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MP Election: 47 आदिवासी सीटों पर सियासी दलों की नजर, BJP-कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में जयस

MP Election 2023 में 47 आदिवासी सीटों पर जीत के लिए सियासी दल जमकर जोर आजमा रही हैं. बीजेपी कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा आदिवासियों को अपने पक्ष में रिझाने में लगी है. इसकी कड़ी में जनजातीय संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति दोनों के वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में जुटा है.

MP Election 2023: मध्यप्रदेश में अगले महीने होने जा रहे विधानसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों पर कब्जे की सियासी जंग तेज हो गई है. जनजातीय संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के एक धड़े ने चुनावी राजनीति में कदम रखते हुए इन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार उतारने का सिलसिला शुरू कर दिया है जिससे भाजपा और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लग सकती है.उच्च शिक्षित आदिवासी युवाओं के खड़े किए गए इस संगठन ने अपनी पहली सूची में अलीराजपुर, थांदला, पेटलावद और सरदारपुर में निर्दलीय उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. ये चारों सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं.

आदिवासी मुख्यमंत्री देने का लक्ष्य- जयस

जयस के राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकेश मुजाल्दा ने कहा है कि हम भले ही एक राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग में फिलहाल पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन पिछले 10 सालों के जमीनी संघर्ष के बाद हमने अपने नेताओं को चुनावी राजनीति में भेजने का फैसला किया है ताकि हम राज्य को अगला आदिवासी मुख्यमंत्री देने का अपना लक्ष्य हासिल कर सकें. उन्होंने कहा कि जयस राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों के साथ ही कुछ ऐसी अनारक्षित सीटों पर भी अपने निर्दलीय उम्मीदवार उतारेगा जहां चुनाव परिणाम तय करने में जनजातीय समुदाय की बड़ी भूमिका रहती है.

जयस का बीजेपी और कांग्रेस पर हमला

मुजाल्दा ने भाजपा और कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा देश की आजादी के बाद से लेकर अब तक सूबे में इन दोनों दलों की सरकारें रही हैं, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों में बेरोजगारी के कारण लोगों का दूसरे प्रदेशों में पलायन साल-दर-साल बढ़ता गया है. इन इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सिंचाई की बुनियादी सुविधाओं की भी भारी कमी है. वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को सूबे के आदिवासी अंचलों में कांग्रेस के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था. गुजरे पांच सालों के दौरान भाजपा ने आदिवासियों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए हैं जिनमें हिंदुत्व की विचारधारा से जुड़े अलग-अलग संगठनों की भी मदद ली गई है.

आदिवासी सीटों पर बीजेपी ने किया जीत का दावा

मौजूदा विधानसभा चुनावों में जयस की चुनौती के बारे में पूछे जाने पर भाजपा के राज्यसभा सांसद और पार्टी की प्रदेश इकाई के प्रवक्ता सुमेर सिंह सोलंकी ने कहा, अव्वल तो जयस कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है. इसलिए चुनावों में इस संगठन के निर्दलीय उम्मीदवार उतारे जाने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हम सभी 47 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल करेंगे क्योंकि केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकारों ने इस समुदाय के भले के लिए कई कदम उठाए हैं. सोलंकी खुद आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि जयस के नेता उनके निजी स्वार्थ पूरे करने के वास्ते कांग्रेस के लिए ‘‘दलाली’’ करते हैं और जनजातीय युवाओं को गुमराह करते हैं.

कांग्रेस भी कर रही है आदिवासियों को रिझाने की कोशिश

सूबे के जनजातीय बहुल इलाकों में चुनावी जीत कांग्रेस के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रियंका गांधी वाद्रा और राहुल गांधी और जैसे शीर्ष नेताओं ने चुनाव प्रचार के लिए जन सभाएं करने के मामले में क्रमश: धार और शहडोल जैसे जनजातीय बहुल जिलों को प्राथमिकता दी है. प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नीलाभ शुक्ला ने कहा, ‘‘आदिवासी समुदाय देश की आजादी के समय से ही कांग्रेस से जुड़ा है. भाजपा ने आदिवासियों को बरगलाने के लिए भव्य आयोजनों की नौटंकी जरूर की है, लेकिन सचाई यही है कि भाजपा के राज में आदिवासियों पर अत्याचार बढ़े हैं.

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उन्होंने कांग्रेस और जयस की तुलना को बेमानी करार देते हुए कहा कि जयस एक सामाजिक संगठन है और आदिवासी बखूबी समझते हैं कि यह संगठन अपने दम पर सूबे में सरकार नहीं बना सकता. वर्ष 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा आदिवासी बहुल धार जिले के मनावर क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे.

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