Purnia news : पारंपरिक खेती से इतर कुछ नया करने की चाहत में ड्रैगन फ्रूट की खेती अब किसानों की दशा बदल रही है. एक दो किसानों से शुरू हुई इसकी खेती जिले में अब रफ्तार पकड़ने लगी है. पूर्णिया के कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने ड्रैगनफ्रूट की खेती शुरू कर अपना भविष्य सुदृढ़ किया है. उनकी ड्रैगन फ्रूट की पैदावार स्थानीय बाजार से लेकर दूर-दूर तक जा रही है. इस फल का सेवन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहद फायदेमंद भी है. इस वजह से इसका बाजार व्यापक है.धमदाहा के किसान अंजनी चौधरी, भवानीपुर के खुर्शीद आलम तथा जलालगढ़ के राजीव सिंह कई एकड़ जमीन पर ड्रैगनफ्रूट की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
मई से नवंबर तक होता है फलन
किसान अंजनी चौधरी ने बताया कि उन्होंने चार वर्ष पूर्व सात सौ ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए थे, जिनमें अगले ही वर्ष से फूल व फल आने शुरू हो गये. मई से नवंबर माह तक इसमें फलन होता है. पहले दो साल फलन कम होता है, तीसरे साल से ज्यादा फलने लगता है. पांच वर्षों के बाद प्रति पौधे से लगभग 10 किलो फल मिलता है. ये पूर्णतः जैविक खेती है. तीन माह पर गोबर, वर्मी कंपोस्ट, खल्ली डालते हैं. दस बाई दस की दूरी है, तो बीच में सब्जी भी लगाते हैं. भवानीपुर के खुर्शीद आलम ने बताया कि पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग करना चाहा. अनेक फसलों का चयन किया, लेकिन कुछ खास सफलता नहीं मिल पायी. दो साल पूर्व दो एकड़ जमीन में ड्रैगन फ्रूट लगाया. इसके लिए एक हजार पिलर बनवाकर प्रति एकड़ चार सौ पौधे लगाए. पटवन के लिए सरकारी अनुदान हासिल कर ड्रिप लगाया. दो एकड़ जमीन में 10 लाख रुपये की लागत आयी.अंतरवर्ती फसल के रूप में ये भी सब्जियों की खेती करते हैं. इस एक बार के बड़े खर्च के बाद प्रति वर्ष बेहद मामूली सा खर्च आता है. इसकी खेती में आनेवाले कम-से-कम 20 सालों तक सिर्फ आमदनी ही है.
इस साल मिले आठ लाख, अगले साल 15 लाख की आस
ये अपने खेत से ही ड्रैगन फ्रूट को 150 रुपये प्रति किलो बेच देते हैं. इस साल आठ लाख रुपये मिले हैं और अगले साल 15 लाख की मिलने की इन्हें उम्मीद है. इनका कार्य इतना प्रेरक है कि कृषि विभाग के अधिकारी, यहां तक कि जिलाधिकारी कुंदन कुमार भी अन्य किसानों को इनसे प्रेरणा लेने की सलाह देते हैं. गौरतलब है कि हाल ही में बिहार सरकार के मुख्य कृषि सचिव और पूर्णिया डीएम ने जलालगढ़ का दौरा कर ड्रैगन फ्रूट उत्पादन कर रहे किसान से मुलाकात की और फसल का मुआयना किया और इसकी खेती को बढ़ावा देने तथा मार्केट उपलब्ध कराने की दिशा में एक फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) बनाकर उसे ई पोर्टल से जोड़ने का आश्वासन भी दिया है.
प्रशासन दे रहा प्रयोगात्मक खेती पर जोर
बीते दिनों रबी महोत्सव के दौरान डीएम ने युवाओं को उद्यम से जुड़ने की सलाह देते हुए किसानों से भी अपील की कि वे अपनी खेती की पद्धति को प्रयोगात्मक खेती का रूप दें और 80-20 का अनुपात रखें. यानि 80 प्रतिशत वैसी खेती जिसे वे करते आ रहे हैं उसे करें और 20 प्रतिशत स्थान नयी फसलों को दें. इसमें बागवानी फसलों को अपनाएं. आम, अमरुद, पपीता, टिश्युकल्चर केला, मखाना, स्ट्रॉबेरी, ड्रैगन फ्रूट आदि की भी खेती करके देखें. अगर सफलता हाथ लगे तो आगे इसका रकबा बढ़ा सकते हैं. इससे नुकसान का जोखिम कम हो जाएगा और लाभ का दायरा बढ़जाएगा. इस दिशा में सरकार भी विभिन्न बागवानी की फसलों के लिए बीज से लेकर पटवन संयंत्र, फसल उत्पादन आदि पर अनुदान दे रही है.
इस साल 10-20 एकड़ और बढ़ने की संभावना
जिला उद्यान पदाधिकारी डॉ राहुल कुमार ने बताया कि जिले में 25 एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती की जा रही है. सबसे ज्यादा एरिया रूपौली में है, जहां भविष्य के लिए कलस्टर निर्माण का कार्य किया जा रहा है. इसके अलावा धमदाहा, जलालगढ़, पूर्णिया पूर्व और भवानीपुर प्रखंडों में भी खेती हो रही है. इस साल 10 से 20 एकड़ और बढ़ने की संभावना है. अब तो इंजीनियर भी अपनी सेवा छोड़कर इसकी जबरदस्त खेती कर रहे हैं. इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सब्सिडी भी दी जाती है. बिक्री में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है. यहां टिश्यु कल्चर केला, मखाना और ड्रैगनफ्रूट की अपार संभावना है.