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झारखंड के कोल माइंस इलाकों में बढ़ी रही फेफड़ों की समस्या, पहले सप्ताह में मिलते थे 1 से 2 अब मिल रहे हैं इतने

कोल माइंस और आसपास के इलाके में 2.5 पीएम वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा गया है, जिससे फेफड़ों से होने वाली बीमारी के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पहले सप्ताह में 1 से 2 मरीज मिल रहे थे अब. अब प्रतिदिन 2 से 3 लोगों में शिकायत मिल रही है.

Jharkhand News, Coal mines area In Jharkhand रांची : झारखंड के कोल माइंस और आसपास के इलाकों में रहनेवाले लोगों के फेफड़े प्रदूषण और धूल कण के कारण पहले से ही कमजोर थे, लेकिन कोरोना के बाद अब उनके फेफड़ों के प्रभावित होने की रफ्तार तेज हो गयी है. हल्की परेशानी भी अब सीओपीडी, अस्थमा, ऑक्युपेशनल लंग डिजीज, सांस व दम फूलने जैसी गंभीर समस्या बनकर उभर रही है. राजधानी के छाती रोग विशेषज्ञों से मिले आंकड़ों के अनुसार, राज्य में धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़ के लोग फेफड़ा की समस्या लेकर ज्यादा आ रहे हैं.

पहले एक सप्ताह में एक या दो मरीज आते थे, लेकिन अब रोज ओपीडी में दो से तीन मरीज आ रहे हैं. इन जिलों से आनेवाले मरीजों की संख्या में 15 से 20 फीसदी की वृद्धि हुई है. राजधानी के छाती रोग विशेषज्ञों ने बताया कि कोरोना वायरस की मौजूदा समस्या और कोरोना संक्रमण से फेफड़ा की समस्या बढ़ी है.

वायु प्रदूषण भी इन इलाकों में बढ़ा है. कोल माइंस की स्थिति पहले से और ज्यादा खराब हुई है, क्योंकि वायु प्रदूषण स्तर 10 से घटकर 2.5 पीएम तक हो गया है. इन जिलों की प्रदूषित हवाएं पास के जिलों में पहुंच रही हैं, जिससे कम प्रदूषित जिलों पर भी प्रदूषण का खतरा हो गया है. 2.5 पीएम या उससे कम स्तर का वायु प्रदूषण सीधे फेफड़े को प्रभावित करता है.

केस स्टडी

धनबाद का एक 26 वर्षीय युवक छाती रोग विशेषज्ञ डॉ निशीथ कुमार के पास इलाज कराने आया. बचपन में उसको माइल्ड अस्थमा (बार-बार सर्दी और खांसी) की समस्या थी. 12 वीं के बाद वह पढ़ाई और नौकरी के लिए बेंगलुरु शिफ्ट कर गया. कोरोना काल में वर्क फॉर होम के कारण वह दोबारा धनबाद लौट आया. यहां आने के कुछ दिनों बाद उसकी समस्या बढ़ गयी है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

धनबाद, बोकारो, हजारीबाग और पलामू के लोगों में फेफड़ा की समस्या बढ़ी है. वह सांस लेने में परेशानी, दम फूलना और अस्थमा की समस्या लेकर आ रहे हैं. मरीजों की संख्या बढ़ी है. अभी से चिंता करने से हम वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव से समाज को बचा सकते हैं.

डॉ अत्री गंगोपाध्याय, फेफड़ा रोग विशेषज्ञ, पल्स

कोल माइंस क्षेत्र में पहले से ऑक्युपेशनल समस्या बढ़ी है. पहले ही फेफड़ा की समस्या से लोग ग्रसित थे, लेकिन कोरोना के कारण समस्या दोगुनी बढ़ी है. पहले सप्ताह में एक या दो मरीज इन इलाकों से आते थे, लेकिन अब प्रतिदिन तीन से चार मरीज आ रहे हैं. वायु प्रदूषण का छोटा कण फेफड़ा तक पहुंच जाता है, जो उसको तेजी से खराब करता है.

निशीथ कुमार, फेफड़ा रोग विशेषज्ञ, आर्किड

Posted By : Sameer Oraon

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