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झारखंड : सांसदों व विधायकों के खिलाफ लंबित मामले जल्द निबटेंगे, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का है ये निर्देश

पहला मुद्दा ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा-8 की संवैधानिक वैधता’ और दूसरा ‘सांसदों-विधायकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों’ से संबंधित था. सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे बिंदु पर अपना फैसला सुनाया है

शकील अख्तर, रांची:

सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को आरोप गठन की तिथि से एक साल के अंदर निबटाने का आदेश दिया. वहीं, हाइकोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर ट्रायल कोर्ट में चल रहे मुकदमों की मॉनिटरिंग करने और सांसदों-विधायकों के मामलों को तय समय सीमा में निबटाने का निर्देश जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ डीवाइ चंद्रचूड़, न्यायाधीश पमिदिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ ने ‘अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम केंद्र सरकार’ के मामले में यह फैसला दिया है. अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दो मुद्दों को आधार बना कर दायर की थी.

पहला मुद्दा ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा-8 की संवैधानिक वैधता’ और दूसरा ‘सांसदों-विधायकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों’ से संबंधित था. सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे बिंदु पर अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले बिंदु पर सुनवाई के दौरान सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सांसदों व विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का ब्योरा मांगा था. कोर्ट ने नवंबर 2022 तक के इन ब्योरों की समीक्षा में पाया कि सबसे ज्यादा 1377 मामले उत्तर प्रदेश के सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित हैं.

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इस मामले में बिहार के दूसरा स्थान है. वहां के सांसदों विधायकों के खिलाफ कुल 381 मामले लंबित हैं. इस मामले में पूरे देश में झारखंड का स्थान 10वां है. यहां सांसदों व विधायकों के खिलाफ कुल 198 मामले लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद सांसदों व विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों को निबटाने और मॉनिटरिंग के लिए दिशा-निर्देश जारी किया है. साथ ही हाइकोर्ट, ट्रायल कोर्ट और पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देश व जिम्मेदारी

ट्रायल कोर्ट सबसे पहले उन मामलों की सुनवाई करेगा, जिसमें मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान हो.

ट्रायल कोर्ट में दूसरे नंबर पर वैसे मामलों की सुनवाई होगी, जिसमें पांच साल या इससे अधिक की सजा का प्रावधान हो.

ट्रायल कोर्ट में तीसरे नंबर पर इससे कम सजा के प्रावधान वाले मामलों की सुनवाई होगी.

विशेष परिस्थितियों के अलावा सुनवाई स्थगित नहीं की जायेगी.

आरोप गठन की तिथि से एक साल के अंदर मुकदमे का निबटारा नहीं होने के कारणों पर हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को रिपोर्ट

देनी होगी.

हाइकोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर सांसदों विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों की विशेष बेंच बना कर मॉनिटरिंग करेगा.

हाइकोर्ट सांसदों व विधायकों के मामले में ट्रायल पर दिये गये स्टे ऑर्डर की समीक्षा दो महीने के अंदर कर उचित आदेश पारित करेगा.

विशेष बेंच में मॉनिटरिंग से जुड़ी सुनवाई के दौरान आइजी स्तर

के पुलिस अधिकारी को मौजूद रहना होगा.

ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी वारंट के आलोक में वारंटी को हाजिर कराने की जिम्मेदारी जिले के एसपी को होगी.

गवाहों के नाम जारी किये गये समन को तामिला कराने के लिए संबंधित थाने के थाना प्रभारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे.

गवाहों की सुरक्षा के लिए विधानसभा या संसद द्वारा कानून बनाने से पहले तक ‘विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम-201’ का सहारा लिया जायेगा.

फॉरेंसिक लैब एक महीने के अंदर लंबित फॉरेंसिक रिपोर्ट जारी करेंगे.

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