झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में मरीजों की संख्या बढ़ी है. जबकि इसकी तुलना में उनकी देखभाल करनेवाली नर्सों की संख्या काफी कम है. इसका खामियाजा मरीजों का भुगतना पड़ता है. इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आइएनसी) की मानकों के हिसाब से भी रिम्स में नर्सों की भारी कमी है. रिम्स में फिलहाल 2,994 नर्सों की जरूरत है, जबकि 700 ही कार्यरत हैं.
यह संख्या आरएमसीएच (राजेंद्र मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल) के समय 23 साल पूर्व स्वीकृत थी, जबकि आज के हालात अलग हैं. रिम्स में तैनात नर्सों का उपयोग वार्ड में भर्ती मरीजों का इलाज करने के साथ ओपीडी, जांच सेंटर और अन्य चिकित्सा सेवा में भी किया जाता है. रिम्स में 2,100 से 2,300 वार्डों में भर्ती मरीज (इनडोर) भी इन्हीं के भरोसे है. ऐसे में मरीजों का सही इलाज प्रभावित होता है.
रिम्स बनने के बाद मुश्किल से 40 से 50 नर्सों के ही नये पद स्वीकृत हुए हैं. रिम्स प्रबंधन ने खुद ही नर्सों की कमी का आकलन किया है. इसके अनुसार, यहां 2,857 स्टाफ नर्स व 137 नर्सिंग सिस्टर की कमी हैं. इसके अलावा आठ सहायक नर्सिंग अधीक्षक और दो नर्सिंग अधीक्षक की भी कमी है. रिम्स में चीफ नर्सिंग अधीक्षक भी नहीं है. रिम्स प्रबंधन ने रिपोर्ट तैयार कर स्वास्थ्य विभाग को भेजा है. राज्य सरकार नये-नये मेडिकल कॉलेज खोल रही है, लेकिन पहले से स्थापित इस बड़े संस्थान की अनदेखी हो रही है.
रिम्स में नर्सों की कमी का असर आइसीयू और क्रिटिकल केयर विभाग में देखने को मिलता है. यहां 50 मरीजों की देखभाल के लिए सिर्फ एक या दो सीनियर नर्स होती हैं. अधिकतर कार्य नर्सिंग स्टूडेंट से कराये जाते है. ये नर्सिंग स्टूडेंट प्रशिक्षण के लिए वार्ड में सेवा देती हैं. इसके अलावा निजी नर्सिंग काॅलेज की छात्राएं भी प्रशिक्षण के लिए वार्ड में सेवा देती हैं. इनसे किसी तरह काम चलाया जाता है.
पहले से स्वीकृत पद के हिसाब से नर्सों की कमी को दूर किया गया है, लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या के हिसाब से नर्सों की बहुत कमी है. प्रस्ताव बनाकर स्वास्थ्य विभाग को भेजा गया है.
डॉ राजीव रंजन, पीआरओ, रिम्स