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कौड़ीखुटाना में 30 महिलाएं को कोकुन से धागा व कपड़े तैयार कर बन रहीं आत्मनिर्भर

मुखिया अनिता हेंब्रम निभा रहीं महत्वपूर्ण भूमिका

मंडरो. प्रखंड क्षेत्र की कौड़ीखुटाना पंचायत की आदिवासी बहुल गांव की महिलाएं जो कल तक विकास की मुख्यधारा से हटकर अपनी जीविकापार्जन के लिए पूरी तरह से वनों पर निर्भर थीं, लेकिन अब यहीं महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं. महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने में मुखिया अनिता हेंब्रम की सबसे अहम भूमिका रहीं है. दरअसल, मुखिया अनिता हेंब्रम समाज की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से पंचायत की सैकड़ों महिलाओं को अपने समूह से जोड़कर राज्य के साथ विदेश तक जाने जाने वाले रेशम नगर भगैया सिल्क और यहां के रोजगार जैसे की सिल्क धागा की कटाई, कपड़े की बुनाई समेत अन्य कार्यों से जोड़कर आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है. मुखिया अनिता हेंब्रम ने बताया कि मेरे द्वारा अब तक में 30 महिलाओं को कोकुन से धागा तैयार कर कपड़ा बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यह महिलाएं प्रशिक्षण लेकर धागा तैयार करने में जुटे हुए हैं और धागा तैयार कर क्लस्टर के माध्यम से मार्केट में उचित दामों में से बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं. वहीं मुखिया ने यह भी बताया कि आसपास क्षेत्र के और महिलाओं को भी कोकुन से धागा कटाई व कपड़ा बनायी समेत अन्य चीजों का प्रशिक्षण दिया जायेगा. ताकि प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने आप को आत्मनिर्भर बना सके.

कैसे बनता है रेशम का धागा :

आठ दिनों तक ये कीड़े एक तरल प्रोटीन को निकालते हैं, जो हवा के संपर्क में आते ही सख्त बनकर धागे के रूप में आ जाता है. फिर धागा बॉल का आकार ले लेता है, जिसे कोकुन कहा जाता है. इस कोकुन को गर्म पानी में डालकर रेशम तैयार किया जाता है. जबकि एक कोकुन से 1300 मीटर तक रेशमी धागा निकलता है, जिससे तैयार कर धागा-कटाई एवं कपड़ा बनायी का कार्य हैंडलूम के माध्यम से किया जाता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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