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रांची में दो दिवसीय राष्ट्रीय कुड़माली भाषा सम्मेलन का आगाज, विद्वानों ने कही ये बात

पश्चिम बंगाल से आये कुड़माली के विद्वान डॉ पुलकेश्वर महतो ने कहा कि कुड़माली साहित्य में कई ज्ञान समाहित हैं. डॉ मंजय प्रमाणिक ने कुड़माली साहित्य के विविध पक्षों का ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत किया. संगीता कुमारी ने कुड़माली कथा साहित्य पर चर्चा की.

झारखंड की राजधानी रांची में दो दिवसीय कुड़माली भाषा सम्मेलन का बुधवार (6 दिसंबर) को आगाज हुआ. उदघाटन सत्र में कुड़माली के प्रख्यात लेखक डॉ एचएन सिंह ने कुड़माली भाषा के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला. बीज भाषण में छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय मुंबई के कुलपति प्रो (डॉ) केशरी लाल वर्मा ने कहा यह पहला मौका है, जिसमें कुड़माली विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई सम्मेलन हो रहा है. उन्होंने कहा कि कुड़माली एक समृद्ध भाषा है. यह भी स्वीकार किया कि इसके लोकगीत काफी समृद्ध हैं. इसके उधवा, डाइड़धरा, डमकच, बिहा, कुंवारी झुपान, करम, टुसु आदि गीत के क्या कहने. स्वागत भाषण साहित्य अकादमी के के श्रीनिवास राव ने दिया. उन्होंने कहा कि कुड़माली एक स्वतंत्र भाषा है. इसका अपना लोक साहित्य है, लोक संस्कृति है, अपने विशिष्ट गीत हैं. इसका आधुनिक साहित्य, व्याकरण, सुर, ताल, लय आदि काफी समृद्ध है. कायर्क्रम के अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो (डॉ) तपन कुमार शांडिल्य ने जोर देकर कहा कि कुड़माली अंतरराष्ट्रीय भाषा है. युवाओं को कुड़माली भाषा के प्रचार-प्रसार पर जोर देने की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने कुड़माली के क्षेत्र-विस्तार के साथ जनसंख्या के बारे में भी जानकारी दी.

पहले सत्र में तीन आलेख का हुआ पाठ

कुड़माली भाषा सम्मेलन के टेक्निकल सेशन के पहले सत्र में तीन आलेख का पाठ हुआ. सत्र के अध्यक्ष पश्चिम बंगाल से आये कुड़माली के विद्वान डॉ पुलकेश्वर महतो ने कहा कि कुड़माली साहित्य में कई ज्ञान समाहित हैं. डॉ मंजय प्रमाणिक ने कुड़माली साहित्य के विविध पक्षों का ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत किया. संगीता कुमारी ने कुड़माली कथा साहित्य पर चर्चा की. डॉ एचएन सिंह की अध्यक्षता में सम्मेलन के द्वीतीय सत्र में तीन आलेख पाठ हुए. बंगाल से आये डॉ सनत कुमार महतो ने कुड़माली भाषा की विशिष्टता पर चर्चा की, तो रांची विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ राकेश किरण ने कुड़मालि भाषा के आधुनिक विकास के विविध आयाम के बारे में बताया. इसमें फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंटरनेट आदि पर विशेष बात की. ज्ञानेश्वर सिंह ने कुड़माली भाषा की लिपि समस्या एवं इसके समाधान पर अपना आलेख प्रस्तुत किया. तीसरे सत्र में कुड़माली संस्कृति पर चर्चा हुई.

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परिछन से हुआ अतिथियों का स्वागत

कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए अतिथियों का सभागार के मुख्य द्वार से कक्ष तक कुड़माली विभाग के छात्र-छात्राओं ने गाजे-बाजे के साथ कुड़माली संस्कृति के अनुरूप परिछन कर स्वागत किया. उदघाटन सत्र का विधिवत शुभारंभ कुड़माली की परंपरागत संस्कृति के अनुसार ‘कुड़माली चमक’ पर अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित किया. इसके बाद छात्र-छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया. कार्यक्रम में झारखंड अधिविद्य परिषद के अध्यक्ष डॉ अनिल कुमार महतो, डॉ वृंदावन महतो, प्रो सुभाष चंद्र महतो, डॉ पंचानन महतो व अन्य उपस्थित थे. इस अवसर पर कुड़माली भाषा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजाराम महतो ने उदघाटन सत्र के मंचासीन अतिथियों को अपने स्तर पर स्वलिखित पुस्तक एवं शॉल देकर सम्मानित किया.

7 दिसंबर के कार्यक्रम

कार्यक्रम के दूसरे दिन गुरुवार (7 दिसंबर) को कुल चार सत्र होंगे. सुबह 10:30 बजे से लेकर शाम 5:30 बजे तक सत्र चलेगा. इसमें झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा से कई प्रतिभागी, छात्र-छात्राओं के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे. कार्यक्रम में भाग लेने के इच्छुक प्रतिभागी ऑनलाइन एवं ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.

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