को भी मार दिया था.
बिरसा आंदोलन में हुए थे शहीद
जियूरी के अलावा गुट्टुहातू गांव का भी बड़ा योगदान रहा है. इसी संघर्ष में गुटुहातू गांव के हति राम मुंडा और हाड़ी राम मुंडा मारे गये थे. ये दोनों मंगन मुंडा के पुत्र थे और दोनों बेटे बिरसा आंदोलन में शहीद हो गये थे. कहा तो यह भी जाता है कि इन दोनों में से एक हति राम मुंडा गंभीर रूप से घायल थे और उन्हें इसी हालत में अंग्रेजों ने जिंदा दफना दिया था. मंगन मुंडा के घर में रहनेवाले लेकुआ मुंडा भी सईल रकब गोलीबारी में मारे गये थे.
बहादुर महिला माकी मुंडा और गया मुंडा
बहादुर महिला में एक और नाम आता है माकी मुंडा का. वह गया मुंडा की पत्नी थीं. गया मुंडा बिरसा मुंडा का दाहिना हाथ थे और जब गया मुंडा के घर पर अंग्रेज पुलिस उन्हें पकड़ने गयी थी, माकी मुंडा, उनकी तीनों बेटियां थिगी, नाग, लेंबू और बहुओं ने बहादुरी से टांगी, कटारी, तीर, लाठी से सैनिकों पर हमला कर गया मुंडा को बचाने का प्रयास किया था. गया मुंडा के परिवार का बिरसा आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है. बाद में गया मुंडा और उनके बेटे को फांसी दे दी गयी थी. बिरसा मुंडा के आंदोलन में सईल रकब की लड़ाई में महिलाओं ने बड़ी भूमिका अदा की थी.जब कैप्टन रोसे के सैनिक सईल रकब पर मौजूद बिरसा समर्थकों पर फायरिंग कर रहे थे, इन महिलाओं ने तीर-धनुष से तब तक जवाब दिया, जब तक वे शहीद नहीं हो गयीं. वे पीछे नहीं हटीं.
क्रूर थे अंग्रेज अफसर
अंग्रेज अफसर इतने क्रूर थे कि उन्होंने महिलाओं को भी गोली मार दी. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड क्षेत्र में एक गांव की तीन महिलाओं का पुलिस की गोली से शहीद होने का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता. झारखंड का इतिहास ऐसे बहादुरों की शहादत से भरा पड़ा है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि इतिहास में इनका उल्लेख नहीं हुआ. इसका नतीजा यह हुआ कि आज इन गांवों के लोग भी नहीं जानते कि उनके पुरखों का कितना बड़ा योगदान रहा है.
बिरसा आंदोलन के गुमनाम शहीद
इन वीरों के अलावा बिरसा के आंदोलन में कई और आदिवासी शहीद हुए थे, लेकिन वे गुमनाम हैं. इनमें से कई तो फायरिंग में घायल हो गये थे, जिन्होंने बाद में दम तोड़ दिया था. कुछ गिरफ्तार हुए, जिन्हें जेल में प्रताड़ित किया गया, जिससे उनकी मौत हो गयी. कर्रा के डूना मुंडा, डेमखानेल के घेरिया मुंडा, टेमना गांव के मालका मुंडा, तोरपा के मानदेव मुंडा, जनुमपीढ़ी के नरसिंह मुंडा और सांदे मुंडा, पातर मुंडा, उलिहातू के सुगना मुंडा, चक्रधरपुर के सुखराम मुंडा (आजीवन कारावास के दौरान जेल में मौत) आदि हैं. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इन गुमनाम नायकों को खोज निकालने-सम्मान देने का वक्त आ गया है और यही बिरसा मुंडा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.