बिपिन सिंह (रांची).
झारखंड में विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में स्थिति खराब है. कई जिलों में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नहीं हैं. चतरा जिला की बात करें, तो स्वास्थ्य सुविधा की हालत बदतर है. चतरा जिले की करीब 10.42 लाख की आबादी के इलाज की जिम्मेदारी एक सर्जन डॉ मनीष लाल पर है. वही, आपातकालीन सेवाओं को संभालते हैं. मरीज को एनेस्थीसिया भी देते हैं और जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी करते हैं. वह यहां डिप्टी सुपरिंटेंडेंट (डीएस) के पद पर कार्यरत हैं. उन्हें कई प्रशासनिक कार्य भी निपटाने होते हैं. इतना ही नहीं, अस्पताल में मेडिसिन का एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है, जबकि यहां 500 से 600 मरीज रोजाना आउटडोर में अपना इलाज कराने पहुंचते हैं. यही हाल कई जिलों का है.बार-बार के तबादले से टिक नहीं पाते डॉक्टर :
डॉक्टरों के ज्यादातर पद रिक्त हैं या फिर डेप्यूटेशन पर हैं. बचे खाली पदों पर बाहर से आकर कोई भी डॉक्टर यहां सेवा नहीं देना चाहता है. स्वास्थ्य केंद्रों पर बाल रोग विशेषज्ञ, हड्डी रोग विशेषज्ञ, फिजिशियन, सर्जन और नेत्र रोग विशेषज्ञों की तैनाती होनी चाहिए, हालांकि सुविधाओं का अभाव और बार-बार होनेवाले ट्रांसफर-पोस्टिंग के चलते वह टिक नहीं पाते. जो भी प्रतिनियुक्ति पर हैं, वह दूसरी जगह पोस्टेड हैं.निजी अस्पतालों से उपचार कराने की विवशता :
सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं होने से मरीजों को परेशानी होती है. लोगों को मजबूरन झोलाछाप डॉक्टरों या फिर निजी अस्पतालों से उपचार कराना पड़ रहा है. वह अपनी मनमर्जी के माफिक लोगों से पैसा वसूल रहे हैं.130 किमी दूर रांची के भरोसे इलाज :
विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण गंभीर रूप से पीड़ित आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को इलाज कराने के लिए रेफर कराकर 50 से 100 किमी दूर किसी मेडिकल कॉलेज या फिर रांची के रिम्स जाना पड़ता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है