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जब डॉ रामदयाल मुंडा का नारा जे नाची से बाची गूंज उठा था यूएनओ में, ऐसे दिलायी थी झारख‍ंडी सांस्कृति को पहचान

झारखंडी भाषा-संस्कृति के प्रति अभिमान पैदा करनेवाले डॉ रामदयाल मुंडा का जन्म आज (23 अगस्त) ही के दिन तमाड़ के दिउड़ी गांव में हुआ था

झारखंडी भाषा-संस्कृति के प्रति अभिमान पैदा करनेवाले डॉ रामदयाल मुंडा का जन्म आज (23 अगस्त) ही के िदन तमाड़ के दिउड़ी गांव में हुआ था. पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा़ एक विचारक, चिंतक, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी और सामाजिक आंदोलन के प्रणेता़ जन्म तमाड़ के दिउड़ी गांव में 23 अगस्त 1939 को हुआ था. माध्यमिक शिक्षा खूंटी हाईस्कूल से पूरी की़ रांची विवि से मानव विज्ञान में स्नातकोत्तर किया़ डाॅ मुंडा अपने आप में एक संस्था थे. सांस्कृतिक उत्थान के लिए अपनी बौद्धिकता दिखायी, तो माटी के लिए संघर्ष का जज्बा रखा़

जीवन का हर राग-लय झारखंड के लिए था

डॉ मुंडा का पूरा जीवन यहां की संस्कृति में रचा-बसा था़ उनके जीवन का हर राग-लय झारखंड के लिए था़ झारखंड की भाषा-साहित्य के लिए अनवरत प्रयासरत रहे़ 1982 में जब अमेरिका से झारखंड लौटे, तो सबसे रांची विवि के तत्कालीन कुलपति डॉ सुरेश सिंह से मुलाकात की़ जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना की़ झारखंड की भाषाई पहचान की यात्रा शुरू की़

यहां के साहित्यकारों में अंग्रेजी-हिंदी के दायरे से बाहर निकलकर अपनी भाषा की रचनाशीलता की ललक जगायी़ खुद नागपुरी, मुंडारी, पंचपरगनिया में लेखन किया़ अंतरराष्ट्रीय स्तर के एक बुद्धिजीवी की अपनी भाषा के प्रति सम्मान देख कई लोग सामने आये़ डॉ मुंडा ने एक किस्म से झारखंड में देशज परंपरा की नींव रखी़ अपनी भाषा-संस्कृति के प्रति अभिमान जगाया़ ऐसे झारखंड की कल्पना करते थे, जिसमें सांस्कृतिक मन-मिजाज के साथ एक रचनाधर्मिता हो़

कभी अपनी मिट्टी से दूर नहीं हुए

डॉ मुंडा देश के उन चुनिंदा आदिवासी बौद्धिक लोगों में थे, जिन्होंने अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनायी, लेकिन कभी अपनी मिट्टी से दूर नहीं हुए़ पठन-पाठन के लिए देश-विदेश में रहे़ अमेरिकन इस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज की फेलोशिप की यात्रा से लेकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के कई विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर रहे़ बावजूद अपने छोटे से गांव दिउड़ी के दर्द-सरोकार से दूर नहीं रहे़ आखिरी सांस तक यहां के लोक संगीत, लोक कलाकारों के लिए जीया़ लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच तक लेकर गये़ सोवियत संघ से लेकर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका तक झारखंड की कला-संस्कृति को पहचान दिलायी.

