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सिमडेगा के केतुंगाधाम में नव वर्ष पर लगती है सैलानियों की भीड़, इस राजा के कार्यकाल में हुआ था निर्माण

शौचालय सहित गेट का निर्माण कराया गया है.केतुंगा धाम का इतिहास ऐतिहासिक और पौराणिक है. पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर को पंजीकृत किया गया है. मंदिर की स्थापना श्रीगंकेतु राजा के कार्यकाल में किया गया था.

धर्मवीर सिंह, बानो: पहाड़ों और जंगलों में बसा सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड को प्रकृति ने भरपूर रमणीय स्थल से आच्छादित किया है. इन्हीं रमणीय स्थलों में से एक है केतुंगा धाम. बानो प्रखंड से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मालगो व देव नदी संगम स्थल में अवस्थित केतुंगा धाम में बूढ़ा गोरक्षा शिव मंदिर आस्था और आध्यात्म का प्रतीक है. यहां सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा अर्चना के लिए लगी रहती है. खासकर नये साल में लोग पिकनिक मनाने के लिए पहुंचते हैं. पूजा अर्चना के साथ लोग पिकनिक का आनंद भी उठाते हैं. जिला प्रशासन के प्रयास से मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रयास किया गया है. इसके तहत मंदिर से नदी तट तक शेड का निर्माण किया गया है.

शौचालय सहित गेट का निर्माण कराया गया है.केतुंगा धाम का इतिहास ऐतिहासिक और पौराणिक है. पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर को पंजीकृत किया गया है. मंदिर की स्थापना श्रीगंकेतु राजा के कार्यकाल में किया गया था. इसलिए उक्त मंदिर का नाम केतुंगाधाम रखा गया. बाद में इसे स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा बनवाया गया. बरसलोया, केतुंगा,बानो, जलडेगा और लचरागढ़ के लोगों के प्रयास से भव्य बनाया गया. बताया जाता है कि राजा अशोक कलिंग युद्ध के दौरान लौटने के क्रम में यहां कुछ देर के लिए विश्राम किये थे. विश्राम के दौरान उन्होंने बौध्द मंदिर की स्थापना की थी. जिसके जीर्ण-शीर्ण मूर्तियां आज भी रानी टांड़ स्थित खेत में हैं.

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जहां लोग पूजा अर्चना करने के लिए जाते हैं. खुले में होने के कारण बहुत मूर्तियां दिनोंदिन उचित रखरखाव के अभाव में खराब होने लगी है. प्रशासन पहल करे, तो ऐतिहासिक धरोहर को संभाल कर रखा जा सकता है. कहा जाता है कि राजा राम, भाई लक्ष्मण व सीता वनवास के दौरान उक्त मार्ग से ही रामरेखा गये थे. देवनदी के चट्टानों में राम लक्ष्मण और सीता के पदचिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. जिसे दर्शन करने के लिए लोग दूर-दराज से भी आते हैं.

मंदिर तक कैसे जायें

केतुंगा धाम शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए कोलेबिरा प्रखंड के लचरागढ़ व बानो प्रखंड से सोय कोनसोदे होते हुए सड़क मार्ग है. मंदिर की दूरी लचरागढ़ से पांच किलोमीटर है. वहीं प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर है . लसिया मार्ग व बरसलोया मार्ग से भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं. मंदिर में दूर से आने वालों के लिए ठहरने का विशेष व्यवस्था है. यहां भक्तों के ठहरने के लिए भवन बनाया गया है. इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है.

क्या ना करें

मंदिर से सटा चेक डैम बनाया गया है. चेक डैम में पानी अधिक है. बच्चे और महिलाएं इनसे दूर रहें. सड़क जर्जर रहने की वजह से पांच बजे से पूर्व ही घर लौट आयें.

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