अयोध्या, उपमिता वाजपेयी : लल्ला जब रात में सोइंहें, सुबह उठकर देखिहैं, तो सोचिहैं, हम ई कहां आई गए, कुटिया से महल मा. बाबरी के गुंबद, टूटे-फटे तिरपाल और फिर लकड़ी की कुटिया में रामलला की 32 साल करनेवाले पुजारी संतोष तिवारी अपने लल्ला की बात इसी भाषा में कहकर सुनाते हैं. कहते हैं, 21 जनवरी को जब रामलला को शयन आरती के बाद नये मंदिर में सुलाने ले जायेंगे, तो रामलला अगली सुबह आंखें नये महल में खोलेंगे. शायद प्रभु राम भी हैरान रह जायेंगे खूबसूरत-सा महल देखकर. वो कहते हैं, इतने साल दिन रात पूजा की है लल्ला की, अब तो मोहब्बत हो गयी है उनसे. उन्हें सुबह मंत्र सुनाकर उठाना. मंगला आरती करना. बिना बत्ती जलाये, बिना घंटी बजाये, बिना शोर, धीमे से रामलला को जगाना. फिर उनका स्नान, शृंगार, भोग, रास, पूजन. फिर रात को शयन आरती के बाद उन्हें सिंहासन पर ही लेटा देना. कुछ देर चारों भाईयों, राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न को थपकियां देना. लोरियां सुनाना और फिर रजाई ओढ़ा देना.
अयोध्या में भगवान श्रीराम की सेवा करने वाले पंडित संतोष तिवारी कहते हैं कि 32 सालों की यादें हैं. फिलहाल रामलला के सभी कपड़ों की पैकिंग हो गयी है. अतिरिक्त बिस्तर, रजाई भी बांध लिये गये हैं. ये सब वहां उनके लिए बने नये कमरों में साथ जायेंगे. बरतन 21 तारीख को भोग के बाद बांधे जायेंगे. पहले रामलला विराजमान को 19 तारीख की रात ही नये मंदिर में ले जाया जाना था.
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संतोष तिवारी कहते हैं, कोई भी विग्रह 24 घंटे बिना भोग-पूजन के नहीं रह सकता. वरना उसकी दोबारा प्राण प्रतिष्ठा करना होती है. और अगर 19 तारीख को लल्ला नये मंदिर चले जाते, तो नये विग्रह के सामने उनका पूजन होता, भोग लगता. तो क्या नये प्रभु राम को बुरा नहीं लगता. वो ये नहीं कहते कि हम अभी अधिवास में हैं, अन्न, जल, औषधि में डूबे हैं, सिर्फ सूखे मेवे खा रहे हैं और रामलला विराजमान को भोग लगाया जा रहा है. इसलिए पुजारी, आचार्य और ट्रस्ट ने तय किया कि अब रामलला विराजमान भी 21 की रात को ही नये महल में जायेंगे. ताकि दोनों को साथ भोग लगे. 22 की सुबह रामलला को छप्पन भोग लगाया जाना है.
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