जसिंता केरकेट्टा, (थाईलैंड के चियांग माय शहर से लौटकर)
कोई हाट इतना रचनात्मक, कलात्मक हो सकता है, साफ-सुथरा, सुंदर और शांत. यह उसे देखने पर पता चलता है. बीच-बीच में कोई मधुर संगीत बजता है, कोई धुन सुनाई पड़ती है. वहां कौन गा रहा है? हाट में कहीं-कहीं बैठे अंधे, नि:शक्त लोग मधुर गीत गा रहे हैं. वे कोई धुन बजा रहे हैं. वे भीख नहीं मांग रहे, न ही चिल्ला रहे, न किसी का हाथ खींच रहे हैं. बस गा रहे हैं. उनके संगीत से हाट की शाम भीग रही है. यह कैसी हाट है? शाम की प्रार्थना-सी लगती है. कौन स्त्री है कौन पुरुष? किसी में कोई भेद नहीं. बच्चे, बूढ़े, युवा सब किसी जुलूस की तरह हाट में धीरे-धीरे चल रहे हैं. कोई ऊंची आवाज नहीं, कोई धक्का-मुक्की नहीं, कोई चिल्लम-चिल्ली नहीं. यह थाईलैंड का चियांग माय शहर है. और रविवार रात की यह एक हाट है.
हाट में तरह-तरह की खुशबुएं हैं. इलायची, लिली, लेवेंडर, नींबू और पुदीने की खुशबू. छोटे-छोटे होममेड साबुन का स्टॉल है. हाथ में उन्हें लेते ही नाक खुशबुओं से भर जाता है. हर एक साबुन की अपनी खुशबू है. हाट में हाथ के बने सुंदर कुर्ते हैं. जंगल, पेड़, चीड़ियों की पेंटिंग हैं. बहुत सुंदर पेंटिंग. हर पेंटिंग एक दूसरे से अलग है और सिर्फ एक ही पीस है. पेंटिंग बनाने वाला युवा शहर से दूर किसी पहाड़ पर बसे गांव से आया है. वह पेंटिंग बनाता है और रविवार को हाट में ले आता है. हाट आने की अपनी यात्रा के बारे वह कहता है “मैं दूर से आया हूं. यहां शहर में इतनी ठंड नहीं है. पर गांव से आते वक्त बहुत ठंड थी.” मेरे साथ बाजार में घूम रही इंग्लैंड की एक महिला एलिन ने चीड़ियों की पेंटिंग खरीद ली. उस लड़के ने पांच थाईभाट नहीं लिए. कहा “मेरी तरफ से यह आपके लिए.” और मुस्कुराने लगा.
आगे चलने पर कुछ बुजुर्ग महिलाएं तितलियां बेच रहीं थीं. दूर से वे बिल्कुल जीवित कागज पर बैठी तितलियां लगती हैं. लेकिन पास जाने पर देखा, सब मृत तितलियां हैं. उन्हें बेहद एहतियात के साथ उसी रूप में कागजों पर रखकर फ्रेम किया गया है. फ्रेम के भीतर कुछ काली, नीली, पीली तितलियां हैं. मैंने तितलियों का दो फ्रेम खरीद लिया. हाट में रंग है, रोशनी है. उपहार देने की कई कलात्मक सामग्रियां हैं. रात उस हाट से तितलियां खरीदकर मैं होटल लौट गयी. महसूस हुआ कि इस हाट में पैदल चलते हुए हमारी सारी थकान धीरे-धीरे मिट गयी है. यह गजब हाट है. सुकून देने वाला. रास्ते में साथी आपस में बात कर रहे थे. यहां एक अद्भुत-सी शांति है. पूछ रहे थे कि ऐसा क्यों है? मैंने कहा- “हर देश के लोगों का, शहर का, समाज की अपनी संस्कृति होती है. जीने की शैली होती है.
एक सामूहिक ऊर्जा होती है. वहां घुसते ही वह ऊर्जा महसूस होती है. मसलन मैंने महसूस किया है कि जर्मनी में घुसते ही वहां पश्चाताप की ऊर्जा है. वहां के अधिकांश लोग संवेदनशील हैं. इसके पीछे उनका अपना इतिहास है. अमेरिका में घुसते ही ऐसा लगता है कि लोग एक दूसरे को संदेह से देखते हैं. कुछ खुद को श्रेष्ठ समझते हैं. श्रेष्ठता और संदेह की मिली-जुली ऊर्जा का एहसास होता है.” पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा पर रहने वाली एक साथी कहतीं हैं-“हम अपने देश में ऐसी सुकून वाली उर्जा महसूस नहीं कर पाते. यह बेहद मुश्किल है.” वह वहां एक यूनिवर्सिटी में पुरुष प्रोफेसर्स के बीच एकमात्र महिला प्रोफेसर थीं. वहां स्त्रियों की शिक्षा के खिलाफ फतवे जारी होने और उनकी जान को खतरा होने पर उन्हें वहां से चियांग माय आना पड़ा. इस शहर के बारे कहती हैं-“ शेष जीवन इस शहर में रहने को मिले तो मैं वापस लौटना नहीं चाहूंगी.”
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चियांग माय बेहद शांत, साफ-सुथरा शहर है. डर और आतंक का एहसास नहीं होता है. लड़कियां आराम से घूमती-फिरती, शाम को इवनिंग वाॅक करती, बेडमिंटन खेलती, दौड़ती या झील के किनारे सुस्ताती दिखतीं हैं. चियांग माय शहर के बीचो-बीच खड़े हो जाने पर एक ओर पहाड़ी शृंखला दिखाई पड़ती है. यहां के लोग बताते हैं कि सामने की पहाड़ियों का नाम डोएं शूटेप है. लोग इन पहाड़ों को पवित्र मानते हैं. उनके लिए पहाड़ियां पूजनीय हैं. उनके पर्व-त्योहार हैं जो पहाड़ों पर मनाये जाते हैं. चियांग माय यूनिवर्सिटी में द पीस विथ जस्टिस नेटवर्क, इंग्लैंड द्वारा आयोजित दो दिवसीय ग्लोबल सिंपोजियम में हिस्सा लेने करीब नौ देशों के लोग पहुंचे थे. चियांग माय यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, रीडिंग रूम फाउंशन, थाईलैंड के संयुक्त सहयोग से यह आयोजित था.
मेक्सिको और ग्वाटेमाला के लोग ऑनलाइन अपने अनुभव साझा कर रहे थे. क्योंकि उनके लिए चियांग माय की यात्रा बहुत लंबी थी. इस ग्लोबल सिंपोजियम में भारत, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, अफगानिस्तान, कुर्दिस्तान, इंग्लैंड, मेक्सिको और ग्वाटेमाला के सदस्य जुड़े थे. वे अपने-अपने इलाकों में जमीनी संघर्षों के अनुभव साझा कर रहे थे. एक दूसरे से जुड़ने, साथ खड़े रहने के रास्ते तलाश रहे थे. हर किसी का अनुभव सुनना, दुनिया को बेहतर तरीके से जानने में मदद कर रहा था.
हर कोई अपने देश की ऊर्जा और माहौल से चियांग माय शहर के माहौल की मन ही मन तुलना कर रहा था. दुनिया इतनी ही शांत, सुंदर, रचनात्मक, स्वच्छ कब हो सकेगी जहां स्त्री-पुरुष, समुदाय अपनी भिन्नता के साथ जी सकें. एक ऐसी दुनिया जहां आजादी और जिम्मेदारी दोनों को महसूस कर सकें. चियांग माय, में वह सबकुछ एक साथ महसूस होता है.