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Soil Degradation in Jharkhand|रांची, मनोज सिंह : इंडियन स्पेश रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने एक बार फिर देश के कई राज्यों की बंजर होती भूमि पर रिपोर्ट जारी किया है. इसमें पाया है कि झारखंड कुछ वैसे राज्यों में जहां, तेजी से भूमि बंजर हो रहा है. इसको मरुस्थलीकरण भी कहा जा रहा है. यह राज्य के लिए चेतावनी भरा संकेत है.
अगर मरुस्थलीकरण नहीं रोका गया तो राज्य की स्थिति भयावह हो जायेगी. आजीविका का सबसे बड़ा साधन खेती करना मुश्किल हो जायेगा. आज भी राज्य की 85 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष का अप्रत्यक्ष तौर पर खेती पर ही निर्भर है. खेतों में फसल तो लग जायेंगे, लेकिन उपज नहीं होगी. इसको रोकने के लिए अलग-अलग तरह के प्रयास करने होंगे. प्रभात खबर ने राज्य में बंजर होती जमीन पर एक रिपोर्ट तैयार की है.
68.77 फीसदी जमीन हो चुकी है बंजर
इसरो की यह रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में करीब 68.77 फीसदी भूमि की गुणवत्ता खराब हो गयी है. यह करीब 54.80 लाख हेक्टेर भूमि है. राज्य में कुल 79.71 लाख हेक्टेयर भूमि है. इसरो की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड की स्थिति सबसे खराब राज्यों में टॉप पर है. इसका अध्ययन इसरो और स्पेश एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने तैयार किया है.
झारखंड में 2011-13 की तुलना में कुछ सुधार हुआ है. लेकिन, काफी कम है. 2011-13 में 68.98 फीसदी भूमि को बंजर होने के कगार पर बताया गया था. 2003-05 में यह करीब 67.97 फीसदी था. पानी बहाव के कारण हो रहा है सबसे अधिक नुकसान झारखंड में पानी के बहाव के कारण राज्य की भूमि को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है. यहां की ऊपजाऊ मिट्टी बरसात के दिनों में नदी या नाले के सहारे दूसरे राज्यों में चला रहा है.
इससे झारखंड का टॉप स्वॉयल (ऊपरी मिट्टी) बह जा रहा है. किसी भी भूमि का ऊपरी मिट्टी की सबसे महत्वपूर्ण होता है. खेती-बारी के लिए यही मिट्टी उपयोग में आता है. सबसे अधिक मरुस्थलीकरण पानी के बहाव के कारण हो रही है. इससे करीब 40 लाख हेक्टेयर मरुस्थलीकरण की ओर जा रहा है. इसके बाद वेजीटेशन डिग्रेडेशन (वनों की गुणवत्ता खराब) से हो रहा है.
इससे राज्य में 14 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि खराब हो गया है. यह संख्या राज्य में लगातार बढ़ रही है. 2003-05 में यह 13 लाख हेक्टेयर के आसपास था. यह बढ़कर 14 लाख हेक्टेयर हो गया है. यह जमीन पर वनस्पति (पेड़-पौधों) की कमी के कारण हो रहा है. जो पेड़ मिट्टी का कटाव रोकते थे, वह कम हो गये हैं.
किस जिले में कितनी फीसदी जमीन मरुस्थलीकरण की ओर
जिला | प्रतिशत |
देवघर | 99.8 प्रतिशत |
दुमका | 93.7 प्रतिशत |
गिरिडीह | 92.7 प्रतिशत |
रांची | 90.0 प्रतिशत |
धनबाद | 87.4 प्रतिशत |
गिरिडीह | 85.5 प्रतिशत |
बोकारो | 85.5 प्रतिशत |
पश्चिमी सिंहभूम | 78.7 प्रतिशत |
लोहरदगा | 71.1 प्रतिशत |
कोडरमा | 68.2 प्रतिशत |
हजारीबाग | 62.1 प्रतिशत |
गोड्डा | 59.9 प्रतिशत |
पूर्वी सिंहभूम | 57.7 प्रतिशत |
चतरा | 47.0 प्रतिशत |
साहिबगंज | 32.8 प्रतिशत |
पलामू | 26.9 प्रतिशत |
पाकुड़ | 22.8 प्रतिशत |
इसके अतिरिक्त कई ऐसे कारण हैं, जो मानव निर्मित हैं. इसमें खदान सबसे बड़ा कारण है. आम जनजीवन को सुलभ बनाने के लिए कई ऐसे काम किये जा रहे हैं, जिससे भूमि की गुणवत्ता खराब हो रही है. जंगल में आग लगने से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो जा रही है. 2003-04 की सर्वे की तुलना में 2018-19 में मानव निर्मित कारण बहुत अधिक बढ़ा है. यह करीब दो गुणा हो गया है.
