Makar Sankranti 2023: होली में तन ही मन है, दीपवाली में मन ही धन है, लेकिन संक्रांति तन, मन और धन के मिलन का पर्व है. पहले देह का स्नान, फिर धन का दान और उसके बाद मन के संग ऊंची उड़ान. होली दिन का पर्व है, दीपावली रात का त्योहार है, लेकिन संक्रांति दिन-रात दोनों का उत्सव है. सुबह में व्रत है, दिन का उत्सव है, शाम का पर्व और रात को कल्पवास का कठिन तप. अहले सुबह से ही स्नान, ध्यान और दान का कार्यक्रम शुरू हो जाता है, दिन की शुरुआत के साथ नवान्न से बने विविध व्यंजनों के भोग से समाज में मिठास का संबंध बनाया जाता है. इन सब के साथ प्रकृति की नूतन फसल है, नवीन व्यंजन है, अस्तित्व के रस और रंग हैं.
यह त्योहार यौवन को जगाता है, बचपन को मनाता है और बुढ़ापे में नव उमंग जगाता है. इतना मंगलकारी है कि और कोई कामना की इच्छा नहीं रहती है. यह शिशिर के शीत और वसंत के मिठास की संधि है. यह उत्सव आकाश और धरती का मिलन है और समग्र रूप से लोक और शास्त्र का सुंदर समन्वय है. उत्सवधर्मी इस देश में राष्ट्रीय पर्व का कोई आधार हो, तो मकर संक्रांति ही वह राष्ट्रीय त्योहार है.
मकर संक्रांति धर्म के चारों आयाम से जुड़ा है. इसमें धर्म है, जहां स्नान, ध्यान और पूजा-पाठ का विधान है. इसके बाद इसमें संस्कृति है, जिसमें प्रकृति, नृत्य और संगीत का सतरंगी जीवन, खानपान की विविध आकृति के साथ समृद्ध परंपरा की कृति है. इसमें ज्योतिष और खगोलशास्त्र का पाठ है. माघ, संक्रांति, ऋतु, नक्षत्र, उत्तरायण आदि विभिन्न नामों की गांठ है. इसके बाद लोक और व्यवहार के साथ विज्ञान और अध्यात्म का संयोग है. इसमें नयी फसल, नये दिन, नवीन अवसर, नूतन उत्साह और नव गति का प्रयोग शामिल होता है. ऋतु के साथ परिवर्तन होता है, लेकिन परिवर्तन को उत्सव और रचनाधर्मिता का रूप केवल मकर संक्रांति में ही मिलता है. इस परिवर्तन के साथ जगत की सारे क्रियाएं बाहर में की जाती हैं, लेकिन इस क्रिया की प्रतिक्रिया हमारे अंतर्मन और अंतर्जगत में होती है. इस प्रतिक्रिया के प्रभाव से बदलाव के साथ साम्य बैठाने की कला और उसके साथ आगे बढ़ने का प्रयास इस संक्रांति में किया जाता है.
सूर्य जब एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तब उसे संक्रांति कहते हैं. मकर संक्रांति ऋतु और नक्षत्र के बदलाव का पर्व है. जैसा बदलाव सूर्य में होता है, वैसा हमारे जीवन में बदलाव हो, इसलिए संक्रांति की साधना जरूरी है. संक्रांति में संकल्प को जीवन में दृढ़ता से उतारने का सूर्य एक आधार बनता है. ऐसे में हमें भी सूर्य की तरह कर्तव्यनिष्ठ होकर, अपने जीवन का सफर करना चाहिए. दरअसल, इस दिन से भगवान भास्कर की गति दक्षिण से उत्तर की ओर हो जाती है. सूर्य के उत्तरायण होने से यह देवताओं का दिन माना जाता है. इस अवसर पर शुभ कार्यो का फल शीघ्र मिलता है. उसमें स्नान, दान, जप, हवन और श्रद्धा करने से पुण्य के भागी बनते हैं.
इस दिवस से दिन बड़ा होने लगता है और रात छोटी होती है. इस कारण से मकर संक्रांति को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने का पर्व भी कहते हैं. भीष्म पितामह ने इस संक्रांति को देह त्याग के लिए उपयुक्त माना, तो यह साधना और सिद्धि का भी एक अवसर हो जाता है. सूर्य के उत्तरायण का पर्व भारत के अलावा विश्व के कई भागों में मनाया जाता है. बांगलादेश में पौष संक्रांति, नेपाल में माघी संक्रांति, थाइलैंड में सोंगकरन, तो लाओस में पी मा लाउ, म्यांमार में इसे थिरआन के रूप में मनाया जाता है. श्रीलंका में पोंगल और उझवल तिरूनल के रूप में प्रसिद्ध है. यह देवताओं का नूतन दिवस है. जहां संक्रांति है, वहां तिल है, गुड़ है, चूड़ा और दही है. दान है, स्नान है और संग में उत्सव का आनंद है. खिचड़ी है, जिसमें सभी अन्नों का सम्मिश्रण है, जो पक कर शरीर के लिए सुपाच्य भोजन हो जाता है. संक्रांति भारतीय लोक में शास्त्रीयता का अनुष्ठान है, तो राष्ट्रीय जीवन में लोक का उत्साह भी है.
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डॉ मयंक मुरारी, चिंतक व आध्यात्मिक लेखक