नयी दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा फैंलाने वालों के पोस्टर लखनऊ में लगाए जाने का मामला हाईकोर्ट के फैंसले के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी थी.
गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार से सवाल किया कि किस कानून के तहत हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगाए गए हैं. कोर्ट ने साफ कह दिया ऐसे पोस्टर लगाने का देश में कोई कानून नहीं हैं. इसके साथ कोर्ट ने कहा है कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक से इनकार कर दिया है. यानी अब 16 मार्च तक सभी पोस्टर हटाने होंगे.
Supreme Court refuses to stay Allahabad High Court order directing the concerned authorities to remove the posters of those accused persons allegedly involved in vandalism during the anti-CAA protests in Uttar Pradesh. https://t.co/WgjSCCkMBc
— ANI (@ANI) March 12, 2020
वहीं सरकार का पक्ष रख रहे है सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा ‘ जब प्रदर्शनकारी खुले में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं. मीडिया ने उनके विडियो बनाया. सबने विडियो देखा. ऐसे में यह दावा नहीं कर सकते कि पोस्टर लगने से उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है. निजता के कई आयाम होते हैं
दरअसल, प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपत्ति को हुई नुकसान की भरपाई के लिए लखनऊ प्रशासन ने कैसर बाग चौराहे पर पोस्टर लगाये थे, जिसमें 28 लोगों से वसूली करने की बात कही गयी थी. इस मामले में जिलाधिकारी (लखनऊ) अभिषेक प्रकाश ने कहा था कि हिंसा फैलाने वाले सभी जिम्मेदार लोगों के लखनऊ में पोस्टर व बैनर लगाये गये हैं. उन्होंने कहा सभी की संपत्ति की कुर्क की जायेगी.