एक हेक्टेयर में बचा सकते हैं एक करोड़ लीटर पानी
मनरेगा के तहत पूर्व में ट्रेंच कम बंडिंग तकनीकी का इस्तेमाल किया गया था. इसके लिए दो गुणा दो फीट तथा तीन गुणा तीन फीट का मॉडल है. 2016 में इसको कई जिलों में शुरू किया गया था. अगर दो इंच प्रति घंटे की दर से भी बारिश होगी, तो एक करोड़ लीटर पानी एक हेक्टेयर में बचाया जा सकता है.
झारखंड की स्थिति बहुत ही भयावह है. चिंताजनक है. इसको लोगों को समझने की जरूरत है. अगर हम अभी नहीं सुधरे, तो हमको अपनी जमीन से साग-सब्जी भी नहीं मिल पायेगी. भूमि खराब हो रही है. हम पानी रोकने का प्रयास नहीं कर रहे हैं. जो प्रयास हो रहे हैं, वह नाकाफी है. इसको मिशन मोड में लेकर चलने की जरूरत है. राज्य में 1200 से 1400 मिमी बारिश हो रही है. यह हमारी पूंजी होनी चाहिए. इसको हम बहा दे रहे हैं. इसको रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. इसके लिए सरकारी के साथ-साथ गैर सरकारी स्तर पर भी प्रयास जरूरी हैं. राज्य में पानी रोकने के कई सफल उदाहरण या मॉडल भी हैं. झारखंड के कई गांव में ही ट्रेंच एंड बंडिंग (टीएंडबी) से जल स्तर ऊंचा उठा है. जमीन की ऊर्वरता भी बढ़ी है. जिनको अपनाया जा सकता है. पूर्व में किये गये प्रयासों की भी समीक्षा होनी चाहिए. इसे हल्के में लेने से हमारे आने वाले भविष्य को नुकसान होगा.
सिद्धार्थ त्रिपाठी, मुख्य वन संरक्षक, झारखंड सरकार
जल और मृदा संरक्षण पर 500 करोड़ खर्च करता है कृषि विभाग
कृषि विभाग झारखंड में जल और मृदा संरक्षण पर 500 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च करता है. विभाग के भूमि संरक्षण निदेशालय में हर साल जल निधि योजना चलायी जाती है. इसमें बंजर भूमि, राइस फेलो विकास यजोना के तहत पांच एकड़ से कम जल क्षेत्र वाले सरकारी और निजी तालाबों का जीर्णोद्धार और गहरीकरण किया जाता है. परकोलेशन टैंक का निर्माण किया जाता है. डीप बोरिंग करायी जाती है. सरकारी तालाबों के जीर्णोद्धार का काम हर साल कराया जाता है.
