Bhubaneswar News: ओडिशा सरकार ने वार्षिक ‘ओलिव रिडले कछुआ संरक्षण कार्यक्रम’ के तहत शुक्रवार को धामरा, देवी और ऋशिकुल्या नदियों के मुहाने पर तट से 20 किलोमीटर के दायरे में मछली पकड़ने पर सात महीने के लिए प्रतिबंध लागू कर दिया है. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. अधिकारियों ने बताया कि समुद्री जीवों के प्रजनन काल के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से एक नवंबर से 31 मई तक मछली पकड़ने पर प्रतिबंध प्रभावी रहेगा. उन्होंने बताया कि यह प्रतिबंध उड़ीसा समुद्री मत्स्य विनियमन अधिनियम (ओएमएफआरए), 1982 की धारा 2, 7 और 4 तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार लगाया गया है. मछली पकड़ने पर यह प्रतिबंध समुद्र के एक निर्दिष्ट तट पर समुद्री कछुओं के जमावड़े वाले स्थान और धामरा, देवी तथा ऋशिकुल्या नदियों के मुहाने पर और उनके ‘बफर जोन’ में लगाया गया है. हालांकि, गहिरमाथा तट पर मछली पकड़ने पर प्रतिबंध पूरे वर्ष लागू रहता है, क्योंकि यह तट इन अत्यधिक संकटग्रस्त समुद्री प्रजातियों का सबसे बड़ा रिहायशी गलियारा माना जाता है. वन अधिकारियों ने बताया कि कछुओं की उपस्थिति को देखते हुए गहिरमाथा को ‘समुद्री अभयारण्य’ का दर्जा दिया गया है.
जाल में फंसकर या नौकाओं से टकराने से होती है कछुए की मौत
अधिकारी ने बताया कि यहां मछली पकड़ने के दौरान जाल में फंसकर या फिर मछुआरों की नौकाओं से कटकर बड़ी संख्या में कछुए मारे जाते हैं, जिसकी वजह से इस प्रतिबंध को हर साल की तरह इस बार भी सख्ती से लागू किया जायेगा. एक अधिकारी ने प्रतिबंध के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि यह कार्यक्रम एक बहुस्तरीय गश्त अभ्यास होगा, जिसमें तट रक्षक कर्मियों के अलावा वन, मत्स्य पालन विभाग के कर्मी और समुद्री पुलिस भी शामिल होंगी. प्रभावी गश्त सुनिश्चित करने के लिए राज्य के चार वन्यजीव प्रभागों भद्रक, राजनगर, पुरी और ब्रह्मपुर में 61 तटीय शिविर तथा तट से दूर पांच शिविर स्थापित किये गये हैं.
——————————10,666 मछुआरा परिवार होंगे प्रभावित
राजनगर मैंग्रोव (वन्यजीव) वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी सुदर्शन गोपीनाथ यादव ने बताया कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में अवैध तरीके से मछली पकड़ने पर रोक के लिए पांच ‘हाई-स्पीड’ नौका, 13 ट्रॉलर और सहायक नौकाओं को सेवा में लगाया गया है. इस प्रतिबंध से लगभग 10,666 मछुआरा परिवार प्रभावित होंगे, इसलिए आय के नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार ने प्रभावित मछुआरा परिवारों को 7,500 रुपये की एकमुश्त आजीविका सहायता देने का फैसला किया है. वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि मादा कछुए आमतौर पर अंडे देने के लिए रात के अंधेरे में घोंसले वाले तटों पर पहुंचती हैं. इस घटनाक्रम को ‘अर्रीबाडा’ कहते हैं. अंडे देने के बाद कछुए घोंसले छोड़ कर गहरे पानी में चले जाते हैं. करीब 45 से 60 दिन में अंडों से नन्हें कछुए बाहर आते हैं. अधिकारी के अनुसार, यह एक दुर्लभ प्रक्रिया है जिसमें नन्हें कछुए अपनी मां के बिना बड़े होते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है