Loksabha Election: जीप और एम्बेसडर कार गुजरे जमाने की बात हो गयी है. अब तो बोलेरो भी आउटडेटेड हो चली है. गर्मी में नन एसी की बात ही छोड़िए. कम से कम स्काॅर्पियो वह भी एसी हो. बात यहां गाड़ियों के मॉडल को लेकर नहीं हो रही है. बात दलों के उन कार्यकर्ताओं की हो रही है, जिन्हें चुनाव प्रचार में निकलना है. एक वो जमाना था, जब जीप और एम्बेसडर कार शान की सवारी मानी जाती थी. चुनाव में आम प्रत्याशियों को यह शाही सवारी नसीब नहीं होती थी. इक्के-दुक्के जगहों पर अमीर प्रत्याशी इन गाड़ियों से चुनाव प्रचार में निकलते थे. गांव में प्रत्याशियों की बात सुनने कम गाड़ियों को देखने वालों की भीड़ अधिक जुट जाती थी. पर, जैसे-जैसे वक्त बदलता गया, वैसे-वैसे नेताओं और कार्यकर्ताओं के पसंद भी बदलती चली गयी. नेता तो नेता अब नेता के चेले-चपाटे भी आउटडेटेड गाड़ियों पर चढ़ना नहीं चाहते. यही वजह है कि इस चुनाव में यहां नये मॉडल की लग्जरी गाड़ियों की मांग काफी बढ़ गयी है.
दल अलग-अलग, पर पसंद एक जैसी
दल भले ही अलग-अलग हों, पर कार्यकर्ताओं की पसंद कमोवेश एक जैसी ही है. वैसे भी पूर्णिया का मिजाज अन्य जिलों से थोड़ा अलग है. कुछ हो न हो, पर चढ़ने के लिए लग्जरी गाड़ी जरूर चाहिए. यही वजह है कि यहां एक-दो सेगमेंट को छोड़ दीजिए, तो बाकी सभी महंगी गाड़ियां सड़कों पर दिख जाएंगी.
गाड़ी मालिक अशोक कुमार बताते हैं कि उनके पास भाड़े की तीन गाड़ियांहैं. इनमें एक बोलेरो और दो सूमो है. पर, चुनाव प्रचार में केवल इसलिए उनकी गाड़ी नहीं ली गयी कि सभी गाड़ियां पांच साल पुरानी हैं. वह बताते हैं कि अमूमन तमाम सियासी पार्टियां बोलेरो को आउटडेटेड मान रही हैं.
कार्यकर्ताओं के पसंद की भी कई कैटेगरी है. जिनके पास अपनी गाड़ी है, वे स्काॅर्पियो या उसके समानांतर लग्जरी गाड़ी की चाहत रखते हैं. इसी तरह सब दिन बाइक की सवारी करने वाले कार्यकर्ताओं को सूमो और स्काॅर्पियो चाहिए और जिनके पास कोई गाड़ी नहीं है, उनके लिए कोई भी चलेगी. इधर, नेताओं की बात ही निराली है. वे पहले से महंगी गाड़ी इस्तेमाल करते आ रहे हैं.
गाड़ियों से प्रचार का अभियान
गाड़ियों से प्रचार की हर दल की अपनी-अपनी तैयारी है. राजग और महागठबंधन के वीआइपी नेताओं के लिए महंगी और चमचमाती गाड़ियां उपलब्ध हैं. इनमें नयी स्काॅर्पियों से लेकर सफारी, इनोवा और अन्य गाड़ियां शामिल हैं. मंत्री से संतरी तक के लिए नयी गाड़ियां मंगायी गयी हैं. इन दलों के नेता कहते हैं कि गाड़ी चाहे जो भी हो, पर लग्जरी ही चाहिए. बाहर से आने वाले नेता भी पहले गाड़ियों के बारे में ही पूछते हैं. कौन सी गाड़ीहै. एसी है की नहीं. ड्राइवर नशा तो नहीं करता, वगैरह-वगैरह…
जारी है बुकिंग का अभियान
ज्यों-ज्यों चुनाव करीब आ रहा है, वैसे-वैसे गाड़ियों की बुकिंग का सिलसिला तेज हो रहा है. विभिन्न दलों के नेताओं ने इसके लिए कई वाहन मालिकों को एडवांस राशि भी जमा कर दी है. एक वाहन मालिक ने बताया कि गाड़ी बुकिंग के मामले में कांग्रेस और जदयू दोनों आगे हैं. एक माह पहले ही अधिकांश गाड़ियां बुक हो चुकी हैं. वाहन मालिक राजनीतिक दलों को गाड़ी देने में थोड़ा हिचकिचाते हैं.
गाड़ी लेनेवाले प्रत्याशी चुनाव जीत गये तो कोई बात नहीं और अगर हार गये तो किराया वसूलने में पसीने छूट जाते हैं. एक अनुमान के अनुसार, प्रमुख दलों के प्रत्याशी की प्रत्येक विधानसभा में औसतन 5 से 6 गाड़ियांदौड़तीहैं. पूर्णिया में छह विधानसभा क्षेत्र हैं. इस हिसाब से एक प्रत्याशी को कम-से-कम 30 से अधिक गाड़ियों की जरूरत है.
चालकों का टोटा
सबसे बड़ी परेशानी है चालक की. पूर्णिया में चालक का अचानक अकाल पड़ गया है. गाड़ी तो मिल जा रही है, पर चालक नहीं मिल रहे हैं. अगर कोई चालक मिल भी गया, तो पता चला कि उसे कई जगहों से एक साथ ऑफर मिल रहे हैं. एक चालक ने बताया कि प्रचार गाड़ी चलाने में काफी परेशानी होती है. एक तो पल भर के लिए छुट्टी नहीं मिलती है. दस दिन तो खाना-सोना सभी दुश्वार हो जाता है. यह काम सब के वश का नहीं है.
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