Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary| रांची, अनुष्का वर्मा, कृष्णा कुमारी : आज 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. देश भर में उनको श्रद्धांजलि दी जा रही है. नेताजी जयंती को अब देश में पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती 2025 पर आज आपको बताते हैं कि नेताजी का झारखंड की राजधानी रांची (तब बिहार में) से नेताजी का क्या कनेक्शन था. वह कब रांची आए थे, कहां ठहरे थे. रांची में आने के बाद उन्होंने क्या-क्या किया था. प्रभात खबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस रांची के लालपुर में 4 दिन तक ठहरे थे. यहां जिस शख्स के घर में सुभाष चंद्र बोस ठहरे थे, उसके परिवार ने आज भी उनकी यादों को सहेज रखा है. जिस कमरे में नेताजी रुके थे, उस कमरे को संग्रहालय का रूप दे दिया है.
फणींद्रनाथ आयकत के यहां ठहरे थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मित्र रहे स्व फणींद्रनाथ आयकत के यहां नेताजी ठहरे थे. इनके घर में नेताजी का कई बार आना-जाना हुआ. नेताजी सुभाष चंद्र बोसे 20 मार्च 1940 को रामगढ़ में आयोजित 53वें कांग्रेस अधिवेशन के समानांतर एक दूसरे अधिवेशन को संबोधित करने पहुंचे थे. उस समय नेताजी नजरबंद थे, भेष बदल कर नेताजी चक्रधरपुर के रास्ते रांची पहुंचे थे. उस समय नेताजी के एक और मित्र स्व फणींद्रनाथ चटर्जी, जो रांची के प्रख्यात चिकित्सक भी थे, ने रामगढ़ जाने के लिए सुभाष चंद्र बोस को अपनी फिएट कार दी थी. 85 वर्षों से दोनों परिवार बहुमूल्य यादों को सहेजे हुए है.
रामगढ़ अधिवेशन के लिए 17 मार्च 1940 को रांची पहुंचे थे नेताजी
फणींद्रनाथ आयकत के गुजरने के बाद भी उनकी तीसरी पीढ़ी ने नेताजी की यादों को 85 वर्षों से सहेज रखा है. स्व आयकत के पोते विष्णु आयकत कहते हैं, ‘दादाजी ने बताया था कि नेताजी अधिवेशन में शामिल होने के लिए 3 दिन पहले यानी 17 मार्च 1940 को ही रांची पहुंच गये थे. लालपुर में आने के बाद नेताजी ने सबसे पहले घर में रखे एक रिलैक्सिंग चेयर पर आराम किया. अपनी 4 दिन की यात्रा के दौरान यहीं ठहरे. नजरबंद होने के कारण नेताजी ने स्व आयकत से आग्रह किया था कि उन्हें घर में कोई कोनेवाला कमरा दें, ताकि लोगों की नजर से बच सकें.’
नेताजी के भोजन की व्यवस्था की जिम्मेदारी थी गौरी रानी एकत की
उस समय पर घर पर नेताजी के भोजन आदि की जिम्मेदारी स्व फणींद्रनाथ आयकत की पत्नी गौरी रानी एकत पर थी. अगले दिन नेताजी ने घर के बरामदे में ही लोगों के साथ बैठक कर रामगढ़ अधिवेशन के समानांतर एक और अधिवेशन की योजना बनायी.
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कंघी और विद्यासागरी चप्पल छोड़ गये थे नेताजी
अधिवेशन के लिए रांची से रवाना होते समय, नेताजी जल्दबाजी में थे. आनन-फानन में पैकिंग करते वक्त उनकी कंघी और सामान्य विद्यासागरी चप्पल स्व आयकत के घर में ही छूट गयी थी. इसे बाद में आयकत परिवार ने पुरुलिया स्थित संग्रहालय को सौंप दिया. आयकत परिवार ने अपने घर के उस कमरे को जहां नेताजी ठहरे थे, निजी संग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया है.
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रामगढ़ की यात्रा नेताजी के लिए चुनौतीपूर्ण थी
रांची से रामगढ़ की यात्रा नेताजी के लिए चुनौतीपूर्ण थी. उनकी मदद डॉ फणींद्रनाथ चटर्जी, डॉ यदुगोपाल मुखर्जी और फणींद्रनाथ आयकत ने की थी. डॉ फणींद्रनाथ ने नेताजी को अपनी फिएट गाड़ी (1932 में खरीदी गई थी) में रवाना किया था. नेताजी की वो सवारी (फिएट कार) आज भी स्टार्ट होती है. डॉ चटर्जी के बेटे समरेंद्र नाथ चटर्जी ने इसे संभाल कर रखा है. वर्तमान में गाड़ी की देख-रेख डॉ चटर्जी के पोते अरूप चटर्जी करते हैं.
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