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BIG ISSUE: रांची में बिना निगरानी बिक रहा पानी, संचालित हो रहे अवैध प्लांट, प्रशासन व निगम बना अनजान

पेयजल की किल्लत को देखते हुए लोग अब घर से बाहर जैसे ही कहीं निकलते हैं, तो किसी दुकान पर रुक कर दो बोतल पानी की खरीदारी जरूर करते हैं. लेकिन जब यह पानी खत्म हो जाता है, तो फिर ऐसी बोतलों को खुली जगह और नाली में फेंक दिया जाता है.

झारखंड के अन्य जिलों के साथ-साथ राजधानी रांची की बड़ी आबादी जलस्तर के नीचे जाने व सप्लाइ पानी में गंदगी को देखते हुए बोतल बंद पानी और जार वाटर पर आश्रित हो गये हैं. लोगों की अधिक डिमांड को देखते हुए अब शहर की भी हर गली और मोहल्ले में जार वाटर की दुकानें खुल गयी हैं. बिना किसी गाइडलाइन के संचालित इन दुकानों में कहीं पर 10 रुपये में 20 लीटर तो कहीं पर 30 रुपये में 20 लीटर पानी दिया जा रहा है. वहीं बोतल बंद पानी का कारोबार भी जोरों पर है. कारोबारी सूत्रों के अनुसार, राजधानी रांची में 25 हजार लीटर रोज बोतल बंद पानी की खपत है. ऐसे में 20 रुपये प्रति लीटर कीमत के हिसाब से एक दिन में पांच लाख रुपये का बोतल बंद पानी राजधानीवासी पी रहे हैं. यानी पूरे माह में डेढ़ करोड़ रुपये सिर्फ बोतल बंद पानी पर बड़ी आबादी खर्च कर रही है. इसमें जार पानी के उपयोग को जोड़ा जाये, तो पानी पर कुल खर्च हर महीने दो करोड़ से ज्यादा हो जायेगा. ऐसे में बड़ी आबादी पर पड़नेवाले आर्थिक भार और संकट का हम अनुमान कर सकते हैं.

पाताल पहुंच रहा भूमिगत जल

इन दिनों गली मोहल्ले में अवैध रूप से जार वाटर कंपनियां खोल दी जा रही हैं. इस कारण राजधानी रांची का जलस्तर दिन प्रतिदिन पाताल पहुंच रहा है. इन प्लांटों को चलाने के लिए जार वाटर प्रतिष्ठान संचालक और कंपनियों के द्वारा तीन से चार बोरिंग करायी जाती है. फिर इसके माध्यम से रात-दिन पानी निकाला जाता है. अत्यधिक पानी निकालने से कई जगहों पर आसपास के घरों की बोरिंग सूख जाती है. लेकिन कोई स्पष्ट नियमावली नहीं होने से ऐसे प्लांटों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है.

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बोतल बंद पानी बढ़ा रहा प्लास्टिक कचरा

पेयजल की किल्लत को देखते हुए लोग अब घर से बाहर जैसे ही कहीं निकलते हैं, तो किसी दुकान पर रुक कर दो बोतल पानी की खरीदारी जरूर करते हैं. लेकिन जब यह पानी खत्म हो जाता है, तो फिर ऐसी बोतलों को खुली जगह और नाली में फेंक दिया जाता है. एक बार नाली में जाने के बाद यह किसी ठोस कचरे के संपर्क में आकर पूरी नाली के ही प्रवाह को ही रोक देता है. इस प्रकार से नाली का पानी ओवरफ्लो कर सड़कों पर बहने लगता है.

छह वर्ष से धूल फांक रहा नगर निगम का प्रस्ताव

जार वाटर के प्लांटों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए रांची नगर निगम के द्वारा वर्ष 2017 में ही नगर विकास विभाग को प्रस्ताव भेजा गया था. इसमें यह सुझाव दिया गया था कि ऐसे वाटर प्लांटों में वाटर मीटर लगाया जाये, ताकि यह पता चल सके कि वह कितना पानी का दोहन करते हैं. इसके अलावा यहां जल संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग हो. वाटर प्लांट घनी आबादी के बीच नहीं हो, इसका भी सुझाव दिया गया था. लेकिन प्रस्ताव पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया है. नतीजा बेधड़क होकर शहर में ऐसे वाटर प्लांटों का संचालन हो रहा है.

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भूमिगत जल के दोहन पर नियम नहीं, केवल लेते हैं ट्रेड लाइसेंस

रोज लाखों लीटर पानी का उपभोग करनेवाले ऐसे प्रतिष्ठान लाइसेंस के नाम पर केवल नगर निगम से ट्रेड लाइसेंस ही लेते हैं. इसके अलावा हर दिन धरती का सीना सूखानेवाले ऐसे प्रतिष्ठानों से निगम कोई शुल्क नहीं वसूलता है. इसी का नतीजा है कि ये जितना पानी जार में भरते हैं, उतने ही पानी को नाली में भी बहा देते हैं.

बोतल बंद पानी बहुत ज्यादा सुरक्षित नहीं

रिम्स के मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ विद्यापति ने कहा कि बोतल बंद पानी ज्यादा सुरक्षित नहीं है, क्योंकि प्लास्टिक का जार अगर धूप में रहता है तो उसके माइक्रो कण पानी में मिल जाते हैं. ये कण पानी के साथ हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं. शरीर में पहुंचते ही इसका दुष्प्रभाव दिखता है. यह धीरे-धीरे शरीर पर असर डालता है. इससे पेट की बीमारी जैसे: डायरिया, पेट का संक्रमण और उल्टी दस्त की समस्या हो जाती है. इसकी गुणवत्ता को मापने की कोई पद्धति नहीं है, इसलिए पानी शुद्ध घरों तक पहुंच रहा है या नहीं, इसका पता नहीं लगता है. ऐसे में अगर जार का पानी घरों तक पहुंच रहा है, तो प्रशासन इसके शुद्धता की जांच करें.

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किडनी की बीमारी और कैंसर का भी खतरा

डॉ विद्यापति ने बताया कि पानी के जार से प्लास्टिक का कण शरीर में पहुंचने के बाद शरीर से बाहर निकलता नहीं है. इसके माइक्रो कण से किडनी और कैंसर की समस्या का खतरा रहता है. ऐसे में इसको हल्के में नहीं लेना चाहिए. प्लास्टिक के जार या बोतल के उपयोग से बचना चाहिए. यही कारण है कि अब होटल और अन्य जगहों पर शीशे की बोतल का उपयोग किया जा रहा है.

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