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कौन हैं भाजपा के अर्जुन मुंडा को हराने वाले कालीचरण मुंडा, राजनीति में ऐसे हुई थी उनकी इंट्री

कालीचरण मुंडा का जन्म खूंटी के मुरहू पंचायत में स्थित माहिल गांव में 10 नवंबर 1961 को हुआ. कालीचरण को राजनीति विरासत में मिली थी. क्योंकि उनके पिता टी मुचिराय मुंडा कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता थे.

खरसावां : लोकसभा चुनाव में झारखंड की सभी आदिवासी रिजर्व सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. इसमें राज्य की सबसे हाईप्रोफाइल सीट खूंटी भी एक है. जहां से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कालीचरण मुंडा से हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल उठना लाजमी है कि कालीचरण मुंडा कौन हैं. और उन्होंने कैसे अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की.

कालीचरण मुंडा का जन्म खूंटी के मुरहू पंचायत में स्थित माहिल गांव में 10 नवंबर 1961 को हुआ. कालीचरण को राजनीति विरासत में मिली थी. क्योंकि उनके पिता टी मुचिराय मुंडा कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता थे. इससे पहले भी कांग्रेस उन्हें दो बार मौका दे चुकी थी. लेकिन साल 2014 में उन्हें भाजपा के कड़िया मुंडा और 2019 में अर्जुन मुंडा से उन्हें मामूल अंतर से हार के सामना करना पड़ा. इसके बावजूद पार्टी ने उन पर फिर भरोसा जताया. कालीचरण मुंडा ने भी पार्टी को निराश नहीं किया और केंद्रीय मंत्री सह अर्जुन मुंडा को भारी मतों से हराया. कालीचरण की पहचान क्षेत्र में जमीन से जुड़े नेता के रूप में होती है.

जनहित के कार्यों में पिता की सक्रियता को देख राजनीति में आये थे कालीचरण

कालीचरण मुंडा के पिता टी मुचिराय मुंडा कांग्रेस के बडे नेता थे. वे वर्ष 1967 से 1992 के बीच अविभाजीत बिहार में छह बार के विधायक और कई विभागों के मंत्री भी रहे. अपने पिता को ही देखकर कालीचरण मुंडा का राजनीति की ओर झुकाव हो गया. थोड़ी सी राजनीति की समझ विकसित हुआ तो वे कांग्रेस से जुड़ सक्रिय राजनीति प्रवेश कर गये. उनकी क्षमता को देखकर वे पार्टी ने उन्हें अविभाजित बिहार में रांची के ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष बनाया. बाद में उन्हें झारखंड प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया. वर्तमान में वह पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

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1992 व 1995 में तमाड़ से रह चुके हैं विधायक

काली चरण मुंडा अविभाजीत बिहार विधान सभा के लिए वर्ष 1992 व 1995 में तमाड़ विस क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. 1992 में काली चरण मुंडा के पिता तथा तमाड़ के तत्वालिन विधायक टी मुचिराय मुंडा के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने तमाड़ विधानसभा़ से चुनाव लड़ा तथा जीत दर्ज की. इसके बाद 1995 में भी तमाड़ से दोबारा विधायक चुने गये. हालांकि इसके बाद वर्ष 2000 और 2005 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

2019 में महज 1445 वोट से हार गये थे कालीचरण मुंडा

काली चरण मुंडा वर्ष 2014 व 2019 के आम चुनाव में खूंटी से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे, परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली. वर्ष 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के अर्जुन मुंडा से महज 1445 वोट से चुनाव हार गये थे. जबकि 2014 के लोस चुनाव में काली चरण मुंडा तीसरे स्थान पर थे, जबकि झापा के एनोस एक्का को दूसरा स्थान मिला था. उस चुनाव में भाजपा के कड़िया मुंडा ने जीत दर्ज की थी.

पांच भाईयों में सबसे बड़े हैं कालीचरण मुंडा

कालीचरण मुंडा चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं. उनके छोटे भाई नीलकंठ सिंह मुंडा वर्तमान में भाजपा से खूंटी विधायक हैं. कालीचरण मुंडा के खुद के परिवार में पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां हैं.

जीत के बाद बोले कालीचरण मुंडा- सभी लोगों को साथ लेकर चलेंगे

जीत के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कालीचरण मुंडा ने कहा कि यह जीत उनकी नहीं खूंटी संसदीय क्षेत्र के लोगों की जीत है. वे खूंटी संसदीय क्षेत्र की जनता को जीत के लिए बधाई देते हैं. यहां निवास करने वाले सभी जाति धर्म और संप्रदाय के लोगों को साथ लेकर चलेंगे. उनकी समस्याओं के समाधान के लिए काम करेंगे. प्राथमिकता के आधार पर जो भी समस्याएं होंगी उसके समाधान का प्रयास किया जाएगा. एक सवाल के जवाब में कालीचरण मुंडा ने कहा कि ओबीसी झारखंड के 7 जिलों में शून्य है. इस पर वे राज्य सरकार से बात करेंगे. जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए वे और काम करेंगे.

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