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बुनकरों को समर्पित राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, हमारे बुनकरों ने बनायी है झारखंड की पहचान

रांची की खेलगांव निवासी पम्पी रानी दास झारखंड के बुनकर और उनके हाथ से बने उत्पादों को बढ़ावा दे रही है. मूल रूप से असम की रहने वाली हैं.

रांची : आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस है. हर साल सात अगस्त को पूरे देश में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन बुनकरों के सम्मान का दिन है. . बुनकरों को समर्पित राष्ट्रीय हथकरघा दिवस को मनाए जाने की शुरूआत भारत सरकार द्वारा 2015 में की गई थी. हैंडलुम हमेशा से सबकी पसंद रही है. यह जितना आरामदायक होता है उतना हीं खूबसूरत भी. इसका लुक हीं औरों से अलग होता है. इसलिये इसे बनाने वालों की कद्र बढ़ जाती है. और यही कारण है कि आज हैंडलूम आम परिधानों की तुलना में ज्यादा पसंद किये जाते हैं. अपने हाथों से कड़ी मेहनत से एक एक धागे को काट कर हमारे बुनकर इसे हमारे लिये तैयार करते हैं तो आईये इनके साथ मनाये, हथकरघा का करें सम्मान अपनाये बुनकरों के हाथों बनी हैंडलूम.

हर घर में खादी बनाने की शुरूआत हुई थी

पूरे विश्व में सबसे बड़े हथकरघा उद्योग वाले भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इस हथकरघा का विशेष महत्व रहा है. हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने और विदेशी वस्तुओं (जिनमें वस्त्र भी शामिल थे) के बहिष्कार के लिए स्वेदशी आंदोलन की शुरूआत 7 अगस्त 1905 की को गई थी. इसी आंदोलन के चलते हथकरघा तत्कालीन भारत के लगभग हर घर में खादी बनाने की शुरूआत हुई थी. इसी कारण भारत सरकार ने सात अगस्त 2015 से राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाए जाने शुरूआत की.

मुंडा ट्राइब का पढ़िया कपड़ा झारखंड में मात्र निबुचा कोपरेटिव सोसायटी खूंटी के इसी सेंटर में बनता है

निबुचा कोपरेटिव सोसायटी खूंटी में स्थित है. मुंडा ट्राइब का पढ़िया कपड़ा झारखंड में मात्र इसी सेंटर में बनता है. जिसे यहां के आस पास के बुनकर बनाते हैं. ये काफी बारीक और महीन बुनाई के तहत अपना काम करते हैं. ये बुनाई विलुप्त हाेने वाली एक हैंडलुम क्राफ्ट है. जिसे बचाना जरूरी है. इसे विलुप्त हाेने से बचाने की जरूरत है. अभी 22 बुनकर यहां हथकरखा और फ्रेम पर बुनाई कर रह हैं. यहां गमझा , चादर , शॉल , दरी आदि बन रहे हैं. जिसे पूरे देश भर में भेजा रहा है. यहां वर्ष 2000 से अपनी सेवा दे रही बिरसमुनी देवी बताती हैं कोरोना के पहले यहां से विदेशों तक कपड़ा पहुंचता था. यहां के तमाम और बुनकरों का यह पुस्तैनी काम है हो अब एकजुट होकर इसे विलुप्त होने से बचा रह हैं.

क्या कहते हैं मो इरफान

मो इरफान इस्लामपुर प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति लीमिटेड के अध्यक्ष है. 1984 से बुनाई कर रहे हैं. यह उनका पुस्तैनी कार्य है. चरखे पर सूत काटना अपने दादा और पिता से सीखा है. अब आगे की पीढ़ी को भी इस काम से जोड़ रहे हैं. बताते हैं कि समिति को छोटानागपुर रीजनल हैंडलुम इरबा एवं झारक्राफ्ट से प्राप्त धागा से टाॅवेल ,दरी , चादर , लूंगी आदि बनाये जा रहे हैं. कहते हैं कि सरकार भी हैंडलूम को बढावा देने के लिये हम बुनकरों को काफी प्रोत्साहित करती रही है. हथकरघा हमारी पहचान है. और हथकरघा से हमारी पहचान है.

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और ईधर हैंडलूम को बढ़ावा दे रह हैं पम्पी

रांची की खेलगांव निवासी पम्पी रानी दास झारखंड के बुनकर और उनके हाथ से बने उत्पादों को बढ़ावा दे रही है. मूल रूप से असम की रहने वाली हैं. बावजूद उन्हाेंने गोड्डा के बनुकरों को कम देकर उन्हें रोजगार से जोड़ा है. एक डिजाइनर है. ईको फ्रेंडली प्रोड्क्टस एवं हैंडलूम का प्रचार प्रसार कर रही है. अपने खुद के खड़े किये हुए कंपनी के माध्यम से ऑनलाइन एवं ऑफलाइन हैंडलूम साड़ियां , असम की खास खास एवं बांस के उत्पाद देश दुनियां तक पहुंचा रही है. कहती हैं कि हमारे काम से कई बुनकर जुड़े हैं. झारखंड के गोड्डा के घिंचा सिल्क काफी पसंद किये जाते हैं. इन बुनकरों के मेहनत को मंच मिलना आवश्यक है.

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