रांची : रिम्स में चाईबासा की युवती (17 वर्ष) की गर्दन की सफल सर्जरी की गयी. युवती की गर्दन के पिछले हिस्से में बचपन से ट्यूमर था. यह ट्यूमर बढ़कर तीन किलो का हो गया था. मेडिकल भाषा में इस बीमारी को प्लेक्सीफॉर्म न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस कहा जाता है. युवती को इससे चलने और सिर व गर्दन हिलाने में परेशानी होती थी. युवती की गर्दन की सर्जरी के लिए न्यूरो सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम बनायी गयी. डॉक्टरों ने बताया कि ट्यूमर काफी बड़ा था, जिससे अत्यधिक रक्तस्राव का खतरा था. ऑपरेशन के बाद युवती अब पूरी तरह ठीक है. शीघ्र ही उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जायेगी. ऑपरेशन करनेवाली टीम में न्यूरो सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ सीबी सहाय, प्लास्टिक सर्जन डॉ विक्रांत, एनेस्थेटिक डॉ सौरभ, डॉ राजीव, डॉ दीपक, डॉ विकास कुमार, डॉ रवि, डॉ संजीव, डॉ प्रतिभा, डॉ मोनिका, डॉ अमृता, डॉ सचिन, डॉ सुरभि और डॉ नरेश शामिल थे.
रांची. रिम्स में बाहरी दवा दुकानों से वार्ड तक पहुंचने वाली दवाओं की निगरानी के लिए कोई तंत्र नहीं है. डाॅक्टर मरीजों को ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं और परिजन उसे बाहर की दवा दुकानों से खरीद कर लाते हैं. लेकिन, ये दवाएं सही हैं या नहीं और उसका रखरखाव कैसे और किसे करना है, इसे देखने वाला कोई नहीं है. ऐसे में मरीजों की जान को खतरा हो सकता है. रिम्स में निरीक्षण के दौरान औषधि निरीक्षक रामकुमार झा ने प्रबंधन को इस खतरे से आगाह कराया है. उन्होंने रिम्स प्रबंधन से कहा है कि बाहर की दवाएं जब वार्ड में आ रही हैं, तो उसकी निगरानी के लिए किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जाये. गौरतलब है कि कैंसर सहित कई विभागों के निरीक्षण में औषधि निरीक्षक ने पाया कि जिन दवाओं को बाहर से मंगाया जाता है, उसकी सूची नहीं बनायी जाती है. कुछ इंजेक्शन के लिए कोल्ड चेन मेंटेन करना होता है, लेकिन उसे सामान्य फ्रीज में रख दिया जाता है. ऐसे में इन दवाओं का प्रभाव कम हो सकता है.
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