रांची : झारखंड में स्वास्थ्य की आधारभूत संरचनाओं के साथ-साथ डॉक्टरों की भारी कमी है. देश की तुलना में झारखंड अब भी काफी पीछे है. हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में 834 लोगों पर एक डॉक्टर हैं. वहीं, झारखंड में 3000 लोगों पर एक डॉक्टर हैं. जबकि, डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार 1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. हालांकि, राज्य सरकार के अनुसार पहले की तुलना में राज्य में डॉक्टरों की संख्या बढ़ी है. आधारभूत संरचनाएं भी बढ़ायी गयी हैं, लेकिन चुनौती बरकरार है.
झारखंड के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए सरकार प्रयासरत है, लेकिन सुदूर ग्रामीण इलाकों तक इसकी पहुंच नहीं हो पायी है. डॉक्टरों को ग्रामीण इलाकों में पदस्थापित तो किया जाता है, लेकिन वे या तो अस्पताल नहीं जाते हैं या फिर नौकरी ही छोड़ देते हैं. वहीं, 3300 से ज्यादा स्वास्थ्य उपकेंद्र केवल नर्सों के भरोसे चल रहे हैं. वहीं, नर्सों की भी भरी कमी है. हालांकि, वर्ष 2018 की तुलना में स्थिति सुधरी है. क्योंकि, उस समय राज्य में 8165 व्यक्ति पर एक डॉक्टर थे और एक अस्पताल पर 65832 लोगों के इलाज का भार था.
झारखंड में नौ मेडिकल कॉलेज
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के अनुसार, देश भर में 13,08,009 एलोपैथिक डॉक्टर पंजीकृत हैं. वहीं, मेडिकल कॉलेजों में 82 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वर्ष 2014 में 387 मेडिकल कॉलेज थे. अब 706 हो गये हैं. वहीं, एमबीबीएस की सीटें वर्ष 2014 से पहले 51348 थीं, जिसमें 112 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. फिलहाल एमबीबीएस की सीटें 1,08,940 हो गयी हैं. इसके अलावा पीजी की सीटें 31,185 (2014 से पहले) से बढ़कर 70,674 हो गयी हैं. वहीं, झारखंड की बात की जाये तो राज्य में मेडिकल कॉलेज वर्ष 2000 में तीन थे, जो बढ़कर नौ हो गये हैं. यहां एमबीबीएस की सीटें 920 हैं.
इस साल का थीम : मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि स्वास्थ्य ही मानव के जीवन की बुनियाद है. इसी के मद्देनजर इस साल का थीम मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार रखा गया है, जो यह बताता है कि सेहत हर व्यक्ति का हक है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि किसी व्यक्ति की आर्थिक परिस्थिति कैसे भी क्यों न हो, स्वास्थ्य सेवाएं मिलना उसका अधिकार है.
दूसरे राज्यों पर कम हुई निर्भरता
रिम्स राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल है. यहां कैंसर, हृदय रोग, किडनी रोग जैसी बीमारियों के उपचार की सुविधा है. पूर्व में ऐसे इलाज के लिए दूसरे राज्य पर निर्भर रहना पड़ता था. निजी क्षेत्र में भी कई सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल खुले हैं, जिससे दूसरे राज्यों पर निर्भरता कम हुई है.
24 वर्षों में जो नहीं हो सका
- इटकी में मेडिकल सिटी की स्थापना अब तक नहीं हो सकी
- मेडिकल यूनिवर्सिटी बनाने की योजना अब तक अधर में
- गांवों के अस्पतालों में डॉक्टर की उपस्थिति सुनिश्चित करना
- एमबीबीएस और पीजी की सीटें नहीं बढ़ायी जा सकीं
राज्य में 2021 की तुलना में अस्पतालों की संख्या बढ़ी
अस्पताल वर्ष 2001 वर्ष 2024
जिला अस्पताल 12 23
अनुमंडलीय अस्पताल 09 13
मेडिकल कॉलेज 03 09
हर साल सात अप्रैल को मनाया जाता यह दिवस
हर साल सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. यह दिवस स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और लोगों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है.
इधर, बेहतर हो रही है स्वास्थ्य सुविधा
हाल के दिनों में राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुई हैं. एम्स देवघर के संचालित होने से राज्य के मरीजों को अब रिम्स के अलावा यहां भी इलाज का विकल्प मिल गया है. यहां प्रतिदिन 1200 मरीजों को परामर्श दिया जा रहा है. इसे बढ़ाकर 3000 तक करने का लक्ष्य रखा गया है. सामान्य बीमारी के अलावा सुपर स्पेशियालिटी की सुविधा भी है. वहीं, कांके (रांची) के सुकुरहुटू में टाटा कैंसर अस्पताल भी मरीजों को बेहतर सुविधा उपलब्ध करा रहा है. यहां कैंसर मरीजों को भर्ती कर इलाज की सुविधा है. 80 बेड के इस अस्पताल में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी की सुविधा भी उपलब्ध है. टाटा कैंसर हॉस्पिटल खुलने से काफी हद तक महानगरों पर निर्भरता खत्म हुई है.
क्या कहते हैं अधिकारी
राज्य गठन के बाद यहां स्वास्थ्य की स्थिति पहले से बेहतर हुई है. डॉक्टरों की कमी सिर्फ झारखंड में नहीं है, बल्कि सभी राज्यों में है. स्वास्थ्य मापदंड के अनुसार, एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए. झारखंड में तीन हजार पर एक डॉक्टर हैं.
आलोक त्रिवेदी, एनएचएम के अभियान निदेशक