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झारखंड के सरकारी संस्कृत विद्यालयों में एक भी शिक्षक नहीं, लेकिन मध्यमा का परीक्षा परिणाम 99 प्रतिशत

वर्ष 2019 में झारखंड एकेडमिक काउंसिल या जैक ने मध्यमा के परीक्षार्थियों की कॉपी की जांच हाइस्कूल शिक्षकों से करायी,तो रिजल्ट में काफी कमी आ गयी. वर्ष 2019 में रिजल्ट राज्य गठन के बाद सबसे कम हो गया. मात्र 55 फीसदी विद्यार्थी ही पास कर सके. संस्कृत स्कूल के संचालक व शिक्षकों ने इसका विरोध किया.

Madhyama Sanskrit Result Jharkhand रांची : राज्य के संस्कृत विद्यालय मात्र डिग्री लेने का माध्यम बन गये हैं. यहां के सरकारी संस्कृत स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं, लेकिन मध्यमा का 99 फीसदी तक का परिणाम निकलता रहा है. मध्यमा में सिर्फ 2019 का साल ऐसा रहा, जिसमें संस्कृत स्कूलों का रिजल्ट 55 फीसदी हुआ था. वहीं, पिछले 10 वर्षों में मैट्रिक-इंटर का रिजल्ट ही कभी भी झारखंड में 90 फीसदी तक नहीं पहुंचा. परीक्षा फॉर्म जमा होने तक नामांकन प्रक्रिया चलती रहती है. विद्यार्थी बिना एक दिन स्कूल गये परीक्षा में शामिल हो जाते हैं.

बाहरी शिक्षकों ने किया मूल्यांकन तो 55 फीसदी रिजल्ट :

वर्ष 2019 में झारखंड एकेडमिक काउंसिल या जैक ने मध्यमा के परीक्षार्थियों की कॉपी की जांच हाइस्कूल शिक्षकों से करायी,तो रिजल्ट में काफी कमी आ गयी. वर्ष 2019 में रिजल्ट राज्य गठन के बाद सबसे कम हो गया. मात्र 55 फीसदी विद्यार्थी ही पास कर सके. संस्कृत स्कूल के संचालक व शिक्षकों ने इसका विरोध किया. वर्ष 2020 में फिर संस्कृत स्कूल के शिक्षकों ने कॉपी की जांच की, तो रिजल्ट 94 फीसदी हो गया.

बंद हो गये 70 निजी संस्कृत विद्यालय :

राज्य गठन के बाद से झारखंड में लगभग 70 निजी संस्कृत विद्यालय बंद हो गये. जो चल भी रहे हैं, तो वहां पढ़ाई-लिखाई नाम मात्र की है. राज्य में वर्तमान में 33 मान्यता प्राप्त व छह राजकीय (सरकारी) संस्कृत विद्यालय हैं. इनमें से 24 विद्यालयों से विद्यार्थी मध्यमा (मैट्रिक) की परीक्षा में शामिल होते हैं. एकीकृत बिहार में कुल 17 सरकारी संस्कृत विद्यालय थे. इनमें से छह विद्यालय झारखंड के देवघर, रांची, हजारीबाग, मेदिनीनगर, धनबाद व चाईबासा जिले में हैं.

मध्यमा के सर्टिफिकेट को देश भर में मान्यता :

मध्यमा के सर्टिफिकेट को 10वीं के समतुल्य मान्यता है. इसके आधार पर विद्यार्थी आगे के सामान्य कॉलेज में भी नामांकन ले सकते हैं. सरकारी नौकरी, प्रोन्नति, व अन्य सरकारी कार्यों के लिए भी सर्टिफिकेट मान्य है.

मात्र डिग्री लेना होता है उद्देश्य

जानकारी के अनुसार, मध्यमा की परीक्षा में शामिल होनेवाले अधिकतर विद्यार्थी पहले से संस्कृत स्कूल में पढ़ाई नहीं कर रहे होते हैं. वह सीधे या फिर निजी परीक्षार्थी के रूप में परीक्षा में शामिल होते हैं या फिर सीधे हाइस्कूल में कक्षा नौ या 10 में नामांकन लेते हैं. राज्य में मध्यमा परीक्षा पास करनेवाले छह हजार विद्यार्थियों में से एक हजार विद्यार्थी ही उप शास्त्री (इंटर) में संस्कृत कॉलेजों में नामांकन लेते हैं. ऐसे में देखा जाये, तो मध्यमा की परीक्षा में शामिल होनेवाले 80 फीसदी से अधिक विद्यार्थी न तो पहले और न ही बाद में संस्कृत की पढ़ाई करते हैं. अधिकतर विद्यार्थियों का उद्देश्य भी संस्कृत की पढ़ाई नहीं, बल्कि डिग्री लेना होता है.

वेद व ज्योतिष की होती है पढ़ाई

संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक समेत शिक्षक के कुल नौ पद सृजित हैं. इनमें चार शिक्षक संस्कृत के हैं. संस्कृत में व्याकरण, साहित्य, वेद व ज्योतिष के पद सृजित हैं. इसके अलावा गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, हिंदी व अंग्रेजी के एक-एक शिक्षक के पद सृजित हैं. संस्कृत के संबंधित विषय को छोड़कर शेष अन्य विषयों की पढ़ाई एनसीइआरटी के पाठ्यक्रम पर आधारित है.

मध्यमा परीक्षा में वर्षवार शामिल परीक्षार्थियों के रिजल्ट का प्रतिशत

वर्ष परीक्षार्थी रिजल्ट

2017 5400 99%

2018 6300 99%

2019 6700 55%

2020 7000 94.16

संस्कृत स्कूलों में नहीं हुई ऑनलाइन क्लास

मार्च 2020 से कोविड-19 के संक्रमण के कारण राज्य में विद्यालय बंद हैं, लेकिन संस्कृत स्कूलों में इस दौरान विद्यार्थियों की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं की गयी. उसके बाद भी पिछले वर्ष रिजल्ट 94 प्रतिशत रहा. इधर, कुछ संस्कृत विद्यालयों में हाइस्कूल के शिक्षक प्रतिनियुक्त किये गये हैं.

1994 से नहीं हुई शिक्षकों की नियुक्ति

सरकारी संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों की अंतिम नियुक्ति वर्ष 1994 में हुई थी. विद्यालय के अधिकतर शिक्षक सेवानिवृत्त हो गये. जो शिक्षक बचे, तो वह वर्ष 2018-19 में प्रोन्नति के बाद शिक्षा अधिकारी बन गये. इसके बाद से विद्यालय शिक्षक विहीन हो गया.

Posted By : Sameer Oraon

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