आर्चरी कोच पूर्णिमा महतो को एक और बड़ा सम्मान मिलने जा रहा है. झारखंड की इस महिला कोच को पद्मश्री से नवाजा जाएगा. भारत सरकार ने इसकी घोषणा कर दी है. बता दें कि इससे पहले उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. वह स्टार तीरंदाज दीपिका सहित कई खिलाड़ियों को ट्रेनिंग भी दे चुकी है.
भारत सरकार की ओर से पूर्णिमा महतो को पद्श्री पुरस्कार देने की घोषणा के बाद पूर्णिमा महतो ने फोन पर प्रभात खबर को बताया कि उसके लिए यह काफी गौरवपूर्ण क्षण है. भारत सरकार, परिवार के सदस्यों, टाटा स्टील और शुभचिंतकों का शुक्रिया किया, जिनकी वजह से वह इस मुकाम तक पहुंची है. उन्होंने बताया कि चार बार उनके मोबाइल फोन पर गृह मंत्रालय से कॉल आया. पहले तो यकीन नहीं हुआ, लेकिन रात होते-होते यकीन हुआ कि मुझे पद्मश्री मिल रहा है.
भारतीय आर्चरी में बारीडीह की रहने वाली पूर्णिमा महतो एक अलग मुकाम रखती है. 80 व 90 के दशक में एक शानदार खिलाड़ी रहीं पूर्णिमा महतो वर्तमान में एक सफल कोच हैं. कोचिंग के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पूर्णिमा महतो द्रोणाचार्य अवॉर्ड से भी सम्मानित हो चुकी हैं.
1987 में पूर्णिमा महतो ने आर्चरी शुरू की. लेडी इंदर सिंह स्कूल से दसवीं तक की पढ़ाई करने वाली पूर्णिमा जब अपने घर (उस वक्त बिरसानगर जोन-1 में रहती थी) से स्कूल आना-जाना करती थी, तो उसके घर के पास एक मैदान था. उसी में कोच लॉरेंस क्रिस्पोटा खिलाड़ियों को आर्चरी की ट्रेनिंग देते थे. यह देख पूर्णिमा महतो का भी मन इस खेल को सीखने का हुआ. जब उसने यह बात घर पर कही तो आम माता-पिता की तरह उनके माता-पिता ने पहले न कहा. लेकिन फिर पूर्णिमा महतो के पिता मान गये.
जब पूर्णिमा के पिता आरआर महतो कोच लॉरेंस किस्पोटा के पास पहुंचे तो कोच ने पूर्णिमा महतो को देखा और (उस समय वह पतली-दुबली थी) उसके हाथ की मांसपेशियों को छूकर कहा कि वह धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) को खींच पायेगी या नहीं. कोच ने पूर्णिमा का उत्साह देखकर ट्रेनिंग शुरू की. पूर्णिमा महतो मात्र सात महीने की ट्रेनिंग में ही बर्मामाइंस में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया. इसके बाद उसके घर के पास स्थित ट्रेनिंग सेंटर बंद हो गया. इसके बाद पूर्णिमा महतो ने बर्मामाइंस में ट्रेनिंग शुरू की. कोच जेजी बनर्जी व पीएन दास से पूर्णिमा महतो ने ट्रेनिंग शुरू की.
पूर्णिमा महतो ने 1994 में पुणे में हुए नेशनल गेम्स में मेडल की झड़ी लगा दी. इसमें पूर्णिमा महतो ने सारे गोल्ड मेडल जीतकर तहलका मचा दिया. उसने 70 मीटर, 60 मीटर, 50 मीटर, 30 मीटर व ओवरऑल प्रदर्शन के आधार पर कुल छह पदक अपने नाम किये. साथ ही वह इस टूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी चुनी गयी. इसकी साल पूर्णिमा महतो को टाटा स्टील ने नौकरी दी. इसके बाद पूर्णिमा महतो 2000 तक कई नेशनल व अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लिया और पदक जीती.
पूर्णिमा महतो ने 2000 में कोचिंग के क्षेत्र पहली बार कदम रखा. उसको टाटा आर्चरी एकेडमी का कोच नियुक्त किया गया. तब से लेकर अबतक पूर्णिमा महतो भारतीय टीम व स्टेट टीम को कोचिंग दे रही हैं. पूर्व विश्व नंबर वन तीरंदाज दीपिका कुमारी, चक्रवोली, राहुल बनर्जी, जयंत तालुकदार, प्राची सिंह व अंकिता भकत व सुष्मिता बिरुली व विनोद स्वांसी जैसे खिलाड़ी पूर्णिमा महतो के ही शागिर्द हैं. पूर्णिमा महतो भारतीय ओलिंपिक टीम की भी कोच रही हैं.
पूर्णिमा महतो को भारत सरकार ने 2013 में कोचिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया. वहीं इससे पहले उनको 2011 में फिक्की ने बेस्ट कोच के अवॉर्ड से सम्मानित किया था.
1991 में पूर्णिमा के जीवन में आया सबसे बड़ा बदलाव1991 में पूर्णिमा महतो के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव आया. जेआरडी के मेन ग्राउंड में सीनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप का आयोजन किया था. इसमें झारखंड महिला टीम ने गोल्ड मेडल हासिल किया था, और पूर्णिमा व्यक्तिगत स्पर्धा में 12वें स्थान पर थी. इस टूर्नामेंट के आधार पर 16 खिलाड़ियों का चयन राष्ट्रीय कैंप के लिए किया गया था. इसमें पूर्णिमा महतो का नाम भी शामिल था.
पूर्णिमा महतो ने बताया कि इस कैंप में उन्होंने बहुत कुछ सीखा. इसके बाद पूर्णिमा महतो का चयन 1993 में भारतीय टीम में हुआ. इसके बाद पूर्णिमा महतो एशियन गेम्स, वल्ड$ चैंपियनशिप में शिरकत की. इन टूर्नामेंट में अच्छे प्रदर्शन के आधार पर पूर्णिमा को सरकार की ओर से कार्बन एैरो व बो दिया गया. जिससे उनके प्रदर्शन में और निखार आया.