रांची: जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा रविवार को रांची के मोरहाबादी मैदान में उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया गया. इस महारैली में बड़ी संख्या में जनजाति समाज के लोग झारखंड के विभिन्न जिलों से पहुंचे. इस रैली का मुख्य मुद्दा था कि जिसने जनजाति के मत या विश्वासों का परित्याग कर दिया हो और ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है, उसे अनुसूचित जनजाति (ST) का नहीं समझा जाए और उसे अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ नहीं मिले. पद्म भूषण कड़िया मुंडा ने कहा कि ईसाई या इस्लाम धर्म अपना चुके लोगों को अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाए. उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिले. राष्ट्रीय संयोजक पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने कहा कि देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था, लेकिन इन सुविधाओं का लाभ अधिकतर वे लोग उठा रहे हैं, जो अपनी रूढ़ि प्रथा छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं और इन सुविधाओं का 80 प्रतिशत लाभ मूल जनजाति समुदाय से छीन रहे हैं.
इन्हें नहीं मिले आरक्षण का लाभ
जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कहा कि सरकार से हमारी मांग है कि धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति के आरक्षण की सुविधा नहीं मिले. इस मुद्दे को स्व कार्तिक उरांव ने संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष रखा था ताकि जो व्यक्ति जिसने जनजाति आदि मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया है और ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है, उसे अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा और उसे अनुसूचित जनजाति का आरक्षण नहीं मिलेगा. देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था, लेकिन इन सुविधाओं का लाभ अधिकतर वे लोग उठा रहे हैं, जो अपनी रूढ़ि प्रथा छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं. पूर्व न्यायाधीश प्रकाश सिंह उईके ने कहा कि भीमराव अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद-341 में अनुसूचित जाति के लिए व्यवस्था की है कि जो अनुसूचित जाति के लोग मुस्लिम या ईसाई धर्म ग्रहण करेंगे उसे अनुसूचित जाति का लाभ नहीं मिलेगा. जब मुस्लिम या ईसाई बनने पर अनुसूचित जाति की पहचान मिट जा रही है, तो आदिवासी की पहचान भी ईसाई या मुस्लिम धर्म में जाने पर उसकी आदिवासी की पहचान मिट जाती है.
ईसाई को एसटी आरक्षण में कोई अधिकार नहीं
जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय केन्द्रीय टोली सदस्य सत्येन्द्र सिंह खेरवार ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि डीलिस्टिंग, डॉ कार्तिक उरांव के व्यथित मन की वेदना और देशभर के बारह करोड़ परम्परागत जीवन व्यतीत करने वाले जनजातियों का कराहती हुई आवाज है. धर्मांतरित ईसाई पचहत्तर वर्षों से जबरन अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण का 80 प्रतिशत लाभ लगातार लेते आ रहें हैं जबकि ईसाइयों को एसटी आरक्षण में कोई अधिकार नहीं है. ईसाई तो अल्पसंख्यक हैं. धर्मांतरित ईसाई जनजाति आरक्षण की सूची में कभी नहीं रहा है। जनगणना 1921, 1931, भारत सरकार अधिनियम 1935 में इन्हें भारतीय ईसाई कहा गया है और ये भारतीय ईसाईयों ने ईसाई के नाम पर 1952 तक लाभ उठाया है. डॉ कार्तिक उरांव ने पूरा अध्ययन कर पाया कि भारत सरकार के किसी भी अधिनियम में या देशभर के राज्य सरकारों के किसी भी अधिनियम में धर्मांतरित ईसाईयों को अनुसूचित जनजाति नहीं माना गया है.
जनजाति आरक्षण पर अतिक्रमण
जनजाति आरक्षण पर ईसाइयों द्वारा संवैधानिक अतिक्रमण हुआ है. भारत सरकार और राज्य सरकार से जनजाति सुरक्षा मंच आह्वान करता है कि डॉ कार्तिक उरांव और संयुक्त संसदीय समिति के सिफारिश को मानकर धर्मांतरित ईसाईयों को अनुसूचित जनजाति आरक्षण की सूची से डीलिस्टिंग की जाए. ये बारह करोड़ परम्परागत जीवन व्यतीत करने वाले जनजातियों का जीवन एवं रोजी-रोटी जुड़ा हुआ है. झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति धुर्वा रांची के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा कि धर्मान्तरित लोग डीलिस्टिंग के डर से आदिवासियों की परंपरा, रीति-रिवाज की बात करने लगे हैं और कहते हैं कि हम एक ही माता-पिता के दो संतान हैं. हमारा खून एक है. हमने धर्म बदला है, पर जाति नहीं. हमें आपस में लड़वाया जा रहा है. तो मैं वैसे लोगों को याद दिलाना चाहता हूं कि अपने धर्म ग्रंथ नेमहा बाइबिल के माध्यम से आदिवासियों के पूजा स्थल को टुकड़े-टुकड़े करने जलाने और नष्ट करने की बात किसने की? मरियम को आदिवासी महिला के रंग रूप, वेशभूषा में मूर्ति बनाकर कर विवाद किसने खड़ा किया? ये लड़वाने का काम हम नहीं बल्कि लड़वाने का काम चर्च मिशनरियों द्वारा किया जा रहा है. डीलिस्टिंग से पहले अपने मूल धर्म में घर वापसी करनेवालों का स्वागत किया जाएगा.
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रैली को इन्होंने किया संबोधित
रैली को पद्म भूषण कड़िया मुंडा, जगलाल पाहन, संदीप उरांव, ललिता मुर्मू, जगरनाथ भगत, सन्नी उरांव, आरती कुजूर, रोशनी खलखो, देवव्रत पाहन, मनोज लियांगी, हिन्दुवा उरांव, अंजली लकड़ा, राजू उरांव ने संबोधित किया और सबने एक सुर में कहा कि राजनैतिक दल अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीट पर धर्मान्तरित व्यक्ति को टिकट नहीं दें. जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सरकारी नौकरियों को हथियाने वाले ऐसे गलत एवं षड्यंत्रकारी धर्मान्तरित व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आगे आएं. केन्द्र एवं राज्य सरकारों में ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों से भी यह अपेक्षा है कि वे समाज के अंतिम छोर पर खड़े इस जनजातीय समुदाय की आवाज बनें और धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुचित लाभ देने से खुद को रोकें. भारत के प्रत्येक सांसद एवं विधानसभा सदस्य से अपेक्षा की जाती है कि वे जनजातियों को उनका वाजिब हक दिलाने में अपनी ओर से व्यक्तिगत रूचि लेकर पहल करें और धर्मान्तरित व्यक्तियों को बेनकाब करें. धन्यवाद ज्ञापन जनजाति सुरक्षा मंच के मीडिया प्रभारी सोमा उरांव ने किया.