आदिवासी संस्कृति उनकी सोच के केंद्र में था
रामदयाल मुंडा अक्सर कहते थे :

जे नाची से बाची. आदिवासी संस्कृति उनकी सोच के केंद्र में था. ढोल-मांदर, नगाड़े के साथ बांसुरी बजाते हुए उनकी छवि लोगों के जेहन में अभी भी है. वर्ष 2007 में डॉ मुंडा को संगीत नाटक अकादमी का सम्मान मिला. 22 मार्च 2010 में राज्यसभा सांसद बने. इसी वर्ष पद्मश्री भी मिला. रांची विवि के कुलपति भी रहे़

उनकी जीवन यात्रा पर 2017 में मेघनाथ और बीजू टोप्पो ने वृत्तचित्र बनायी. यह डॉक्यूमेंट्री उनकी रचनाशीलता को सामने लाती है. डॉ मुंडा का झारखंड के त्योहार सरहुल को लोकप्रिय बनाने में उनका खास योगदान रहा. नागपुरी, मुंडारी, हिंदी व अंग्रेजी में भारतीय आदिवासियों के भाषा, साहित्य, समाज, धर्म व संस्कृति, विश्व आदिवासी आंदोलन और झारखंड आंदोलन पर उनकी 10 से अधिक पुस्तकें तथा 50 से ज्यादा निबंध प्रकाशित हैं.

डॉ रामदयाल मुंडा की ढोल बजाती प्रतिमा का अनावरण आज

रांची. झारखंड आदिवासी विकास समिति की ओर से सोमवार को मोरहाबादी के टैगोर हिल स्थित ओपेन स्पेस थिएटर में पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा जयंती के अवसर पर उनकी ढोल बजाती हुई नौ फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया जायेगा. इस मौके पर सौ नगाड़ा, ढोल, मांदर, तुरही, बांसुरी आदि बजाया जायेगा.

कार्यक्रम दिन के 12 बजे से शुरू होगा. समिति के अध्यक्ष प्रभाकर नाग ने बताया कि इस अवसर पर उनके लिखे गीत गाये जायेंगे और उनकी लिखी कविताओं का पाठ किया जायेगा. इसका सीधा प्रसारण रेडियो धूम पर होगा. पद्मश्री मुकुंद नायक व पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे. प्रख्यात आदिवासी लोक कलाकार व पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा के शिष्य सुखराम पाहन के नेतृत्व में पारंपरिक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जायेगा.

उनके महत्वपूर्ण पड़ाव

1960 के दशक में उन्होंने एक छात्र और नर्तक के रूप में संगीतकारों की एक मंडली बनायी.

1977-78 में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज की फेलोशिप.

1980 के दशक में शिकागो में एक छात्र और मिनेसोटा विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में दक्षिण एशियाई लोक कलाकारों और भारतीय छात्रों के साथ प्रदर्शन किया.

1981 : रांची विवि के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग से जुड़े

1983 : ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी कैनबरा में विजिटिंग प्रोफेसर

1985-86 : रांची विवि के प्रतिकुलपति

1986-88 : रांची विवि के कुलपति

1987 : सोवियत संघ में हुए भारत महोत्सव में मुंडा पाइका नृत्य दल के साथ भारतीय सांस्कृतिक दल का नेतृत्व किया

1988 : अंतरराष्ट्रीय संगीत कार्यशाला में शामिल हुए

1988 : जेनेवा गये

1988-91 : भारतीय मानव वैज्ञानिक

सर्वेक्षण किया

1989 : फिलीपिंस, चीन और जापान का दौरा

1989-1995 : झारखंड विषयक समिति, भारत सरकार के सदस्य

1990 : राष्ट्रीय शिक्षा नीति आकलन समिति के सदस्य

1991-1998 : झारखंड पीपुल्स पार्टी के प्रमुख अध्यक्ष

1996 : सिराक्यूज विवि न्यूयाॅर्क से जुड़े

1997-2008 : भारतीय आदिवासी संगम के प्रमुख अध्यक्ष और संरक्षक सलाहकार

1997 : अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सलाहकार समिति सदस्य

1998 : केंद्रीय वित्त मंत्रालय की फाइनांस कमेटी के सदस्य

2010 : पद्मश्री से सम्मानित

2010 मार्च : राज्यसभा सदस्य मनोनीत

Posted By : Sameer Oraon

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