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Ranchi news : कमजोर पड़ा लाल झंडा, कम हुई वामदलों की धार

संयुक्त बिहार के समय झारखंड वाले हिस्से से एक समय नौ-नौ विधायक तक जीते हैं

मनोज सिंह, रांची. झारखंड में वामदलों की धार धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है. संयुक्त बिहार के समय झारखंड वाले हिस्से की कई सीटों पर वामदलों का दबदबा था. संयुक्त बिहार के समय झारखंड वाले हिस्से से एक समय नौ-नौ विधायक तक जीते हैं. राज्य गठन के बाद इनकी धार कमजोर हो गयी है. अब दो-तीन विधायक ही चुनकर आ रहे हैं. वामदलों में भाकपा का दबदबा सबसे अधिक होता था. राज्य बनने के बाद भाकपा और माकपा से एक भी प्रत्याशी नहीं जीते हैं. राज्य बनने के बाद चार बार माले, दो बार मासस और एक बार ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रत्याशी जीते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव (2019) में सिर्फ एक प्रत्याशी विनोद सिंह ही जीतकर आये थे. श्री सिंह माले के टिकट पर बगोदर से चुनाव जीतते रहे हैं.

भाकपा के विशेश्वर खान के नाम सबसे ज्यादा जीतने का रिकाॅर्ड

राज्य में अब तक सबसे अधिक बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड भी वामदल के प्रत्याशी का ही है. भाकपा के कैडर विशेश्वर खान नाला विधानसभा क्षेत्र से नौ बार विधायक रहे हैं. पहली बार 1962 में चुनाव जीते थे. इसके बाद 1990 में वह करीब पांच हजार मतों के अंतर से चुनाव हारे थे. इसके बाद 1995 और 2000 में भी वह चुनाव जीते थे. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद वह राज्य के पहले प्रोटेम स्पीकर थे. यहां से एटक के वर्तमान अध्यक्ष रमेंद्र कुमार जैसे दिग्गज नेता भी चुनाव जीतते रहे हैं. वह झारखंड के बड़कागांव से विधायक के अलावा बिहार से सांसद भी थे. चतुरानंद मिश्र भी झारखंड से कई बार विधायक रहे.

पलामू प्रमंडल ने नहीं दिया है एक भी वाम विधायक

राज्य गठन से पूर्व झारखंड वाले सभी हिस्से से वामदल के विधायक चुने जाते रहे हैं. संताल से विशेश्वर खान के अलावा पाकुड़ से अब्दुल हकीम भी विधायक रहे हैं. वहीं, उत्तरी छोटानागपुर के गिरिडीह वाले इलाके से चतुरानंद मिश्र जैसे दिग्गज वामपंथी चुनाव जीतते रहे थे. वहीं, कोयला खदान होने के कारण कोयलांचल ने भी कई वाम विधायक दिया है. कोल्हान वाले इलाके में टिस्को और अन्य खनन कंपनियों से जुड़े कई वामपंथी विधायक रहे हैं. इसमें टीकाराम मांझी, देवीपद उपाध्याय जैसे लोग शामिल हैं. द छोटानागपुर से राजेंद्र सिंह माकपा के विधायक बने थे. लेकिन, पलामू ही एक ऐसा प्रमंडल है, जहां से आज तक एक भी वाम विधायक नहीं चुने गये हैं.

क्या कहते हैं वाम नेता

वामदलों में संसदीय भटकाव आया है. अब विधायक-सांसद बनने के लिए अपने अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. संयुक्त बिहार के समय हम मजबूत ताकत थे. अब वैसी स्थिति नहीं है. पहचान की राजनीति में पीछे छूट रहे हैं. ऐसा नहीं है कि हमने संघर्ष करना छोड़ दिया है. जन सवालों को लेकर आज भी हम सड़कों पर रहते हैं. वाम एकता में भी अभाव दिखता है.

