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Saraikela News : झारखंड की सांस्कृतिक विरासत से जुड़े हैं मांदर व नगाड़े

खरसावां. मागे व टुसू शुरू होते ही कोल्हान के गांव-कस्बों में गूंजने लगी वाद्ययंत्रों की गूंज

खरसावां.मागे व टुसू शुरू होते ही कोल्हान के गांव-कस्बों में गूंजने लगे वाद्ययंत्रों की गूंजखरसावां.मागे व टुसू पर्व शुरू होते ही झारखंडी लोककला व नृत्य की साज कहे जाने वाले वाद्ययंत्र मांदर व नगाड़े की गूंज कोल्हान के गांव व कस्बों में गूंजने लगी है. माघ माह आते ही गांव से लेकर शहर तक मांदर व नगाडे़ की मांग बढ़ गयी है. मकर संक्रांति से ही कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों में मागे पर्व का दौर शुरू हो जाता है. मागे पर हो समुदाय के लोग मांदर की थाप पर पारंपरिक नृत्य करते हैं. कोल्हान के गांवों में अगले दो माह तक मागे पर्व का आयोजन होगा. मांदर झारखंड का प्राचीन और अत्यंत लोकप्रिय वाद्ययंत्र है. हर पारंपरिक लोक नृत्य में मांदर का उपयोग होता है. मागे, करम, सरहुल समेत विभिन्न नृत्यों में मांदर का उपयोग होता है. यह वाद्य यंत्र झारखंड की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है.

7 दिनों में एक जोड़ा मांदर, नगाड़ा बनाने में लगते हैं दो सप्ताह

खरसावां के देहरीडीह गांव के चंद्रमोहन रविदास का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मांदर व नगाड़ा बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. वे बताते हैं कि एक जोड़ा मांदर बनाने में सात दिन लगते हैं. इसके लिए मिट्टी से बना ढोल पका कर लाया जाता है. इसके बाद दोनों साइड सूखा चमड़ा लगाकर मांदर की थाप तैयार किया जाता है. तत्पश्चात उरद, सुरखी से तैयार एक लेप को मांदर की दोनों ओर ताल निकालने के लिए चमड़े के साथ चिपकाया जाता है. चमड़े की रस्सी से तान दिया जाता है. बाजार में एक जोड़ी मांदर की कीमत 12 हजार रुपये है. वहीं, एक नगाड़ा और धमसा बनाने में करीब दो सप्ताह का समय लगता है. बाजार में नगाड़े की कीमत करीब छह हजार रुपये तथा धमसा 30 से 40 हजार रुपये में मिलते हैं.

40 साल से मांदर बना रहे देहरीडीह के चंद्रमोहन

खरसावां के देहरीडीह गांव के चंद्रमोहन रविदास बताते हैं कि वह पिछले 40 साल से मांदर व नगाड़े बनाने का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने यह कला अपने पिता व दादा से सीखा है. इस कार्य में उनके दो बेटे हाथ बंटाते हैं. चंद्रमोहन ने बताया कि माघ माह पहुंचते ही मांदर की मांग बढ़ जाती है. नगाड़े का भी उपयोग होता है. एक जोड़ा मांदर बना कर बेचने पर करीब चार हजार रुपये की बचत होती है, जबकि एक नगाड़े में दो हजार की बचत होती है.

चाईबासा के मंगला बाजार में लगता है बाजा का बाजार

मांदर की बिक्री का मुख्य बाजार चाईबासा का मंगलाहाट है. मंगलवार को कोल्हान की सबसे बड़ी साप्ताहिक हाट में बड़ी संख्या में लोग मांदर की खरीदारी व बिक्री के लिए पहुंचते हैं. यहीं पर अलग से बाजा का बाजार सजता है. खरसावां के देहुरीडीह, चक्रधरपुर के इटिहासा, राजनगर के बुरुडीह, सरायकेला के चमरुडीह, झींकपानी के हतनाबेड़ा से बाजा बनाने वाले कारीगर अलग-अलग तरह के वाद्य यंत्र लेकर मंगलाहाट पहुंचते हैं.

ओड़िशा व बंगाल से पहुंचते हैं खरीदार

खरसावां के देहरीडीह गांव के चंद्रमोहन रविदास बताते हैं कि मांदर, नगाड़ा व धमसा के लिए ओड़िशा व बंगाल से भी खरीदार पहुंचते हैं. माघ माह में अच्छा कारोबार होता है. चंद्रमोहन कहते हैं कि सरकार से आर्थिक सहायता मिले, तो इस कला को बढ़ाया जा सकता है.

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