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आय से अधिक संपत्ति मामले में शिबू सोरेन की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई, फैसला सुरक्षित

शिबू सोरेन ने याचिका दायर कर लोकपाल की जांच को चुनौती दी थी. उनके वकील कपित सिब्बल ने याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, जहां अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. वहीं सीता सोरेन मामले में 4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.

झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में लोकपाल की जांच को चुनौती देनेवाली याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट में सोमवार को सुनवाई पूरी हो गयी. सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया. लोकपाल की जांच पर रोक लगाने की मांग को लेकर झामुमो प्रमुख ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की थी और अदालत ने लोकपाल की जांच पर रोक लगा दी थी. सोमवार को न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ के समक्ष शिबू सोरेन की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा और जांच को राजनीति से प्रेरित करार देते हुए लोकपाल की जांच पर रोक लगाने की मांग की. वहीं, लोकपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शिबू सोरेन के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं और लोकपाल की जांच पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है. ऐसे में याचिका को खारिज किया जाना चाहिए.

लोकपाल से पांच अगस्त 2020 को की गयी थी शिकायत

गौरतलब है कि शिबू सोरेन और उनके परिजनों के के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की शिकायत लोकपाल के समक्ष पांच अगस्त 2020 को की गयी थी. शिकायत में आरोप लगाया गया था कि शिबू सोरेन और उनके परिजनों ने झारखंड के सरकारी खजाने का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के जरिये कई संपत्तियां अर्जित की हैं. शिकायत पर सुनवाई करते हुए लोकपाल ने 15 सितंबर, 2020 को सीबीआई को लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम-2013 की धारा 20-(1) (ए) के तहत मामले की प्रारंभिक जांच कर छह महीने में रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया. सीबीआइ ने मामले की जांच कर 2021 में रिपोर्ट लोकपाल को सौंप दिया और इस रिपोर्ट के आधार पर लोकपाल ने नोटिस जारी कर शिबू सोरेन और परिवार से जवाब देने को कहा.

अभियोजन से छूट के 25 साल पुराने फैसले पर सुनवाई 4 अक्टूबर को, सीता सोरेन मामला

सीजेआइ डीवाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की पीठ शीर्ष अदालत के 1998 के उस फैसले पर पुनर्विचार करेगी, जिसके तहत सांसदों-विधायकों को घूस के बदले संसद और राज्य विधानसभाओं में वोट देने या भाषण देने के लिए अभियोजन से छूट प्रदान की गयी थी. सीता सोरेन से जुड़े इस मामले पर चार अक्टूबर को सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट देश को झकझोर देने वाले झामुमो रिश्वत कांड में दिये अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए 20 सितंबर को सहमत हो गया था. शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजने का फैसला किया था. शीर्ष अदालत ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआइ मामले में दिये गये अपने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले में कहा था कि अनुच्छेद 105 (2) और अनुच्छेद 194 (2) के अनुसार सदन के अंदर दिये गये किसी भी भाषण और वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने के खिलाफ सांसदों को संविधान के तहत छूट प्राप्त है.

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