प्रकाश विपल्व, राज्य सचिव, माकपा

वामदल के विधायक

1967 (सीट तीन) : नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), जामताड़ा से एस बेसरा (सीपीआइ) व सिंदरी से एके राय (सीपीएम)1969 (सीट छह) : नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), गिरिडीह से चतुरानंद मिश्र (सीपीआइ), निरसा से निर्मलेंदू चटर्जी (सीपीआइ), सिंदरी से एके राय (सीपीएम), जमशेदपुर पूर्वी से केदार दास (सीपीआइ) व जमशेदपुर पश्चिम से सुनील मुखर्जी (सीपीआइ).

1972 (सीट नौ) : नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), गिरिडीह से चतुरानंद मिश्र (सीपीआइ), रामगढ़ से मजहरुल हसन खान (सीपीआइ), धनबाद से चिन्मय मुखर्जी (सीपीआइ), निरसा से निर्मलेंदू चटर्जी (सीपीआइ), झरिया से एसके राय (सीपीआइ), घाटशिला से टीकाराम मांझी (सीपीआइ), जमशेदपुर पूर्वी से केदार दास (सीपीआइ) व जमशेदपुर पश्चिम से रामवतार सिंह (सीपीआइ).

1977 (सीट चार) : नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), गिरिडीह से चतुरानंद मिश्र (सीपीआइ), घाटशिला से टीकाराम मांझी (सीपीआइ) व सिल्ली से राजेंद्र सिंह (सीपीएम).

1980 (सीट नौ) : पाकुड़ -अब्दुल हाकिम (सीपीएम), नाला- विशेश्वर खान (सीपीआइ), जामताड़ा-अरुण कुमार बोस (सीपीआइ), बरकागांव- रमेंद्र कुमार (सीपीआइ), बरकट्टा – भुवनेश्वर प्रसाद मेहता (सीपीआइ), जुगसलाई- तुलसी रजक (सीपीआइ), बहरागोड़ा-देवी प्रसाद उपाध्याय (सीपीआइ), घाटशिला-टीकाराम मांझी (सीपीआइ), सिल्ली-राजेंद्र सिंह (सीपीएम)1985 (सीट चार) : नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), बड़कागांव से रमेंद्र कुमार (सीपीआइ), गिरिडीह से ओम लाल आजाद (सीपीआइ) व बहरागोड़ा से देवीपद उपाध्याय (सीपीआइ).

1990 (सीट छह) : बरही से रामलखन सिन्हा (सीपीआइ), जमुआ से बलदेव हाजरा (सीपीआइ), सिंदरी से आनंद महतो (मासस), निरसा से गुरुदास चटर्जी (मासस), बहरागोड़ा से देवीपद उपाध्याय (सीपीआइ) व सिल्ली से राजेंद्र सिंह (सीपीएम).

1995 (सीट पांच) : महेशपुर से ज्योतिन सोरेन (सीपीएम), नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), बगोदर से महेंद्र सिंह (माले), सिंदरी से आनंद महतो (मासस) व निरसा से गुरुदास चटर्जी (मासस).

2000 (सीट पांच) : नाला से विशेश्वर खान (सीपीआइ), रामगढ़ से शब्बीर अहमद उर्फ भेड़ा सिंह (सीपीआइ), बरकट्ठा से भुवनेश्वर प्रसाद मेहता (सीपीआइ), बगोदर से महेंद्र प्रसाद सिंह (माले) व निरसा से गुरुदास चटर्जी (मासस).

2005 (सीट दो) : बगोदर से विनोद कुमार सिंह (माले) व निरसा से अपर्णा सेन गुप्ता (एआइएफबी).

2009 (सीट दो) : बगोदर से विनोद सिंह (माले) व निरसा से अरुप चटर्जी (मासस).

2014(सीट दो) : धनवार से राजकुमार यादव (माले) व निरसा से अरुप चटर्जी (मासस).

2019 (सीट एक) : बगोदर से विनोद सिंह (माले).

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