संजय/मनोज सिंह, रांची :
झारखंड में गवर्मेंट (सरकार) मेकिंग हमेशा से रोमांच से भरा रहा है. लंबे आंदोलन व संघर्ष के बाद झारखंड अलग राज्य बना. 15 नवंबर का दिन भगवान बिरसा की जयंती शुभ मान कर पहली सरकार बनी थी. लेकिन, मात्र 23 साल के कालखंड में झारखंड के लोगों ने 12 सरकारें देख ली है. इतने वर्षों में केवल रघुवर दास ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने. दो बार हेमंत सोरेन भी मुख्यमंत्री रहे. एक-एक बार बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, मधु कोड़ा को मौका मिला.
अलग राज्य गठन के बाद बाबूलाल पहले मुख्यमंत्री बने. 2002 में ही इस एनडीए सरकार के दो सहयोगी दलों जदयू व समता पार्टी के विधायकों ने बगावत कर दी. तब के विधायक लालचंद महतो, मधु सिंह, रमेश सिंह मुंडा (अब स्व) व जोबा मांझी सहित अन्य इसमें शामिल थे. विधानसभा में ये लोग यूपीए के साथ हो लिये. राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष जदयू के इंदरसिंह नामधारी को बतौर मुख्यमंत्री पेश किया गया. इसके बाद सरकार मेरी कि तेरी को लेकर खूब ड्रामा हुआ. यूपीए अपने विधायकों सहित एनडीए के असंतुष्टों को बस (कृष्णारथ) से बुंडू ले गया था. राजद विधायक संजय यादव चालक बने थे व स्टीफन मरांडी कंडक्टर. 16 मार्च 03 को बुंडू के लाह कोठी में ताश,चेस व लूडो खेला गया. पिकनिक हुई. बाबूलाल विरोध को भांपते हुए एनडीए को नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा. बाबूलाल की सरकार चली गयी.
18 मार्च 2003 को अर्जुन मुंडा की सरकार बनी. फिर 2005 में झारखंड का पहला विधानसभा चुनाव हुआ. स्थिति स्पष्ट नहीं थी. फिर भी तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया. शिबू के पास बहुमत नहीं था. एनडीए ने राज्यपाल के इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए अपने विधायकों की दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में परेड (17 मार्च 05) करा दी. मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया. कोर्ट के आदेश पर यूपीए को बहुमत साबित करने को कहा गया. ऐन वक्त पर कमलेश सिंह व जोबा ने यूपीए को धोखा दे दिया. कमलेश बीमारी के बहाने अस्पताल में भरती हो गये. वहीं जोबा की गाड़ी रास्ते में खराब हो गयी. पासा पलटता देख 10 दिन मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन ने विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इससे पहले राजग ने इस डर से कि उनके विधायक पलटी न मार दें, उन्हें जयपुर की सैर करायी थी. उस यात्रा में विधायक लगभग नजरबंद थे. देश भर में राजनीति के इस झारखंडी शैली की आलोचना हुई थी. अंतत: राज्य में फिर से अर्जुन मुंडा की सरकार बनी.
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इसी मुंडा सरकार में मधु कोड़ा भी मंत्री हुआ करते थे. कोड़ा को मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा व इसी सरकार के गृह मंत्री सुदेश महतो की कार्य शैली नापसंद थी. इसी बीच कोड़ा दिल्ली चले गये. यूपीए से अपने मन की बात कही. तीन निर्दलीय विधायकों एनोस, कमलेश व हरिनारायण को उन्होंने अपने पाले में लिया. इशारा किया कि आ जाये. एनोस व हरिनारायण तो चुपके-चुपके दिल्ली पहुंच गये, लेकिन कमलेश जमशेदपुर में धरा गये. गजब का हंगामा हुआ. बाद में कोड़ा सहित इन तीनों ने मुंडा सरकार से इस्तीफा (5 सितंबर 06) दे दिया. यूपीए के विधायकों को देश के अलग-अलग हिस्सों की सैर करायी गयी. सैर-सपाटे के बाद सभी विशेष विमान से रांची पहुंचे. अपनी सरकार को अल्पमत में पाकर अर्जुन मुंडा ने भी राज्यपाल को इस्तीफा (14 सितंबर 06) सौंप दिया. अब मधु कोड़ा के नेतृत्व में झारखंड में सरकार बन गयी.
