विश्व हिंदी सम्मेलन में जापान से 81 वर्षीय हिंदी प्रेमी प्रोफेसर तामियो मिजोकामी भी हिस्सा लेने आये हैं. प्रभात खबर से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा, यह हिंदी प्रेम ही है, जो उन्हें जापान के ओसाका शहर से फिजी के नादी शहर तक खींच लाया. वे भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित हैं. पद्मश्री का तमगा वे सम्मेलन में हर दिन लगाये हुए मिले. उन्होंने जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में 40 साल तक हिंदी पढ़ायी.
अवकाशग्रहण के बाद अब उसी विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर हैं. पद्मश्री को लेकर विनोदी भाव से कहते हैं, ‘पद्मश्री के मामले में भारत के विदेश मंत्री डॉ जयशंकर से मैं सीनियर हूं. डॉ जयशंकर को तो यह सम्मान 2019 में मिला, मैं 2018 में ही पद्मश्री से सम्मानित हो गया था.’ वे बताते हैं, ‘जब मैं हाइस्कूल का विद्यार्थी था और कोबे शहर में रहता था, तब वहीं रह रहीं दो भारतीय महिलाओं ने मुझे बड़ा आकर्षित किया. उनके पहनावे और बोलचाल में एक आकर्षण था. तभी मैंने हिंदी सीखने का फैसला किया.’
वे मजाकिया लहजे में कहते हैं, ‘युवापन के इस आकर्षण के लिए माफ कर दिया जाए.’ बहरहाल, इसने उनके जीवन की धारा ही बदल दी. वे उन दोनों महिलाओं के संपर्क में अब भी हैं और उनसे उनके आत्मीय संबंध हैं. प्रोफेसर तामियो मिजोकामी कहते हैं, ‘आकर्षण की एक वजह यह भी थी कि जापान उस दौरान अमेरिका का पिछलग्गू था. जवाहर लाल नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. मुझे लगा कि यही सही रास्ता है.’
उन्होंने चार साल ओसाका विश्वविद्यालय में हिंदी की पढ़ाई की. दो साल प्रयाग में रह कर हिंदी की बारीकियों का अध्ययन किया. उन्होंने फिजी में विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की तारीफ की. खुद को आमंत्रित करने के लिए भारत सरकार का आभार व्यक्त किया.