- क्या है मापदंड : योजना का चयन ग्राम सभा के माध्यम से किया जाता है. जिलों के लिए निर्धारित लक्ष्य में 75 फीसदी तालाबों का जीर्णोद्धार व गहरीकरण संबंधित क्षेत्र के स्थानीय विधायक के द्वारा ग्रामसभा से किया जाता है. इन स्कीमों का अनुमोदन जिलों के उपायुक्त से कराया जाता है. इसमें जिला मत्स्य पदाधिकारी के अधीन सरकारी तालाबों के जीर्णोद्धार को प्राथमिकता दी जायेगी. इसका अनुमोदन 15 दिनों के अंदर उपायुक्त को करना है. इसके लिए आठ से 10 हेक्टेयर भूमि में पटवन की सुविधा होनी चाहिए. तालाब में पिछले पांच वर्षों में इस योजना से काम नहीं होना चाहिए. तालाब का न्यूनतम क्षेत्रफल एक एकड़ या अधिकतम पांच पांच एकड़ होना चाहिए. इसमें 90 फीसदी राशि सरकार खर्च करती है. 10 फीसदी राशि गठित पानी पंचायत के कृषक सदस्यों को देना पड़ता है.
- कैसे मिलता है लाभ : तालाब के स्वामित्व का प्रमाणीकरण अंचलाधिकारी से कराना पड़ता है. लाभुक को शपथ पत्र देना होगा कि इसका उपयोग सार्वजनिक रूप से होता है. निजी तालाब के जीर्णोद्धार के लिए तालाब मालिक की सहमति जरूरी होती है. पूरी स्कीम निदेशक भूमि संरक्षण की देखरेख में चलता है.
- कृषक का चयन : चयन में एससी, एसटी, सीमांत कृषक, महिला कृषक व इच्छुक कृषक समूहों को प्राथमिकता दी जायेगी. जिनको पहले स्कीम का लाभ मिल चुका है. उनको इसका लाभ नहीं मिलेगा. ग्राम सभा तथा स्थानीय विधायक द्वारा चयनित स्कीम को प्राथमिकता दी जायेगी.
- कैसे कर सकते हैं आवेदन : इस स्कीम का लाभ प्राप्त करने के लिए जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी या भूमि संरक्षण पदाधिकारी के कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं. आहर्ता रखने वाले कृषक समूहों का गठन जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी करेंगे.
क्या है भूक्षरण की स्थिति (हेक्टेयर में)
कारण | 2003-05 | 2011-13 | 2018-19 |
वेजीटेशन डीग्रेडेशन | 1307162 | 1379038 | 1419362 |
जल के कारण भू क्षरण | 4037261 | 4036285 | 3915868 |
मैन मेड | 49730 | 52734 | 95301 |
सेटलमेंट | 24503 | 30169 | 51730 |
हार्प प्लांडू के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिवेंद्र कुमार से खास बातचीत
झारखंड में मिट्टी की गुणवत्ता लगातार घट रही है. इसको आप कैसे देखते हैं?
यह काफी गंभीर मुद्दा है. यह करीब-करीब सभी प्लाडू रिजन की समस्या है. लेकिन, झारखंड की मिट्टी तेजी से बीमार हो रही है. करीब 70 फीसदी भूमि के मरुस्थलीकरण होने की बात है. हम हर साल मिट्टी की जुताई करते हैं. इससे ऊपर वाली जमीन पानी में बह जा रही है. इसको रोकना जरूरी है.
इससे क्या नुकसान हो सकता है?
इसका नुकसान दिखने लगा है. यहां खेती की लागत बढ़ गयी है. उत्पादन और उत्पादकता कम होती जा रही है. पहले हम हल से भी जुताई कर लेते थे. अब मशीन का उपयोग करना पड़ रहा है. हम खेतों में ज्यादा से ज्यादा खाद डाल रहे हैं. यह केवल मिट्टी ही नहीं खराब कर रहा है. बल्कि कई प्रकार के आर्गेनिक तत्व मिट्टी में होते हैं, उसको भी बहा दे रहा है.
इससे मानव जीवन पर क्या असर पड़ेगा?
इसका असर दिख रहा है. हम खेतों में ज्यादा खाद और कीटनाशक का उपयोग करने लगे हैं. इससे हमारे स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ रहा है. पूरा सिस्टम आपस में जुड़ा है. मिट्टी खराब होगी, तो मानव जीवन खराब होगा. समाज में बीमारी बढ़ेगी. मौत का कारण बढ़ेगा. इसको लेकर गंभीर निर्णय की जरूरत है. जल छाजन के कार्यक्रम को गंभीरता से चलाने की जरूरत है.
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