World Tribal Day: आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस मौके पर दिशोम गुरु शिबू सोरेन की संघर्षगाथा जानते हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन के करीब पांच दशक का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा. बचपन में ही एक चिड़िया की मौत से उन्हें इतना दुःख हुआ कि मांस-मछली खाना छोड़ दिया और जीव हत्या को पाप मान कर पूरी तरह से अहिंसक बन गए. शिबू सोरेन कुछ बड़े हुए तो गांव से दूर शहर में एक हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने लगे, लेकिन इसी दौरान उनके पिता की हत्या कर दी गई, लेकिन इसके बाद से ही उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन की शुरुआत हुई. शिबू सोरेन ‘दिशोम गुरु’ बन गए. आठ बार लोकसभा सांसद, तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए.
कड़े संघर्ष की जिद ने बनाया नेता
पिता सोबरन सोरेन की हत्या शिबू सोरेन के जीवन के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुई. इससे उनका पढ़ाई से मन टूट गया. घर से भाग कर शिबू सोरेन हजारीबाग में रहने वाले फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता लाल केदार नाथ सिन्हा के घर पहुंचे. अब शिबू सोरेन के लिए संघर्ष का दौर भी शुरू हो चुका था. कुछ दिनों तक उन्होंने ठेकेदारी का काम भी किया. उसके कुछ समय बाद उन्हें पतरातू-बड़काकाना रेल लाइन निर्माण के दौरान कुली का काम भी मिला, लेकिन मजदूरों के लिए विशेष तौर पर बने बड़े-बड़े जूते उन्हें पसंद नहीं आए, जिसके बाद उन्होंने काम छोड़ दिया. मगर इससे उनकी परेशानी और बढ़ गई. इसी दौरान उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन की भी शुरुआत हुई.
चावल के 5 रुपए ने बनाया दिशोम गुरु
पिता की हत्या के बाद शिबू ने अपने बड़े भाई राजाराम से घर से बाहर जाकर कुछ करने की इच्छा जताई, जिसके लिए उन्होंने बड़े भाई से पांच रुपए मांगा. घर में उस वक्त पैसे नहीं थे, लेकिन तभी उनकी नजर घर में रखे हांडा पर पड़ी. अब उनको अपनी मां सोना सोरेन के वहां से हटने का इंतजार था. जैसे ही उनकी मां वहां से हटीं, उन्होंने हांडा में रखा दस पैला चावल निकाल लिया और उसे बाजार में बेचकर पांच रुपए हासिल किया. संभवतः उनकी मां यदि उस वक्त वहां मौजूद रहतीं, तो उस चावल को बेचने नहीं देतीं. इसी पांच रुपए को लेकर शिबू सोरेन घर बाहर निकले और इतिहास रच दिया. उस पवित्र चावल ने शिबू सोरेन को संताल समाज का ‘दिशोम गुरु’ बना दिया.
दुमका सीट से 8 बार बने सांसद
सबसे पहले शिबू सोरेन ने बड़दंगा पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली. बाद में जरीडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़े. इस चुनाव में भी वे हार गए. इसके बावजूद 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में दुमका लोकसभा सीट के लिए चुने गए, जबकि तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए. केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. शिबू सोरेन पहली बार 2 मार्च 2005 को झारखंड के सीएम बने, लेकिन 11 मार्च 2005 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. दूसरी बार 27 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री बने और तीसरी और आखिरी बार साल के अंत में फिर मुख्यमंत्री बने लेकिन कुछ ही दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा.
चावल और 3 रुपए चंदा
शिबू सोरेन पहली बार 1980 में दुमका लोकसभा चुनाव में तीर-धनुष चुनाव चिह्न लेकर मैदान में उतरे थे. इस चुनाव में झारखंड अलग राज्य निर्माण आंदोलन के अग्रदूत बन कर उभरे. शिबू सोरेन को जीताने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने दिशोम दाड़ी चंदा उठाने का अभियान शुरू किया. इसके तहत प्रत्येक गांव के प्रति परिवार, प्रति चूल्हा एक पाव (250ग्राम) चावल और तीन रुपए नगद लिया जाने लगा, ताकि शिबू सोरेन अपना पर्चा दाखिल कर सकें. इस अभियान के दौरान संग्रह राशि से गुरुजी ने अपना पहला चुनाव लड़ा था.
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