Sarhul Festival: सरहुल शोभायात्रा को पारंपरिक गीत- नृत्य के साथ एक सांस्कृतिक स्वरूप देने में डॉ रामदयाल मुंडा की अहम भूमिका रही है. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि के एंथ्रोपोलॉजी विभाग में सहायक प्राध्यापक डॉ मीनाक्षी मुंडा कहती हैं कि डॉ रामदयाल मुंडा अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद, समाजशास्त्री, आदिवासी बुद्धिजीवी-साहित्यकार और कलाकार थे. वह मानते थे कि आदिवासी समाज के स्वाभिमान के बोध को सशक्त बनाने में संस्कृति की बड़ी भूमिका हो सकती है. वह दुनिया को बताना चाहते थे कि आदिवासियों की संस्कृति कितनी समृद्ध है.
जब वे अमेरिका के मिनिसोटा विवि के साउथ एशियाई अध्ययन विभाग में 1981 तक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य कर रहे थे, तब वहां भी आदिवासी लोक कला को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में काम किया. जब वापस लौटे तो देखा कि बहुसंख्यक होने के बावजूद यहां के आदिवासियों के बारे में आम लोगों की राय बहुत अच्छी नहीं थी. उन्हें असभ्य जैसा ही समझा जाता था. तब उन्होंने यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को दिखाने के लिए सरहुल शोभायात्रा को एक सांस्कृतिक यात्रा के रूप देने की दिशा में पहल शुरू की. 1985 के बाद से वे लगातार सरहुल शोभायात्रा में शामिल होते रहे.
केंद्रीय सरना समिति ने कचहरी परिसर स्थित केंद्रीय कार्यालय से सरहुल शोभायात्रा को सौहाद्रपूर्ण और शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करने के लिए निर्देश जारी किया है. शोभायात्रा में शामिल महिलाएं लाल पाड़ साड़ी एवं पुरुष धोती गंजी पहनकर शामिल हों़ ढोल, नगाड़ा, मांदर के साथ ही नृत्य संगीत करें. अपने गांव मौजा के खोड़हा दल की समिति के लोग अच्छी तरह देखरेख करें़ नशापान कर शोभायात्रा में शामिल नहीं हों़ डीजे साउंड का प्रयोग न करें, छोटे-छोटे बच्चों की पॉकेट में नाम, पता, मोबाइल नंबर लिखकर अवश्य रखें. यहां करें संपर्क : फूलचंद तिर्की 9199967174, बिमल कच्छप 9693174687, प्रमोद एक्का 6299371199, विनय उरांव 7004087109, बाना मुंडा 9931187344, अमर तिर्की 9608098661, नीरा टोप्पो 9006304309, सहाय तिर्की 8051191030.
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