रांची : करम पर्व 14 सितंबर को मनाया जाएगा. यह झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसकी तैयारी में लोग कई दिन पहले से जुट जाते हैं. इस बार भी इसके आयोजन को लेकर राजधानी रांची समेत विभन्न पूजा स्थलों की साफ-सफाई हो चुकी है. इसके साज सजावट का भी कार्य लगभग पूरा हो चुका है. लेकिन मौजूदा समय में बदलते दौर के साथ करम पर्व को मनाने का तरीका भी बदल चुका है. जिसका व्यापक प्रभाव पड़ा है. प्रभात खबर के प्रतिनिधि समीर उरांव ने इसी बदलाव को जानने और समझने के लिए लेखक महादेव टोप्पो से खास बातचीत की.
करम पर्व मनाने के तरीके में क्या बदलाव हुआ है
महादेव टोप्पो ने करम पर्व के मनाने के तरीके पर हुए बदलाव के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि आदिवासियों में अपने फेस्टिवल और परंपरा के प्रति रूझान जागा है. संभवतः इसका बड़ा कारण झारखंड सरकार द्वारा पारित सरना कोड है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे देश में सरना धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या तकरीबन 50 लाख है. लेकिन पहले करम पर्व को जिस पारंपरिक तरीके से मनाया जाता था वह कहीं कहीं पर कम हुई है. 5 से 10 साल पहले मैं देखता था कि लोग इस त्योहार को इतने उत्साह के साथ नहीं मनाते थे. अब लोग अपने पारंपरिक ड्रेस के साथ इस पूजा में शामिल होते हैं.
मॉर्डन टेक्नोलॉजी के साथ क्या बदला
मॉर्डन टेक्नोलॉजी आने के साथ एक बदलाव ये भी हुआ है कि हमारे बच्चे जो गाना गाते थे, न सिर्फ अखड़ा में. बल्कि करम डाल लाते और ले जाते समय वह कई जगहों पर लुप्त हो चुका है. अब इसकी जगह डीजे ने ले ली है. इससे अपनी मातृ भाषा के साथ जो भावनात्मक लगाव होना चाहिए वह दूर हुआ है. पुराने समय में लोग इस त्योहार के आगमन से पहले ही गाना सीखने और अभ्यास में जुट जाते थे. अभी भी कई गांव में ये चीजें बंद नहीं हुई है. इसके अलावा पहले लोग करम के मौके पर एक दूसरे गांव में गाना गाते जाते थे. अब यह प्रथा बहुत सारे इलाकों में बंद हो चुका है.
लेखक महादेव टोप्पो ने गाना के महत्व को समझाने के लिए क्या उदाहरण दिया
लेखक महादेव टोप्पो ने इसके महत्व को समझाने के लिए एक उदाहरण दिया. उन्होंने कहा ”मैंने एक मैगजीन में पढ़ा था, जिसमें कृषि वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया. दरअसल उन्होंने दो जगह एक ही तरह के फसल बोये. दोनों को एक ही तरह के खाद और पानी दिये. लेकिन उनमें से एक फसल को उन्होंने गाना सुनाया जबकि दूसरे को गाना नहीं सुनाया. बाद में जब यह फसल तैयार हो गयी तो लोगों ने देखा कि जिस फसल को गाना सुनाया गया था वह दूसरे के मुकाबले में बेहतर हुई. अब लोग कहेंगे कि इसका करम से क्या संबंध है, तो मैं कहना चाहूंगा कि जिस वक्त इस पर्व को मनाया जाता है उस वक्त धान फूटने लगते हैं. हमारे पुरखों को शायद यह पता रहा होगा कि इस प्रथा को जीवित रखने का क्या फायदा है. संभवतः फसल की समृद्धि के लिए भी उन्होंने यह वातावरण बनाया होगा.
करम पर्व संध्या मनाने का प्रचलन बढ़ा है
आज की तारीख में करम पर्व संध्या मनाने का प्रचलन बढ़ गया है. यह अच्छी चीज है. अब इसे दूसरा सांस्कृतिक रूप भी दिया जा रहा है. जैसे कई आदिवासी संगठन इस मौके पर मैगजीन या पत्रिका प्रकाशित करते हैं. इससे आदिवासी समाज में लिखने पढ़ने और समझने का वातावरण तैयार हो रहा है. इससे लोगों को अपने समाज और संस्कृति के बारे में लिखने, पढ़ने का प्रोत्साहन मिलेगा.
झारखंड सरकार को अपनी संस्कृति को बचाने के लिए और क्या करना चाहिए
1. पहली बात तो यह है कि भाषा और संस्कृति का अलग विभाग बना. लेकिन अभी इसमें उतनी गतिविधि नहीं है. इसकी सक्रियता और बढ़ें.
2. दूसरी चीज आदिवासी भाषा में नाटक मंचन का एक मंच तैयार हो, जो अभी नहीं है.
3. भाषा, संस्कृति और कला के विकास के लिए एक स्वतंत्र एकेडमी तैयार होना चाहिए. मैं इसके लिए मध्यप्रदेश का उदाहरण दूंगा. उन्होंने वहां पर आदिवासी संग्राहालय बनाया है. आप उसे देखेंगे तो दंग रह जाएंगे. ट्राइबल शिल्पकारों ने ही इसे तैयार किया है. इस तरह की चीजें अगर आदिवासी ही सरकार की मदद से तैयार करेंगे तो यह बेहतर होगा.
4. आदिवासियों ने अपना कोई स्वतंत्रता मीडिया नहीं बनाया. इससे जो झारखंडी चेतना है वो दूसरे लोगों के माध्यम से दिखाई और समझायी जाती है.
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