कोड़ा सरकार अपने अंदाज में चलती रही. कोड़ा सरकार के दो साल होने से एक माह पहले ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया. निर्दलीयों ने कोड़ा के पक्ष में पैतरेंबाजी की. सरकार गिराने की धमकी भी दी गयी, लेकिन कांग्रेस व राजद को शिबू के सामने झुकना पड़ा. शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गये. सभी निर्दलीय विधायकों को भी मंत्री बनाया गया. इधर चार माह बाद ही शिबू तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गये. यह सीट जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के कारण खाली हुई थी. इसके बाद 19 जनवरी 09 को राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा. राज्य का पहला राष्ट्रपति शासन काल सैयद सिब्ते रजी के बाद राज्यपाल के शंकरनारायणन के कारण यादगार बन गया. 2009 का विधानसभा चुनाव हुआ. 23 दिसंबर 09 को जब परिणाम की घोषणा हुई, तो राज्य की जनता फिर खुद को ठगा महसूस करने लगी. विधानसभा फिर त्रिशंकु हो गयी थी. फिर से जोड़-तोड़ का खेल शुरू हुआ. आजसू के सहयोग से राज्य में भाजपा-झामुमो की सरकार (30 नवंबर 09) बनी. लोकसभा के सांसद शिबू मुख्यमंत्री बने. आजसू के मुखिया सुदेश व भाजपा के रघुवर उप मुख्यमंत्री.
सरकार चल रही थी. शिबू को किसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना था. इसी बीच शिबू सोरेन ने लोक सभा में कट मोशन के दौरान यूपीए को वोट दे दिया. इधर झारखंड में शिबू सरकार के सहयोगी दल भाजपा को यह नागवार गुजरा. उसने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद एक जून 10 को दोबारा राष्ट्रपति शासन लगा. करीब तीन माह बाद भाजपा व झामुमो फिर से एक मंच पर आये. झामुमो के अनुसार 28-28 माह सरकार में रहने की शर्त पर सरकार बनी. पहले भाजपा को मौका दिया गया. अर्जुन मुंडा राज्य के मुख्यमंत्री बने. फिर अपनी बारी को लेकर झामुमो ने सरकार गिरा दिया.
राज्य में तीसरी बार 18 जनवरी 2013 को राष्ट्रपति शासन लगाया गया जो 176 दिन बाद 13 जुलाई 2013 को समाप्त हुआ. इसके बाद जेएमएम नेता हेमंत सोरेन राज्य के नौवें मुख्यमंत्री बने. श्री सोरेन की सरकार राजद, कांग्रेस और तीन छोटे-छोटे दलों के सहयोग से बनाया गया. हेमंत की सरकार को कुल 43 विधायकों का समर्थन प्राप्त था. हेमंत सरकार ने विधानसभा चुनाव तक अपना कार्यकाल पूरा किया. हेमंत सरकार एक साल 168 दिन रही.
2014 में विधानसभा का चुनाव हुआ. इसमें भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में सत्ता में आयी. रघुवर दास को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया. सरकार बनाने के समय भाजपा के पास बहुमत की सरकार थी. अलग-अलग चुनाव लड़ने वाले आजसू को भी रघुवर दास की सरकार में मंत्री का पद दिया गया. चंद्रप्रकाश चौधरी को मंत्री बनाया गया. कुछ माह के बाद ही रघुवर दास की सरकार में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोरचा के कई विधायक भाजपा में शामिल हो गये. झाविमो से आये रणधीर सिंह, अमर बाउरी को मंत्री भी बनाया गया. यह सरकार पूरे पांच साल 29 दिसंबर 2019 तक चली.
विधानसभा चुनाव के बाद 11वीं सरकार के लिए बड़े दल के रूप में चुनी गयी झारखंड मुक्ति मोरचा ने गठबंधन दलों के साथ दावा पेश किया. हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री चुने गये. उनको 29 दिसंबर 2019 को शपथ दिलायी गयी. इसको कांग्रेस, राजद, माले के साथ-साथ निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त रहा. इसी बीच हेमंत सोरेन पर मनी लाउंड्रिंग का मामला दर्ज किया गया. इसी मामले में 31 जनवरी 2024 को इडी ने गिरफ्तार कर लिया. 31 जनवरी को गिरफ्तार होने से पहले हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दे दिया.
श्री सोरेन के इस्तीफे के बाद एक दिन तक नयी सरकार गठन को लेकर संशय की स्थिति रही. झामुमो गठबंधन दलों ने चंपई सोरेन को अपना नया नेता चुना. दो फरवरी को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने आलमगीर आलम और सत्यानंद भोक्ता को मंत्री तथा श्री सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी. शपथ लेने से पहले ही सत्ता पक्ष के सभी विधायक चार्टर्ड विमान से हैदराबाद चले गये. सभी विधायकों को एकजुट रखने के लिए एक साथ कुछ विधायकों को छोड़ सभी को रिपोर्ट में ठहराया गया है.