Lukcnow News: उत्तर प्रदेश की राजनीति में साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव की जीत और हार आंकड़ों का असर विधान परिषद में भी साफ दिखाई देता है. इसी का नतीजा है कि यूपी के उच्च सदन कहे जाने वाले विधान परिषद में अब कांग्रेस का अंत सियासी इतिहास 6 जुलाई को समाप्त हो जाएगा. यही नहीं देश के सबसे बड़े राज्य की विधान परिषद में ऐसी कई पार्टी हैं जो मात्र एक विधान परिषद सदस्य के नाम पर अपनी उपस्थिती दर्ज करा रही हैं. इसमें सबसे ज्यादा विचारणीय कांग्रेस और बसपा की स्थिति है जो एक समय तक प्रदेश की राजनीति में बड़ा दखल रखते थे.
उच्च सदन में सत्ताधारियों का ही बोलबाला रहता है. आमतौर पर यह चुनाव सत्ता का ही माना जाता है. कांग्रेस पार्टी की बात करें तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी की स्थिति बिगड़ती जा रही है. पार्टी के महज दो ही विधायक इस बार जीत पाए हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी की तरफ से विधान परिषद में किसी भी प्रत्याशी को जिता पाना संभव नहीं है. इतना ही नहीं स्थानीय स्तर पर भी कांग्रेस पार्टी इतनी मजबूत नहीं है कि उसे कहीं से भी अपने प्रत्याशी को जीत मिलती नजर आए. इससे साफ है कि विधान परिषद में इस बार कांग्रेस का कोई नेतृत्वकर्ता नहीं होगा. वर्तमान में कांग्रेस के दीपक सिंह एकमात्र विधान परिषद सदस्य हैं. वही नेता विधान परिषद भी हैं. उनका कार्यकाल भी 6 जुलाई 2022 में खत्म हो रहा है. ऐसे में कांग्रेस के लिए विधान परिषद में कोई भी नेता पार्टी का पक्ष रखने वाला नहीं रहेगा. ऐसा होने पर विधान परिषद पहली बार बिना किसी कांग्रेसी नेता की मौजूदगी में चलेगी. यानी यूपी में कांग्रेस के 87 साल का गौरवशाली सियासी इतिहास सिमट जाएगा.
वर्तमान में उत्तर प्रदेश के उच्च सदन यानी विधान परिषद में भारतीय जनता पार्टी के 66, समाजवादी पार्टी के 11, बहुजन समाज पार्टी के 4, कांग्रेस के 1, अपना दल (सोनेलाल) के 1, शिक्षक दल (गैर राजनीतिक दल) के 2, निर्दलीय समूह के 2, निर्दलीय 2, निर्बल इण्डियन शोषित हमारा आम दल के 1 और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के 1 सदस्य अपनी उपस्थिती दर्ज करा रहे हैं.
विधान परिषद में सबसे विचारणीय है बसपा और कांग्रेस की स्थिति है. कारण, इन दोनों ही पार्टी को 2022 की फरवरी से मार्च तक हुए विधानसभा चुनाव में मात्र 1 विधायक को जीत मिली है. ऐसे में कांग्रेस के सामने जो परिस्थिति 6 जुलाई को आएगी वही स्थिति बसपा के सामने भी आने वाली है. फिलवक्त, बसपा के 4 विधान परिषद सदस्य अतर सिंह, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप और भीमराव अम्बेडकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए पार्टी की बात पटल पर रख रहे हैं. इनमें से अतर सिंह, दिनेश चंद्रा और सुरेश कुमार कश्यप का कार्यकाल भी 6 जुलाई को समाप्त हो रहा है. यानी 7 जुलाई से भीमराव अम्बेडकर विधान परिषद में बसपा के एकमात्र विधान परिषद सदस्य रह जाएंगे. भीमराव का कार्यकाल 5 मई 2024 को खत्म हो जाएगा. यानी संभावना है कि यूपी का उच्च सदन एक समय के बाद बसपा विहीन हो जाएगा.
अभी देश के छह राज्यों में ही विधान परिषद हैं. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 100 सीटें हैं. इसके अलावा बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी विधान परिषद है. विधान परिषद में एक निश्चित संख्या तक सदस्य होते हैं. संविधान के तहत विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए. उदाहरण के तौर पर समझें तो यूपी में 403 विधानसभा सदस्य हैं. यानी यूपी विधान परिषद में 134 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते हैं. इसके अलावा विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य का होना अनिवार्य है. एमएलसी का दर्जा विधायक के ही समकक्ष होता है. मगर कार्यकाल 1 साल ज्यादा होता है. विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल छह साल के लिए होता है. वहीं, विधानसभा सदस्य यानी विधायक का कार्यकाल 5 साल का होता है.
यूपी में विधान परिषद के 100 में से 38 सदस्यों को विधायक चुनते हैं. वहीं, 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य (BDC) और नगर निगम या नगरपालिका के निर्वाचित प्रतिनिधि चुनते हैं. 10 मनोनीत सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं. इसके अलावा 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं.