कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 17 जनवरी को एनएलसी इंडिया लिमिटेड की नयी पुनर्वास और पुन:स्थापना (आरएंडआर) नीति का शुभारंभ किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि खदान के लिए जमीन देने वाले प्रभावित ग्रामीणों को निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया के आधार पर मुआवजा दिया जायेगा. उन्होंने यह बात भी कही कि आरएंडआर पाॅलिसी में विस्थापितों के लिए अधिक सुविधाएं हैं.
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि अगर यह नीति इतनी ही अच्छी है तो इससे वर्तमान में और भविष्य में प्रभावित होने वाले लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं. दूसरा सवाल यह भी है कि जब सरकार के पास पहले से पुनर्वास नीति थी तो अचानक से नयी नीति की जरूरत क्यों आ पड़ी? इन तमाम सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि नयी पुनर्वास नीति में क्या खास है. तो अभी तक जो बात उभकर सामने आयी है उसके अनुसार आरएंडआर पाॅलिसी की खास बातें इस प्रकार है-
Launched @nlcindialimited's new policy of Rehabilitation and Resettlement from New Delhi today. Govt led by PM @narendramodi ji is committed to welfare of all sections of society. This new policy enhances amenities to Project Affected Families. pic.twitter.com/nUM2X6pUt5
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) January 17, 2022
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जमीन के बदले अब ग्रामीणों को नौकरी नहीं मिलेगी
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मुआवजे के रूप में शहरी क्षेत्र के लोगों को जमीन देने पर प्रति एकड़ 75 लाख रुपये मिलेंगे
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ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को प्रति एकड़ 40 लाख रुपये
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जमीन देने वालों को रोजगार ना देकर 20 साल तक के लिए 7000-10,000 रुपये मासिक सहायता मिलेगी
कोयला क्षेत्र से जुड़े लोगों को कहना है कि अभी यह पुनर्वास नीति तमिलनाडु के एनएलसी इंडिया लिमिटेड के लिए लायी गयी है, लेकिन कुछ समय बाद यह नीति पूरे कोल इंडिया पर लागू हो सकती है. एनएलसी इंडिया लिमिटेड लिग्नाइट कोयले का खनन करने वाली नवरत्न कंपनी है. यह लिग्नाइट कोयले की सबसे बड़ी खदान है.
आरएंडआर पाॅलिसी पर बात करते हुए लखन लाल महतो, महामंत्री, युनाइटेड कोल वर्कर्स यूनियन (एटक) ने कहा कि यह एक ऐसी नीति है जिससे विस्थापितों को सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही होगा. विस्थापित जमीन देकर अपने जीविकोपार्जन का साधन सरकार को सौंप देते हैं और उसके बदले अगर उन्हें नौकरी ना मिले और मुआवजा भी ढंग से ना मिले तो कोई विस्थापित अपनी जमीन नहीं देगा.
शहरी क्षेत्र के लिए 75 लाख का मुआवजा और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 40 लाख का मुआवजा बिलकुल तर्कसंगत नहीं है और हम इसका विरोध करते हैं और हमने इसका विरोध शुरू कर दिया है क्योंकि आज नहीं तो कल यह नीति पूरे कोल इंडिया पर लागू हो जायेगी. विस्थापित अगर जमीन नहीं देंगे तो कोल इंडिया पर भी इसका असर पड़ेगा. 2022-23 में कोल इंडिया को एक हजार मिलियन टन कोयला का उत्पादन करना था, लेकिन वह जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण ऐसा नहीं कर पायी और अब 2024-25 के लिए यह लक्ष्य निर्धारित किया है.
वहीं विस्थापितों के नेता काशीनाथ केवट ने कहा कि आरएंडआर पाॅलिसी की वजह से देश में औद्योगिक वातावरण अशांत हो जायेगा. इस पाॅलिसी का झारखंड सहित पूरे देश में विरोध होगा, जिसका असर औद्योगिक वातावरण पर पड़ना तय है.
काशीनाथ केवट का कहना है कि आरएंडआर पाॅलिसी को अभी लाना सरकार का बहुत ही गैरजरूरी कदम है, साथ ही यह गैरकानूनी भी है. हम विस्थापित इसका विरोध करते हैं. अगर विस्थापितों को जमीन के बदले नियोजन नहीं मिलेगा तो वे जमीन क्यों देंगे? हम नियोजन नहीं तो जमीन नहीं की नीति पर काम करेंगे.
अभी कोल इंडिया दो एकड़ जमीन पर नौकरी देती है, लेकिन अगर नौकरी नहीं होगी तो कोई व्यक्ति और परिवार अपने जीविकोपार्जन का साधन सरकार को क्यों सौंपेगा. सरकार ने शहरी क्षेत्रों के लिए 75 लाख रुपये प्रति एकड़ मुआवजे की बात की है और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 40 लाख. इतने पैसे में जमीन नहीं दी जा सकती है.
सरकार अभी जिस नियम के तहत जमीन का दर तय करती है अगर उसे ही सही माने तो ग्रामीण इलाकों में भी तीन-चार लाख रुपये प्रति डिसमिल से कम पर जमीन नहीं मिलती है. चूंकि बाजार मूल्य से चार गुना मुआवजा देना होता है, तो उस लिहाज से एक एकड़ जमीन की कीमत 12 करोड़ हो जाती है और सरकार बात कर रही है, 75 लाख और 40 लाख की. इतने में विस्थापित अपनी जमीन कतई नहीं देंगे.
अगर ग्रामीण जमीन नहीं देंगे तो कोलयरी का विस्तार नहीं होगा और कोयले के उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ेगा. कोल इंडिया अभी ही जमीन की कमी से जूझ रही है, क्योंकि विस्थापितों के साथ जिस तरह का अन्याय हुआ है वे अपनी जमीन अब कोल इंडिया को देना नहीं चाहते हैं. जमीन देने वालों को सात से 10 हजार मासिक देने की बात भी आरएंडआर पाॅलिसी में सामने आयी है. लेकिन क्या आज के समय में कोई व्यक्ति अपने परिवार का पालन-पोषण इतने में कर सकता है? यह राशि मिनिमम वेज से भी कम है. इसलिए हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं.