रांची. निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा ने 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में संदेश दिया कि मानव से प्रेम ही ईश्वर प्रेम है. उन्होंने कहा कि संसार में विचरण करते हुए जब हम अपने सीमित दायरे में सोचते हैं, तो केवल कुछ ही लोगों से रूबरू हो पाते हैं. वहीं ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी से जब हम इस परमपिता परमात्मा संग जुड़ते हैं, तब हम सही अर्थों में सभी से प्रेम करने लगते हैं. यही प्रेम भक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग है. समालखा हरियाणा में आयोजित समागम में माता सुदीक्षा ने कहा कि यदि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाये, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं रहती है. यही विचारधारा जब व्यापक रूप ले लेती है, तो सबके प्रति निस्वार्थ सेवा और प्रेम की भावना जागृत करती है. उन्होंने समुद्र की गहराई और शांति को सहनशीलता और विनम्रता का सुंदर प्रतीक बताया. जिस प्रकार समुद्र अपने अंदर सब कुछ समेटे हुए भी शांत अवस्था में रहता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर सहिष्णुता और विशालता विकसित करनी चाहिए. इस अवसर पर सेवादल रैली के दौरान प्रस्तुत नाटकों और संदेशों ने यह दर्शाया कि सेवा सिर्फ कार्य नहीं बल्कि यह एक दिव्य भावना है.
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