World Environment Day 2023: हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. पर्यावरण के संरक्षण और इसके प्रति जागरूकता को ध्यान में रखते हुए इस दिन को मनाया जाता है. बात पर्यावरण की हो और जिक्र झारखंड का ना हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है. लेकिन, बीते कुछ सालों में झारखंड (विशेष तौर पर रांची) में पर्यावरण के साथ इस कदर छेड़छाड़ किया गया है कि यहां की एक रिवाज खत्म होने के कगार पर है जो एक समय में यहां की सुंदरता हुआ करती थी. अगर आप सोच रहे है क्या तो हम आपसे पूछना चाहेंगे कि आखिरी बार आपने राजधानी में कहा पीपल के छांव में लोगों को बैठे बैठकी लगाते देखा है.
बात अगर राजधानी रांची की करें तो शहर के करमटोली चौक पर विशाल छायादार पेड़ जरूर है लेकिन, लोग वहां चाहकर भी बैठ नहीं पाते. कारण यह है कि उस पेड़ के नीचे मिलने वाली शीतल हवा से ज्यादा लोगों को सड़क पर चल रही गाड़ियों से निकलने वाली प्रदूषित धूंआ मिलती है. ऐसी ही स्थिति है अन्य पेड़ों की भी. मोरहाबादी स्थित रांची विश्वविद्यालय के एक बिल्डिंग के समीप विशाल बरगद का पेड़ हुआ करता था, जहां बच्चे बैठकर समोसा खाते थे, अपनी पढ़ाई की चर्चा करते थे, वो भी शुद्ध और साफ वातावरण में, लेकिन भवन निर्माण के लिए उस पेड़ को पूरी तरह काट दिया गया. अब बच्चों को ना ही छांव मिलता है और ना ही शुद्ध हवा.
भारत देश एक ग्रामीण प्रधान देश है. रांची सहित झारखंड के हरेक जिले में गर्मी के मौसम में भी लोग दोपहर में पीपल के छांव में घरवालों के साथ बैठना पसंद करते थे. सड़क किराने भी पीपल और बरगद के छांव में लोग बैठकर समय गुजारा करते थे. लेकिन, वर्तमान स्थिति ऐसी है कि रांची में पीपल और बरगद के पेड़ भी जल्दी नहीं मिलते और ना ही उसकी छांव में बैठे लोग. आधुनिकता के कारण जिस तरह पेड़ों की कटाई राजधानी में हुई है अब यहां ऐसे बड़े विशाल पेड़ गिने-चुने जगहों पर ही बचे है.
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एक समय था जब लोग इन विशाल पेड़ों के छांव में बैठकर या तो बातचीत किया करते थे या फिर ताश खेला करते थे. प्रकृति के बीच खुद को मनोरंजन देने की यह कोशिश पहले देखने को मिलती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. आखिर ऐसा क्यों? इसका जवाब एक वाक्य में यही मिलता है कि पर्यावरण का दोहन. जिस तरह बड़े-बड़े बिल्डिंग, उद्योग की स्थापना सहित अन्य सुविधा के लिए लोगों ने पेड़ों की कटाई की, वायु, जल और मिट्टी को प्रदूषित किया, आज नई पीढ़ी के लोग इस मनोरंजन से वंचित रह जा रहे है.