रांची : झारखंड के विभिन्न जिलों में टुसू पर्व मनाने का सिलसिला शुरू हो गया है. यूं तो यह पर्व मनाने का सिलसिला एक माह तक चलता है लेकिन मकर संक्रांति के दिन इसकी खास तौर पर पूजा की जाती है. 15 दिसंबर के बाद से ही कुंवारी कन्याएं शाम के वक्त टुसू की पूजा करती है. ऐसे में ये सवाल उठता है कि कुंवारी कन्या ही इसकी पूजा क्यों करती है और टुसू पर्व किसकी याद में मनाया जाता है.
क्या है कहानी
टुसू पर्व को लेकर एक कहानी सबसे अधिक प्रचलित है. कहा जाता है कि टुसू कुरमी समुदाय से आने वाले एक गरीब किसान की बेटी थी. वह इतनी सुंदर थी कि पूरे राज्य में उसकी सुदरंता का बखान होने लगा. पास के राज्य में एक क्रूर राजा रहता था. उस तक भी ये बात पहुंच गयी. वह राजा उसे पाने के लिए षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया. उस वक्त पूरे राज्य में भीषण अकाल पड़ा. राजा ने इसी का फायदा उठाने का सोचा और उसने कृषि कर दोगुणा कर दिया. उसने अपने सैनिकों से जबरन कर वसूलने का आदेश जारी कर दिया. इससे पूरे राज्य में हड़कंप मच गया.
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टुसू की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है यह पर्व
टुसू ने किसानों का एक संगठन खड़ा कर राजा के आदेश का विरोध करने का फैसला किया. इसके बाद राजा के सैनिकों और किसानों के बीच युद्ध हो गया. इसमें हजारों लोग मारे गये. युद्ध में टुसू कमजोर पड़ चुकी थी. उन्हें समझ में आ चुका था कि वह राजा के सैनिकों के गिरफ्त में आ जाएंगी. उसने राजा के सामने घुटने टेकने के बजाय जल-समाधि लेकर शहीद होने का फैसला कर लिया और उफनती नदी में कूद गयी. टुसू की इस कुर्बानी की याद में ही टुसू पर्व मनाया जाता है और टुसू की प्रतिमा बनाकर नदी में विसर्जित कर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. चूंकि टुसू एक कुवांरी कन्या थी इसलिए पर्व में कुंवारी लड़कियों की ही अधिक भूमिका होती है.
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