Monsoon 2023: ग्रीष्म ऋतु में जब हिंद महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है, तो मानसून का निर्माण होता है. इस प्रक्रिया में समुद्र की सतह गर्म होने लगती है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है. इस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंच चुका होता है. ऐसी स्थिति में हिंद महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय हो जाती है. ये हवाएं एक दूसरे को आपस में काटते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती है.
इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. विषुवत रेखा पार करके ये हवाएं और बादल वर्षा करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करती हैं. इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है. ऐसी स्थिति में हवाएं समुद्र से सतह की ओर बहना शुरू कर देती हैं. ये हवाएं समुद्री जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर की ओर उठने लगती है और वर्षा करती हुई आगे बढ़ती है.
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद ये मानसूनी हवाएं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं. एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात एवं राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं . इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में अत्यधिक वर्षा होने लगती है.
कब घोषित होता है मानसून
पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में मानसून का आगमन तभी घोषित होगा, जब दो दिनों में कम से कम 2.5 मिमी बारिश रिकार्ड की गयी हो. पश्चिमी हवा का प्रभाव नहीं के बराबर होनी चाहिए. निचले स्तर पर बादल (लो लेबल क्लाउड) की प्रमुखता होनी चाहिए.
क्या होता है प्री मानसून
झारखंड में प्री मानसून मार्च से जून के पहले सप्ताह तक की बारिश को कहते हैं. इस दौरान गर्जन के साथ बारिश होती है. सूर्य के ताप के कारण गर्म हवा वातावरण में ऊपर की ओर उठकर गर्जन वाले बादल बन जाते हैं. इस दौरान कहीं-कहीं गर्जन के साथ तेज बारिश होती है. यह जरूरी नहीं है कि इससे पूरे जिले में बारिश हो.
झारखंड में 15 जून के आसपास आता है मानसून
आमतौर पर केरल में एक जून को मानसून आता है. इसके 12 से 15 दिनों में यह झारखंड में आता है. झारखंड में सामान्यत: यह संताल या कोल्हान के रास्ते प्रवेश करता है. झारखंड में प्रवेश करने के बाद सामान्य परिस्थिति में इसके फैलने में चार से पांच दिन लगता है. अक्तूबर के दूसरे हफ्ते से इसकी वापसी शुरू होती है.
कौन-कौन फैक्टर प्रभावित करते हैं मानसून को
अल-नीनो : मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के निकट खासकर पेरु तट पर यदि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द समुद्र की सतह अचानक गर्म होनी शुरू हो जाये, तो अल-नीनो की स्थिति बनती है. यदि तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है. इससे मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है. इसका असर यह होता कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली हवाएं कमजोर पड़ने लगती हैं.
ला-नीना : प्रशांत महासागर के पेरु वाले इलाके में कभी-कभी समुद्र की सतह ठंडी होने लगती है. ऐसी स्थिति में अल-नीनो के ठीक विपरीत घटना होती है. जिसे ला-नीना कहा जाता है. ला-नीना बनने से हवा के दबाव में तेजी आती है और व्यापारिक हवाओं को रफ्तार मिलती है. यह भारतीय मानसून पर अच्छा प्रभाव डालती है. वर्ष 2009 में मानसून पर अल-नीनो के प्रभाव के कारण कम वर्षा हुई थी, जबकि वर्ष 2010 एवं 2011 में ला-नीना के प्रभाव के कारण अच्छी वर्षा हुई थी.
हिंद महासागर द्विध्रुव : हिंद महासागर द्विध्रुव के दौरान हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा ज्यादा गर्म या ठंडा होता रहता है. पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने पर भारत के मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ठंडा होने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
मेडेन जुलियन ऑस्किलेशन : इसकी वजह से मॉनसून की प्रबलता और अवधि दोनों प्रभावित होती है. इसके प्रभावस्वरुप महासागरीय बेसिनों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता भी प्रभावित होती है. जिसके परिणामस्वरूप जेट स्ट्रीम में भी परिवर्तन आता है. यह भारतीय मॉनसून के संदर्भ में अल-नीनो और ला-नीना की तीव्रता और गति के विकास में भी योगदान देता है.
चक्रवात निर्माण : चक्रवातों के केंद्र में अति निम्न दबाव की स्थिति पायी जाती है. जिसकी वजह से इसके आसपास की हवाएं तीव्र गति से इसके केंद्र की ओर प्रवाहित होती हैं. जब इस तरह की परिस्थितियां सतह के नजदीक विकसित होती हैं तो मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं. अरब सागर में बनने वाले चक्रवात, बंगाल की खाड़ी के चक्रवातों से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि भारतीय मॉनसून का प्रवेश प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अरब सागर की ओर होता है.
जेट स्ट्रीम : जेट स्ट्रीम पृथ्वी के ऊपर तीव्र गति से चलने वाली हवाएं हैं, ये भारतीय मॉनसून को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं.
सामान्य मानसून के संभावित लाभ
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खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि
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जल की कमी दूर होगी
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बिजली संकट कम होगा
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गर्मी से राहत
झारखंड में 10 साल में बारिश की स्थिति (मिमी में)
वर्ष – बारिश हुआ – सामान्य
2013- 844.9-1091.9
2014- 930.3-1091.9
2015-941.9-1091.9
2016-1101.8-1091.9
2017-988.1-1091.9
2018-785-1091.9
2019-858.9-1054.7
2020-902.4-1054.7
2021-1041.5-1054.7
2022-817.6-1022.9
झारखंड में मानसून का आना और जाना
वर्ष- आना- जाना
2012- 19 जून- 15 अक्तूबर
2014- 18 जून-19 अक्तूबर
2015- 18 जून- 17 अक्तूबर
2016- 17 जून- 19 अक्तूबर
2017- 16 जून- 17 अक्तूबर
2018- 25 जून- 5 अक्तूबर
2019- 21 जून- 14 अक्तूबर
2020- 13 जून- 26 अक्तूबर
2021- 12 जून- 11 अक्तूबर
2022- 18 जून- 20 अक्तूबर
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