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Sarhul Festival: सिरमटोली सरना स्थल को बचाने के लिए हुई थी सरहुल शोभायात्रा की शुरुआत

सिरमटोली के लोगों ने अपने सरना स्थल की जमीन को बचाने के लिए करमटोली के लोगों से संपर्क किया. तब करमटोली के लोगों ने गांव में बैठक की. निर्णय लिया गया कि इस मामले में आदिवासी छात्रावास के छात्रों को भी शामिल किया जाये.

Sarhul Festival: सरहुल पर राजधानी में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जो हातमा सरना स्थल से शुरू होकर सिरमटोली के सरना स्थल तक जाती है. इसमें नाचते- गाते लाखों आदिवासियों की भीड़ उमडती है. बीआइटी मेसरा में प्रबंधन विभाग के प्राध्यापक और विनोबा भावे विवि हजारीबाग के पूर्व कुलपति डॉ रविंद्र नाथ भगत ने बताया कि सरहुल की शोभायात्रा की शुरुआत वर्ष 1961 में सिरमटोली सरना स्थल को बचाने के लिए की गयी थी. उस वर्ष सिरमटोली गांव के सरना स्थल की जमीन को गांव के चमरा पाहन का बेटा मोगो हंस और पुजार मंगल पाहन ने रामगढ़ के एक कारोबारी के हाथों बेच दिया था.

वह कारोबारी जब उस स्थल पर निर्माण करने लगा, तब वन विभाग के कर्मचारी, सिरमटोली गांव के सीबा बाड़ा ने इसकी सूचना ग्रामीणों को दी. ग्रामीणों ने एकजुट होकर विरोध जताया. इसके बाद कारोबारी ने सिरम टोली के सिवा बाड़ा, बिजला तिर्की और बोलो कुजूर आदि के खिलाफ चुटिया थाना में केस दर्ज करा दिया. पुलिस ने तीनों नामजद को जेल भेज दिया. इस बीच कारोबारी ने गांव वालों के आक्रोश से बचाने के लिए मंगल पाहन को पंजाब भेज दिया था.

करमचंद भगत को मिली थी महत्वपूर्ण जानकारी

उधर सिरमटोली के लोगों ने अपने सरना स्थल की जमीन को बचाने के लिए करमटोली के लोगों से संपर्क किया. तब करमटोली के लोगों ने गांव में बैठक की. निर्णय लिया गया कि इस मामले में आदिवासी छात्रावास के छात्रों को भी शामिल किया जाये. उस समय आदिवासी छात्रावास में करमचंद भगत रहते थे, जो रांची कॉलेज के छात्र थे. उसी वर्ष 1961 के लिए रांची कॉलेज के छात्र संघ के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. करमटोली के लोगों के कहने पर करमचंद भगत आदिवासी छात्रावास के छात्रों के साथ बैठक में शामिल हुए. सहमति बनी कि करमटोली से एक शोभायात्रा के साथ सिरमटोली जाकर शक्ति प्रदर्शन किया जायेगा.

इसके लिए सरहुल पूजा का दिन ही तय किया गया. जागा उरांव, महादेव उरांव, सुशील टोप्पो, फागू उरांव ने समाज के प्रभावशाली लोगों से समर्थन की अपील की. उन्हें साथ लाने की जिम्मेदारी छात्र नेता करमचंद भगत को मिली. उन्होंने शोभायात्रा को प्रभावशाली बनाने के लिए छात्रों के साथ-साथ समाज के प्रबुद्ध जनों को भी एकजुट करना शुरू किया. इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर कार्तिक उरांव लंदन से वापस लौट आये थे और उनकी नियुक्ति एचइसी में सुपरिटेंडेंट सिविल इंजीनियर (डिजाइन) के पद पर हुई थी. करमचंद भगत के नेतृत्व में छात्रों ने कार्तिक उरांव को भी इस शोभायात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

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पहली शोभायात्रा में शामिल हुए थे 100 लोग

उस दिन करमचंद भगत के नेतृत्व में करमटोली के शशि भूषण मानकी के आवास के पास स्थित सखुआ के पेड़ के निकट लोग एकत्रित हुए. सरहुल पूजा के बाद कार्तिक उरांव को बैलगाड़ी में बैठाकर शोभायात्रा निकाली गयी. शोभायात्रा में करमचंद भगत के नेतृत्व में आदिवासी छात्रावास के छात्रों की टोली मांदर की ताल पर नाचते-गाते हुए प्रबुद्ध लोगों के साथ करम टोली से सिरमटोली के सरना स्थल तक गयी. इस तरह राजधानी में सरहुल की पहली शोभायात्रा की शुरुआत हुई, जिसमें करीब 100 लोगों शामिल थे.

1964 से हातमा सरना स्थल पर हो रही पूजा

पहले के तीन वर्षों तक यह शोभायात्रा करमटोली स्थित शशि भूषण मानकी के आवास के निकट स्थित उसी साल वृक्ष से लेकर सिरम टोली सरना स्थल तक निकाली गयी. सामाजिक परंपरा के अनुसार सरहुल की पूजा गांव के सरना स्थल में ही की जाती है और करमटोली गांव का मुख्य सरना स्थल रांची कॉलेज के पीछे हातमा में स्थित है. इसलिए सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सरहुल की पूजा हातमा सरना स्थल में ही की जानी चाहिए. वर्ष 1964 से इस पूजा का आयोजन हातमा सरना स्थल में किया जाने लगा और वहीं से शोभायात्रा निकाली जाने लगी.

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