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Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में गहलोत का जादू फेल, पांच साल में राज बदलने का रिवाज बरकरार

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में भाजपा ने बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर लिया और कांग्रेस सरकार नहीं बचा पाई. पिछले करीब तीस साल से हर पांच साल बाद राज्य में राज बदलने का रिवाज इस बार भी कायम रहा.

वीरेंद्र आर्य

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में भाजपा ने बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर लिया और कांग्रेस सरकार नहीं बचा पाई. पिछले करीब तीस साल से हर पांच साल बाद राज्य में राज बदलने का रिवाज इस बार भी कायम रहा. कांग्रेस के इस चुनाव में पिछड़ने के कई कारण रहे. गुटबाजी का वैसा ही प्रभाव पूरे चुनाव में नजर आया, जैसे पांच साल अशोक गहलोत सरकार में और कांग्रेस में दिखाई देता रहा था. फ्री योजनाओं के साथ सात नई गारंटियों और ओल्ड पेंशन स्कीम का फायदा भी कांग्रेस नहीं उठा पाई, हालांकि इनका प्रचार जोर शोर से किया गया. लगातार पेपर लीक मामले में गहलोत सरकार की बदनामी पूरे देश में हुई और जल जीवन मिशन, अवैध खनन, जल जीवन मिशन के तहत ठेके जारी करने सहित भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे. वहीं लाल डायरी का मु्द्दा भी भाजपा के हाथ लग गया. कांग्रेस को कुछेक सीटों को छोड़ सभी पर पुराने चेहरों को उतारना भी भारी पड़ गया.

कांग्रेस में फूट, गहलोत बनाम सचिन पायलट

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव से पहले से ही कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट, दो गुटों में बंटी हुई थी. चुनाव बाद जब कांग्रेस ने बहुमत का दावा किया था, तब गुटबाजी और खुलकर सामने आ गई. विधायक व पार्टी पदाधिकारी भी गहलोत और पायलट खेमें में बंट गए थे. कांग्रेस आलाकमान ने तीन दिन की भारी कसरत के बाद सीएम पद के लिए अशोक गहलोत का नाम घोषित किया और डप्टी सीएम सचिन पायलट को बनाया. सरकार बनने के ढाई साल बाद जुलाई, 2020 में सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली के नजदीक हरियाणा में एक रिसोर्ट में जा बैठे. पायलट के ऑफिशियल वॉट्सएप ग्रुप से मैसेज आया कि गहलोत सरकार अल्पमत में है. गहलोत ने अपने गुट के विधायकों की बाड़ाबंदी जयपुर और फिर जैसलमेर में की. डैमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस आलाकमान ने अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला को भेजा था. सचिन पायलट सचित विश्वेंद्र सिंह व रमेश मीणा को मंत्रि पद से हटा दिया गया. कांग्रेस हाईकमान के दखल से हुए समझौते के बाद भी गहलोत और पायलट खेमें की आपसी खींचतान का प्रभाव इस विधानसभा चुनाव में भी छाया रहा.

विधायकों का भ्रष्टाचार और लाल डायरी

इस सरकार में अवैध बजरी, जल जीवन मिशन के तहत ठेके जारी करने, लगातार पेपर आउट, खान आवंटन सहित विधायकों की अवैध वसूली जैसे भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे. गहलोत मंत्रीमंडल से बर्खास्त मंत्री और कांग्रेस से भी निकाले गए राजेंद्र गुढ़ा ने लाल डायरी का मुद्दा भाजपा के हाथ दे दिया. एसीबी, आईटी और ईडी जैसी एजेंसियां सक्रीय रहीं. पेपर आउट, जलजीवन मिशन में भ्रष्टाचार को लेकर इस चुनाव तक छापेमारी होती रही. लाल डायरी व भ्रष्टाचार की गूंज पूरे चुनाव प्रचार के दौरान छाई रही. आरोप लगाए गए कि गहलोत के नजदीकी आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ रोज की घटनाओं को अपनी डायरी में दर्ज करते थे. राठौड़ के घर जब आईटी-एसीबी छापे पड़े, तो गहलोत ने गुढ़ा को डायरी निकालने को भेजा. गुढ़ा का कहना है कि तब वे डायरी को जैसे तैसे ले आए. गहलोत ने डायरी को जलाने को कहा, लेकिन इस चुनाव से पहले डायरी के पन्ने वायरल होने लगे.

धुंआधार व व्यवस्थित प्रचार

प्रचार के दौरान भाजपा व्यवस्थित और प्रभावी रही, लेकिन कांग्रेस में यहां भी गुटबाजी हवी दिखाई दी. भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो महीने में अकेले 14 सभाएं और 2 रोड शो किए. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, नितिन गड़करी, प्रहलाद जोशी,स्मृति ईरानी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं ने पूरा मोर्चा सम्भाला. प्रचार के दौरान वसुंधरा राजे को भी कई सभाओं की जिम्मेदारी दी गई. आरएसएस भी जमीनी स्तर पर मेहनत में जुटी रही. लेकिन इसके मुकाबले राहुल गांधी ने 12 और प्रियंका गांधी ने 6 सभाएं कीं, लेकिन किसी ने भी रोडशो नहीं किया. सचिन पायलट ने 2018 में जैसे खुद को चुनावों में झौंक दिया था, वैसा कुछ इस बार नजर नहीं आया. अकेले अशोक गहलोत के भरोसे चुनाव प्रचार चला. मगर राजनीति में जादूगर के नाम से मशहूर गहलोत का जादू इस बार चल नहीं पाया.

पुराने चेहरों के कारण ढह गई सरकार

भाजपा ने इस चुनाव में पूरा ताकत लगा दी थी. अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भाजपा ने 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतार दिया था. सर्वे के जरिए मजबूत प्रत्याशियों को मौका देने में कसर नहीं छोड़ी. वहीं, कांग्रेस ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा किया, जिससे स्थानीय तौर पर उन चेहरों से नाराजगी कांग्रेस को भुगतनी पड़ गई. पिछले साल विधायक दल की बैठक में विधायकों को जाने से रोकने वाले यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल तक का टिकट नहीं काट पाए. हालांकि इस प्रकरण में शामिल मंत्री महेश जोशी का टिकट काट दिया गया और धर्मेंद्र राठोड़ को टिकट नहीं दिया गया. लेकिन पिछली हार जीती 90 फीसदी से अधिक सीटों पर कोई प्रत्याशियों को लेकर कोई खास फेरबदल नहीं किया. जिसका खमियाजा कांग्रेस ने उठाया.

ओपीएस का नहीं मिला लाभ, योजनाओं का लाभ देरी से

गहलोत सरकार ने अपने पहले बजट से ही जनता के लिए एक से एक योजनाओं की घोषणाएं की, जो पूरे देश में चर्चा का विषय रहीं. पहले 10 लाख और बाद में बढ़ाकर 25 तक के फ्री इलाज वाली चिरंजीवी योजना, 100 यूनिट बिजली फ्री, हर महीने फ्री राशन किट, हर परिवार से महिला मुखिया को फ्री मोबाइल, 500 रुपए में गैस सिलेंडर सहित कई योजनाएं चर्चित रहीं, लेकिन लाभ देरी से मिला. वहीं सरकारी कर्मचारियों को न्यू पेंशन स्कीम के बजाय ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ देने का कदम भी गहलोत सरकार ने उठाया, जो राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बना हुआ है. कांग्रेस इन योजनाओं और ओपीएस के लाभ को वोटों में तबदील नहीं करवा पाई.

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