महाराष्ट्र के पुणे के बिबवेवाड़ी इलाके से एक चौकाने वाली घटना सामने आ रही है, जिसमें मां द्वारा टीवी पर कार्टून देखने से मना करने पर एक 14 वर्षीय लड़के में आत्महत्या कर ली. यह घटना मंगलवार की है.
पुलिस ने बताया कि लड़का सुबह से टीवी देख रहा था, इसलिए उसकी मां ने उसे डांटा और टीवी बंद कर दिया. लड़का फिर उठ गया और घर में ऊपर चला गया वहां से उस बच्चे ने आहत्महत्या जैसा कदम उठाया.जब लड़के की बहन ऊपर चली गई, तो उसने उसे दुपट्टे के साथ छत से लटका देखा.
एसीपी ने कहा, “वह कार्टून देखना चाहता था, उसकी दादी समाचार देखना चाहती थी। वह परेशान हो गई, इसलिए उसकी मां ने टीवी बंद कर दिया। उसने फिर आत्महत्या कर ली.” अधिकारी ने कहा, “लड़के को नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.” दुर्घटनावश मौत का मामला दर्ज किया गया है.
Maharashtra: A 14-yr-old boy committed suicide in Pune after his mother allegedly didn't allow him to watch cartoon show. ACP says, "He wanted to watch cartoon, his grandmother wanted to watch news. He grew upset,so his mother switched off TV. He then committed suicide. Probe on" pic.twitter.com/yG1M22sB54
— ANI (@ANI) June 10, 2020
बच्चों में बढ़ रही है आत्महत्या की प्रवृति
बच्चे में आत्महत्या की प्रवृत्ति में इन दिनों बढ़ती चली जा रही है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि टूटते संयुक्त परिवार, माता-पिता का कामकाजी होना, बच्चों की छोटी-मोटी समस्याओं पर ध्यान नहीं देना और टीवी व इंटरनेट तक आसान पहुंच ने कम उम्र के बच्चों को भी स्वाभाव से जिद्दी और उग्र बना दिया है. इसकी वजह से उनमें मानसिक अवसाद बढ़ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में किशोरों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने के बावजूद 10-12 साल के बच्चों की आमहत्या की घटनाएं अब भी बिरल हैं. उनका कहना है कि कई बार बच्चे अपना अपमान या अपनी मांग ठुकराए जाने जैसी चीजों को स्वीकार नहीं कर पाते.
कैसे रोकें बच्चों में आत्म हत्या की प्रवृत्ति
किशोरों में बढ़ती आत्महत्या की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए विशेषज्ञ जीवनशैली में बदलाव के अलावा कई अन्य कदम उठाना जरूरी मानते है. इसमें सबसे प्रमुख है कि माता-पिता बच्चों की गतिविधियों पर निगाह रखें और उनकी समस्याएं सुनें और उन्हें सुलझाने की कोशिश करें.
देश के तमाम स्कूलों में अभिभावकों के साथ तालमेल रख कर नियमित रूप से ऐसे काउंसलिंग सत्र का आयोजन किया जाना चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों में काउंसलिंग अनिवार्य कर देनी चाहिए.