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उत्तराखंड टनल हादसा : 17 वर्षों की तरह बीते 17 दिन, पहले 18 घंटे भूखे रहे, पानी का पाइप बना लाइफलाइन

खीराबेड़ा के मजदूर राजेंद्र बेदिया को ऋषिकेश स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया है. राजेंद्र बेदिया से हमारे प्रतिनिधि ने बातचीत की. राजेंद्र के अनुसार घटना के बाद उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया था.

रांची : उत्तरकाशी (उत्तराखंड) के निर्माणाधीन टनल में 17 दिनों तक जिंदगी से लड़ने के बाद मंगलवार की रात 41 मजदूरों को दूसरी जिंदगी मिली. इससे देशभर में खुशी का माहौल है. इनमें रांची के छह, खूंटी के दो, गिरिडीह के दो, पूर्वी सिंहभूम (झारखंड) जिले का सबसे पिछड़ा प्रखंड डुमरिया के छह मजदूर भी हैं. सभी फिलहाल ऋषिकेश के एम्स में भर्ती हैं. बुधवार को फोन से प्रभात खबर ने अंदर फंसे कई मजदूरों से बात की. सभी ने 17 दिनों तक जिंदगी के लिए जद्दोजहद की आपबीती बतायी. मजदूरों ने बताया कि सुरंग के अंदर 17 दिन 17 वर्षों की तरह बीते. विपत्ति में हम 41 मजदूर एक दूसरे के हौसला बनते रहे. घटना के बाद 18 घंटों तक हमें भूखे रहना पड़ा. पानी के पाइप से हमने कागज पर लिखकर अंदर फंसने की जानकारी दी. शुरुआत के दिनों में पानी का पाइप हमारी लाइफ लाइन था.

प्रधानमंत्री व सीएम दे रहे थे हिम्मत : राजेंद्र

खीराबेड़ा के मजदूर राजेंद्र बेदिया को ऋषिकेश स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया है. राजेंद्र बेदिया से हमारे प्रतिनिधि ने बातचीत की. राजेंद्र के अनुसार घटना के बाद उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया था. सुबह और रात का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था. लेकिन, उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें निकालने के लिए कुछ न कुछ किया जा रहा होगा. राजेंद्र ने कहा कि परिवार के लोग बहुत याद आ रहे थे. दो दिन के बाद जब ड्रिलिंग कर एक पाइप भेजी गयी, तब उनकी उम्मीद बढ़ गयी थी. पाइप के जरिये ही खाना भेजा जाता था. इस बीच दो बार प्रधानमंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से बात हुई. वे हमें हिम्मत दे रहे थे. खाने में चावल-दाल, सब्जी रोटी व सूखा आहार पाइप के जरिये भेजे जा रहे थे. राजेंद्र ने कहा कि वह घर का इकलौता कमानेवाला है. उसे चिंता थी कि यदि उसे कुछ हो जायेगा, तो माता-पिता का क्या होगा. राजेंद्र के अनुसार इतने दिनों तक वह ठीक से सो नहीं पा रहा था.

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दिन और रात का नहीं चल रहा था पता: सुखराम

उत्तराखंड के ऋषिकेश अस्पताल से भर्ती ओरमांझी के खीराबेड़ा निवासी सुखराम बेदिया से हमारे प्रतिनिधि ने बुधवार की शाम करीब सात बजे से बातचीत की. सुखराम में कहा कि भगवान का शुक्र है कि उसे और उसके सभी साथियों को सुरक्षित निकाल लिया गया. सुखराम ने कहा कि घटना के बाद से ही उसे नींद नहीं आ रही थी. सुरंग में कहीं से रोशनी नहीं आने से दिन और रात का कुछ पता नहीं चल पा रहा था. सुखराम के अनुसार सभी एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

सबा अहमद व गब्बर सिंह दे रहे थे हिम्मत

कर्रा के गुमड़ू गांव निवासी मजदूर विजय होरो ने हमारे प्रतिनिधि से फोन पर बात की. विजय होरो ने कहा कि वह टनल के अंदर फोरमैन सबा अहमद और गब्बर सिंह के साथ था. घटना के बाद चारों तरफ अंधेरा था, लेकिन फोनमैन उसे हिम्मत दे रहे थे. विजय के अनुसार उसे विश्वास था कि सभी को सुरक्षित निकाला जायेगा. उसने कहा कि टनल के अंदर खाना और पानी के साथ ड्राइ फ्रूट दिये जाते थे. पाइप के जरिये ऑक्सीजन, दवा और सोने के लिए वाटर फ्रूफ बेड भेजे गये थे. विजय ने कहा कि माइक्रो फोन के सहारे बाहर के लोगों से बात हो रही थी. अंदर तापमान सामान्य था. बाहर निकलने के बाद उसे नयी जिंदगी मिली.

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