Bhubaneswar News: मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने लोकसेवा भवन के कन्वेंशन सेंटर में आयोजित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय न्याय संहिता जागरूकता (सेंसिटाइजेशन) कार्यक्रम में भाग लेकर गुरुवार को कहा कि ओडिशा में कई पुराने, निष्क्रिय और अप्रासंगिक कानूनों को चिह्नित कर निरस्त किया जायेगा. उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय न्याय संहिता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) के प्रतिनिधि, महिला और बाल विकास कार्यकर्ता, सूचना अधिकार कार्यकर्ता, पैरा-लीगल एक्टिविस्ट, यौन शोषण सुरक्षा कार्यकर्ता, कानून विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं और विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर इन दो क्रांतिकारी कानूनों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था. मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत को लेकर यह धारणा है कि इंडिया इज एन ओवर-लेजिसलेटेड बट अंडर इंप्लीमेंटेड कंट्री (भारत में कानून बहुत ज्यादा हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन कम है). हमारे देश में कानून बहुत ज्यादा हैं और इनमें से कई अब प्रासंगिक नहीं हैं. पिछले दस वर्षों में प्रधानमंत्री ने 1,550 से अधिक अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त कर दिया है.
पुराने कानून के जरिए उचित न्याय प्रदान करना था मुश्किल
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी न्याय प्रणाली या न्याय व्यवस्था की रीढ़ भारतीय संविधान और न्याय संहिता हैं. इन्हीं संहिताओं के आधार पर हमारी न्याय व्यवस्था संचालित होती है. लेकिन 1860 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जो संहिता बनायी गयी थी, उसका हम आज तक पालन कर रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत जैसे विविधता से परिपूर्ण समाज में 164 वर्ष पुराने कानून की प्रासंगिकता क्या है, इसे सभी जानते हैं. इसके अलावा, आज के तेजी से बदलते समाज में इतने पुराने कानून के जरिए उचित न्याय प्रदान करना मुश्किल था. इसलिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित सरकार ने इन दो नये कानूनों को लाने की आवश्यकता महसूस की. इस वर्ष एक जुलाई से ये तीनों कानून लागू हो गये हैं. नये कानून को पीड़ित केंद्रित (विक्टिम-सेंट्रिक) बनाया गया है, जबकि पहले यह अपराधी केंद्रित (क्रिमिनल-सेंट्रिक) था. इस मौलिक बदलाव का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत शीघ्र न्याय प्रदान करना है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का मुख्य उद्देश्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है. पुलिस के कार्य को न्याय-संगत और विधि-संगत बनाने के लिए मूल कानून कई बदलाव किये गये हैं.
नागरिकों के हितों की रक्षा, अपराध पर नियंत्रण है नये कानूनों का उद्देश्य
मुख्यमंत्री ने कहा कि नये कानून में पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने के लिए उचित व्यवस्था की गयी है. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जीरो एफआइआर की व्यवस्था भी की गयी है. इसी तरह, 15 वर्ष से कम और 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति, शारीरिक व मानसिक रूप से विशेष व्यक्ति तथा महिलाएं थाना गये बिना भी बयान दर्ज करा सकेंगी. पॉक्सो कानून में 60 दिनों के भीतर फैसले का प्रावधान, साइबर अपराध और संगठित अपराध जैसे मामलों के लिए भी नये संहिता में प्रावधान रखे गये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल या जुर्माने के बजाय उन्हें सामुदायिक सेवा (कम्युनिटी सर्विस) करने की व्यवस्था रखी गयी है. इससे जेलों की भीड़ कम होने के साथ ही छोटे-मोटे अपराधों के लिए किसी व्यक्ति को बड़ा अपराधी मानकर नहीं, बल्कि सुधार का अवसर मिल सकेगा. यह निश्चित रूप से कई युवाओं को, विशेष रूप से वे जो पेशेवर अपराधी नहीं हैं, मुख्यधारा में लौटने का अवसर प्रदान करेगा. मुख्यमंत्री ने मॉब लिंचिंग, संगठित अपराध, डकैती, राजद्रोह आदि मामलों में नये कानून में प्रावधानों की जानकारी भी दी.महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लेकर पूर्व सरकार पर साधा निशाना
मुख्यमंत्री ने कहा ओडिशा में पूर्व की सरकार में कानून के शासन को क्रियान्वित करने की इच्छाशक्ति का अभाव था. उन्होंने कहा कि हमारे देश में विभिन्न अपराधों से निबटने के लिए कानून की कमी नहीं है, लेकिन कमी है क्रियान्वयन में ढिलाई की. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं पर हिंसा से संबंधित मामलों में सजा का प्रतिशत केवल सिंगल डिजिट में है. 2022 तक एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, यह दर मात्र 9.3% है, जो शर्मनाक है. पूर्व की सरकार हर दिन महिला सशक्तीकरण की बात करती थी. यह किस प्रकार का महिला सशक्तीकरण है, यह समझ से बाहर है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है