भाजपा ने चुनावी वर्ष से पहले अपना पत्ता चल दिया है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन के सामने बड़ा चेहरा खड़ा किया है. बाबूलाल मरांडी झारखंड की राजनीति की धुरी रहे हैं. भाजपा में वापसी के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व ने श्री मरांडी पर भरोसा जताया. विधायक दल का नेता बनाया. अब संगठन की जिम्मेवारी दी है. बाबूलाल बेहतर संगठनकर्ता रहे हैं.
विश्व हिंदू परिषद, विहिप से काम करते हुए वनांचल भाजपा में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी निभायी. वर्ष 1991 में भाजपा के मुख्यधारा से जुड़े. नब्बे के दशक में पूरे प्रदेश में संगठन को खड़ा करने में बड़ी भूमिका रही. अटल-आडवाणी के समय से ही बाबूलाल को भाजपा ने झामुमो के सामने प्रोजेक्ट किया. वर्ष 1998 में दुमका से शिबू सोरेन, फिर दुमका से ही रूपी सोरेन को हरा कर संताल परगना में भाजपा की जमीन तैयार कर दी.
शिबू सोरेन को हराने के बाद बाबूलाल सुर्खियों में आये और इनका राजनीतिक कद बढ़ा. स्व अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वर्ष 1999 में केंद्रीय वन पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया. राज्य गठन के बाद तमाम अटकलों को दरकिनार कर बाबूलाल को पार्टी ने राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया. हालांकि तीन वर्षों में ही राजनीतिक उथल-पुथल में बाबूलाल को सत्ता से हटना पड़ा. भाजपा के अंदर दूरियां बढ़ीं और 2006 में अलग होकर झाविमो नाम की पार्टी बनायी. बाबूलाल के नेतृत्व में झाविमो झारखंड की राजनीति का एक कोण बन गया था.
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2019-20 में बाबूलाल की भाजपा में वापसी के साथ ही पार्टी के अंदर की राजनीति बदल गयी. वापसी के बाद बाबूलाल मरांडी प्रदेश की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ सर्वाधिक मुखर रहे. भाजपा ने उन्हें विधायक दल का नेता चुना. पर यह मामला अब तक कानूनी पचड़े में फंसा है. राजनीति के जानकार विधायक दल के नेता का मामला लटकाने को झामुमो की एक बड़ी राजनीतिक चूक मान रहे हैं.
शायद इसीलिए भाजपा नेतृत्व ने झारखंड में यूपीए के सामने एक बड़ा आदिवासी चेहरा खड़ा किया. पार्टी नेतृत्व के फैसले ने उन चर्चाओं को भी विराम दिया, जिसमें कहा जा रहा था कि भाजपा में बाबूलाल की ज्यादा चल नहीं रही है? पार्टी में वह साइडलाइन कर दिये गये हैं?
अब बाबूलाल को फिर बड़ी जवाबदेही मिली है. भाजपा बाबूलाल के सहारे कोल्हान और संताल परगना में पैठ बनाना चाहती है. राज्य के पांच आदिवासी सीटों पर पैठ बढ़ाने की रणनीति होगी. दुमका, राजमहल, चाईबासा, खूंटी और लोहरदगा की एसटी सीट में तीन पर भाजपा का कब्जा है. भाजपा ने यह सीटें बहुत की कम अंतर से जीती है. वहीं लोकसभा में पार्टी ने माहौल बना लिया, तो इसका असर विधानसभा में दिखेगा.