Tusu Festival 2025: खरसावां (सरायकेला खरसावां) , शचिंद्र कुमार दाश/हिमांशु गोप-झारखंड में 14 जनवरी को मकर संक्रांति और टुसू पर्व को लेकर खासा उत्साह है. मकर संक्रांति पर सरायकेला-खरसावां के विभिन्न क्षेत्रों में टुसू का पर्व मनाया जाता है. करीब एक माह पहले पौष माह से ही टुसू मनी की मिट्टी की मूर्ति बना कर उसकी पूजा शुरू हो जाती है. इस दौरान टुसू और चौड़ल (एक पारंपरिक मंडप) सजाने का काम किया जाता है. गांवों में टुसूमनी की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है. इस दौरान अलग-अलग स्थानों पर टुसू मेला और प्रर्दशनी लगायी जाती है. टुसू मेला और प्रदर्शनी के दौरान टुसू की मूर्तियों के साथ-साथ लोग बड़े-बड़े चौड़ल लेकर प्रदर्शित करते हैं.
टुसू पर्व पर गाया जाता है बांग्ला भाषा का टुसू गीत
टुसू पर्व के लिए विशेष तौर पर टुसू गीत गाया जाता है. टुसू गीत मुख्य रूप से बांग्ला भाषा में होते हैं. मांदर की थाप पर महिलाएं थिरकती हैं. टुसू पर गाए जानेवाले गीतों में जीवन के हर सुख-दु:ख के साथ सभी पहलुओं का जिक्र होता है. ये गीत मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जानेवाली बांग्ला भाषा में होते हैं.
टुसू पर्व पर बनाए जाते हैं गुड़-पीठा समेत कई खास खास व्यंजन
टुसू पर्व के मौके पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने घरों में गुड़-पीठा, मांस-पीठा, मूढ़ी-लड्डू, चूड़ा-लड्डू और तिल-लड्डू जैसे व्यंजन बनाते हैं. इसमें गुड़-पीठा सबसे खास है. गुड़-पीठा के बगैर टुसू का त्योहार अधूरा माना जाता है.
बाजार में हो रही है टुसू प्रतिमाओं की बिक्री
मूर्तिकार टुसू प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं. बाजार में कई जगहों पर टुसू की छोटी-छोटी प्रतिमाओं की बिक्री भी हो रही है. बाजार में एक हजार से लेकर पांच हजार तक की टुसू की प्रतिमा की बिक्री हो रही है.
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